दिल्ली आईएमटी मानेसर कुमार पांडेय ने श्रमिक वाणी के माध्यम से स्थानीय निवासी महेंद्र अइयार से कंपनियों की स्थिति पर चर्चा की। जहाँ उन्होंने बताया कि कंपनियों में काम की कमी के कारण प्रबंधक मजदूरों को निकाल देते हैं। ऐसे में उन्हें घर चलाने ,बच्चों की पढ़ाई,घर का किराया देने में दिक्कत होती है
Transcript Unavailable.
नमस्कार मैं अनिल कुमार ,उत्तरप्रदेश ज़िला सिद्धार्थनगर से 100 प्रतिशत दृष्टिबाधित बात कर रहा हूँ ,मेरा सवाल है कि लेबर कोड होता है और लेबर कोड का मतलब क्या होता है और ये जो नया लेबर कोड एक जुलाई से लागू होगा ,इससे मज़दूरों को क्या फ़ायदा मिलेगा ?
हरियाणा के बहादुरगढ़ से मनोहर कश्यप ने ट्रेड यूनियन के उपाध्यक्ष से बात की। उन्होंने बताया कि उन्होंने सारे कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाई है।
दिली से हमारे श्रोता ,साझा मंच के माध्यम से कह रहें हैं, हरियाणा श्रम मसौदा क़ानून के अनुसार मशीन खराब होने की स्थिति में मज़दूरों के वेतन में कटौती होगी। जबकि मज़दूरों की वेतन बहुत ही कम है। श्रमिक प्रतिमाह आठ से नौ हज़ार कमाती है और मशीनों की क़ीमते लाखों में होती है। ऐसे में श्रमिक भरपाई नहीं कर सकता
दिल्ली से हमारे श्रोता ,साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते है कि श्रम मसौदे के अनुसार अगर मशीन की ख़राबी मज़दूर के हाथों होगी तो मज़दूर के वेतन से भरपाई की जाएगी। श्रमिक का वेतन मशीन की क़ीमत से काफ़ी कम है ,ऐसे में श्रमिक भरपाई करने में असमर्थ है। क़ानून के अनुसार कटौती बहुत ज़्यादा है ,इस क़ानून से श्रमिकों को लाभ नहीं है सरकार को इस पर विचार करना चाहिए।
दिल्ली से हमारे श्रोता ,साझा मंच के माध्यम से कह रहें हैं, मसौदे के अनुसार छुट्टी का दिन निर्धारित किया गया है लेकिन छुट्टी के दिन भी श्रमिक काम करते है और ठेकेदारों द्वारा श्रमिकों को बुला कर काम करवाया जाता है। नियम का पालन किसी भी कंपनी में नहीं होता है।सरकार को ध्यान देना चाहिए
उत्तरप्रदेश राज्य से हमारे श्रोता,साझा मंच के माध्यम से कह रहें हैं कि मज़दूर के बिना कोई भी कार्य नहीं हो सकता है। कोई भी कार्य हो , मज़दूरों को छुट्टी के लिए तरसने को मजबूर कर रही है। सरकार को मसौदा तैयार करने से पहले श्रमिकों का ख्याल करना चाहिए। श्रमिक के विषय में सरकार व कंपनी मालिकों को ध्यान देना चाहिए
उत्तरप्रदेश राज्य से हमारे श्रोता,साझा मंच के माध्यम से कह रहें हैं कि सभी राज्यो में मज़दूरों की वेतन एक सामान नहीं है और हरियाणा श्रम मसौदा मज़दूरों के लिए बिलकुल भी ठीक नहीं है। यदि कोई मशीन पहले से ही टूटी निकली और मज़दूर पर आरोप लगाया गया की इसे उसी ने तोड़ा है तो मज़दूर कहाँ से मशीन की क़ीमत भरेगा क्योंकि उसकी वेतन सिर्फ गुज़ारे लायक ही होता है। श्रमिक ऐसे ही अपने जीवन में परेशान है ,अगर उनपर बोझ डाल दिया जाएगा तो उन्हें और परेशानी झेलनी पड़ेगी। क़ानून में मालिक वर्ग के लिए सहूलियत दी गई है लेकिन मज़दूर वर्ग के लिए कुछ फ़ायदा नहीं। क़ानून बनाने से पहले इसपर पुनर्विचार करना चाहिए
उत्तरप्रदेश राज्य से हमारे श्रोता,साझा मंच के माध्यम से कह रहें हैं कि हरियाणा श्रम मसौदा में उल्लेखित वेतन की बात करे तो दिल्ली एनसीआर के श्रमिकों की 16,000 रूपए है वहीं हरियाणा की लगभग 9,000 है। इनके अनुसार राज्यों की सरकारों को बैठ कर बात करनी चाहिए और सभी जगह एक समान वेतन लागू करनी चाहिए ।सरकार अगर कानून पारित करने से पहले विचार नहीं करेगी तो यह क़ानून सफ़ल नहीं हो पाएगा