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किसी भी समाज को बदलने का सबसे आसान तरीका है कि राजनीति को बदला जाए, मानव भारत जैसे देश में जहां आज भी महिलाओं को घर और परिवार संभालने की प्रमुख इकाई के तौर पर देखा जाता है, वहां यह सवाल कम से कम एक सदी आगे का है। हक और अधिकारों की लड़ाई समय, देश, काल और परिस्थितियों से इतर होती है? ऐसे में इस एक सवाल के सहारे इस पर वोट मांगना बड़ा और साहसिक लेकिन जरूरी सवाल है, क्योंकि देश की आबादी में आधा हिस्सा महिलाओं का है। इस मसले पर बहनबॉक्स की तान्याराणा ने कई महिलाओँ से बात की जिसमें से एक महिला ने तान्या को बताया कि कामकाजी माँओं के रूप में, उन्हें खाली जगह की भी ज़रूरत महसूस होती है पर अब उन्हें वह समय नहीं मिलता है. महिलाओं को उनके काम का हिस्सा देने और उन्हें उनकी पहचान देने के मसले पर आप क्या सोचते हैं? इस विषय पर राय रिकॉर्ड करें

उत्तरप्रदेश राज्य के उन्नाव से रामकरण श्रमिक वाणी के माध्यम से बताया कि उन्हें जयपुर में फंसे एक कारीगर द्वारा पता चला कि जयपुर में कई सिलाई कारीगरों का पैसा कंपनी प्रबंधन या ठेकेदार द्वारा नहीं दिया जा रहा है ,जिस कारण वे परेशान है

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दिल्ली एनसीआर श्रमिक वाणी के माध्यम से रीना परवीन की बातचीत कोमल से हुई कोमल बताती हैं में खिलौना फैक्ट्री में काम करती हूं हमें 2 महीने से हमारी सैलरी नहीं मिल रहा है सैलरी नहीं मिलने की वजह से हमारे घर में बहुत दिक्कत हो रही है अब तो खर्च के भी लाले पड़ रहे हैं इस वजह से बहुत ज्यादा समस्या हो रही है जबकि हमें हर महीने सैलरी मिलती थी मगर फैक्ट्री मालिक 2 महीने से शैली नहीं दे रहे इसकी वजह से बहुत ज्यादा दिक्कत हो रही है

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दिल्ली एनसीआर श्रमिक वाणी के माध्यम से रीना परवीन बातचीत जोनी से हुई जोनी बताते हैं मैं शीतल कंपनी में काम करता हूं हमारी कंपनी में चूड़ी बनती हैं और हम मशीनों पर काम करते हैं हमारे फैक्ट्री में हमें ग्लव्स नहीं दिए जाते क्योंकि हमारी फैक्ट्री में गरम-गरम मशीनों द्वारा डाई में से हाथ से चूड़ी निकालने पड़ती है और हमारा कई बार तो हमारे हाथ भी जल जाते हैं 3 महीने से रुका हुआ पिएफ भी नहीं मिल रहा है हमने अपने एचआर से कई बार मांग की है कि हमारा रुका हुआ पीएफ दिलवाया जाए मगर एचआर हमारा पीएफ नहीं दिलवा रहे हैं

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