गुरुग्राम से हशीबुर्रहमान साझा मंच मोबाईल वाणी के माध्यम से सोनू से बात कर बता रहे हैं कि लॉक डाउन की अवधि का वेतन इन्हें नहीं मिला, लेकिन बिहार सरकार द्वारा दी गयी एक हज़ार रुपए की मदद इन्हें मिली है। चूँकि ये ठेकेदार की माध्यम से काम करते हैं, इसलिए इनकी कम्पनी में पीएफ और इएसआई नहीं कटता तथा वेतन बहुत कम मिलता है। सरकार से ये उचित पारिश्रमिक दिलवाने की अपील कर रहे हैं।

मध्य प्रदेश के निवासी ओला टैक्सी चालक इंद्रजीत साझा मंच मोबाईल वाणी के माध्यम से दिल्ली में अशमत अली से बात कर बता रहे हैं कि पैसा न होने के कारण लॉक डाउन में भी घर नहीं जा पाए और ओला ने भी कोई मदद नहीं की। लॉक डाउन में खर्च चलाने के लिए घर से पैसा मँगवाया और दिल्ली सरकार से सिर्फ़ एक बार राशन की मदद मिली। ओला कम्पनी ने जितना कहाथा, उतना भुगतान नहीं कर रही है, लेकिन फिर भी मजबूरी में टैक्सी चला रहे हैं। कम्पनी में बात करने पर कहा गया कि टैक्सी चलानी है तो चलाओ, नहीं तो मत चलाओ।

गुरुग्राम से सोनू साझा मंच मोबाईल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि लॉक डाउन ख़त्म होने के बाद सरकार द्वारा गरीब श्रमिकों को मदद के नाम पर राजनीति कर रही है और हमारी उम्मीदों पर खरी नहीं उतर रही है। बुरे वक़्त में आपके साथ कौन खड़ा है, इसे याद रखना चाहिए। श्रमिकों की कमाई से अपनी तिजोरियाँ भरने वाले कम्पनी-मालिकों ने लॉक डाउन के इस बुरे दौर में उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया है। इन सब परेशानियों से कीसी सरकार को कोई मतलब नहीं है।

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दक्षिण दिल्ली में एम्स के बाहर से अशमत अली साझा मंच मोबाईल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि बारिश होने से लोगों को काफ़ी काफ़ी राहत मिली है। एम्स के बाहर बस स्टॉप पर कूड़े का ढेर लगा हुआ है। राजधानी दिल्ली में लगभग अधिकांश मालिक कामगारों को आधा वेतन ही दे रहे हैं। सरकार द्वारा आधे कर्मचारियों से ही काम कराने के लिए कहने पर श्रमिकों में काम के लिए मारामारी है।

कापासेड़ा, नई दिल्ली से नंद किशोर साझा मंच मोबाईल वाणी के माध्यम से कोरोना-संक्रमण के दौर में प्रवासी कामगारों को होने वाली परेशानियों के बारे में बताते हुए इसे राष्ट्रीय विमर्श का हिस्सा बनने पर संतोष व्यक्त कर रहे हैं। लेकिन राज्यों द्वारा अपने यहाँ कार्यरत कामगारों को बाहरी समझने पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं। इन्हें अपने घर आने पर कोरोना-संक्रमण के वाहक के रूप में शक की नज़र से देखा जा रहा था।

गुरुग्राम से विष्णु चौधरी साझा मंच मोबाईल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि मज़दूरों को संगठित होने की ज़ारूरत है और इन्हें अपना मालिक खुद होना चाहिए। लॉक डाउन के दौर में हुए क़र्ज़ों को चुकाते हुए मज़दूर कैसे खाएगा, कैसे जिएगा? कम्पनियाँ पीएफ घोटाला कर इनका पैसा खा जाती हैं, फिर इन्हें उसे पाने के लिए कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने पड़ते हैं।

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