दोस्तों, समाज में लैंगिक समानता प्राप्त करने के लिए सामाजिक असमानता को दूर करना सबसे ज़रूरी है। शिक्षा, जागरूकता, और कानूनों का कड़ाई से पालन करके हम एक ऐसा समाज बना सकते हैं जहाँ पुरुषों और महिलाओं को समान अधिकार और अवसर प्राप्त हों। तो दोस्तों, हर समस्या का समाधान होता है आप हमें बताइए कि _____ हमारे समाज में लैंगिक असमानता क्यों मौजूद हैं? _____आपके अनुसार से लैंगिक समानता को मिटाने के लिए सरकार के साथ साथ हमें किस तरह के प्रेस को करने की ज़रूरत है ?

महिलाओं को अक्सर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, रोजगार और राजनीतिक भागीदारी जैसे क्षेत्रों में भेदभाव का सामना करना पड़ता है। यह भेदभाव उन्हें अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने से रोकता है। महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, दहेज हत्या और बाल विवाह जैसी हिंसा लैंगिक असमानता का एक भयानक रूप है। यह हिंसा महिलाओं को शारीरिक और मानसिक रूप से नुकसान पहुंचाती है और उन्हें डर और असुरक्षा में जीने के लिए मजबूर करती है। लैंगिक असमानता गरीबी और असमानता को बढ़ावा देती है, क्योंकि महिलाएं अक्सर कम वेतन वाली नौकरियों में काम करती हैं और उन्हें भूमि और संपत्ति जैसे संसाधनों तक कम पहुंच होती है। दोस्तों, आप हमें बताइए कि *-----लैंगिक असमानता के मुख्य कारण क्या हैं? *-----आपके अनुसार से लैंगिक समानता को मिटाने के लिए भविष्य में क्या-क्या तरीके अपनाएँ जा सकते हैं? *-----साथ ही, लैंगिक असमानता को दूर करने के लिए हम व्यक्तिगत रूप से क्या प्रयास कर सकते हैं?

भारत में जहां 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव हो रहे हैं। इन चुनावों में एक तरफ राजनीतिक दल हैं जो सत्ता में आने के लिए मतदाताओं से उनका जीवन बेहतर बनाने के तमाम वादे कर रहे हैं, दूसरी तरफ मतदाता हैं जिनसे पूछा ही नहीं जा रहा है कि वास्तव में उन्हें क्या चाहिए। राजनीतिक दलों ने भले ही मतदाताओं को उनके हाल पर छोड़ दिया हो लेकिन अलग-अलग समुदायो से आने वाले महिला समूहों ने गांव, जिला और राज्य स्तर पर चुनाव में भाग ले रहे राजनीतिर दलों के साथ साझा करने के लिए घोषणापत्र तैयार किया है। इन समूहों में घुमंतू जनजातियों की महिलाओं से लेकर गन्ना काटने वालों सहित, छोटे सामाजिक और श्रमिक समूह मौजूदा चुनाव लड़ रहे राजनेताओं और पार्टियों के सामने अपनी मांगों का घोषणा पत्र पेश कर रहे हैं। क्या है उनकी मांगे ? जानने के लिए इस ऑडियो को सुने

दोस्तों, हमारे यह 2 तरह के देश बसते है। एक शहर , जिसे हम इंडिया कहते है और दूसरा ग्रामीण जो भारत है और इसी भारत में देश की लगभग आधी से ज्यादा आबादी रहती है। और उस आबादी में आज भी हम महिला को नाम से नहीं जानते। कोई महिला पिंटू की माँ है , कोई मनोज की पत्नी, कोई फलाने घर की बड़ी या छोटी बहु है , कोई संजय की बहन, तो कोई फलाने गाँव वाली, जहाँ उन्हें उनके मायके के गाँव के नाम से जाना जाता है। हम महिलाओ को आज भी ऐसे ही पुकारते है और अपने आप को समाज में मॉडर्न दिखने की रीती का निर्वाह कर लेते है। समाज में महिलाओं की पहचान का महत्व और उनकी स्थिति को समझने की आवश्यकता के बावजूद, यह बहुत दुःख कि बात है आधुनिक समय में भी महिलाओं की पहचान गुम हो रही है। तो दोस्तों, आप हमें बताइए कि *-----आप इस मसले को लेकर क्या सोचते है ? *-----आपके अनुसार से औरतों को आगे लाने के लिए हमें किस तरह के प्रयास करने की ज़रूरत है *-----साथ ही, आप औरतों को किस नाम से जानते है ?

किसी भी समाज को बदलने का सबसे आसान तरीका है कि राजनीति को बदला जाए, मानव भारत जैसे देश में जहां आज भी महिलाओं को घर और परिवार संभालने की प्रमुख इकाई के तौर पर देखा जाता है, वहां यह सवाल कम से कम एक सदी आगे का है। हक और अधिकारों की लड़ाई समय, देश, काल और परिस्थितियों से इतर होती है? ऐसे में इस एक सवाल के सहारे इस पर वोट मांगना बड़ा और साहसिक लेकिन जरूरी सवाल है, क्योंकि देश की आबादी में आधा हिस्सा महिलाओं का है। इस मसले पर बहनबॉक्स की तान्याराणा ने कई महिलाओँ से बात की जिसमें से एक महिला ने तान्या को बताया कि कामकाजी माँओं के रूप में, उन्हें खाली जगह की भी ज़रूरत महसूस होती है पर अब उन्हें वह समय नहीं मिलता है. महिलाओं को उनके काम का हिस्सा देने और उन्हें उनकी पहचान देने के मसले पर आप क्या सोचते हैं? इस विषय पर राय रिकॉर्ड करें

हमारे श्रोता रवि कुमार शर्मा ने श्रमिक वाणी के माध्यम से बताया कि मिलावट को रोकने के लिए आवाज़ उठानी होगी। सभी लोगों को मिलकर इसका विरोध करना चाहिए और सरकार को कदम उठाने चाहिए, लेकिन इसके लिए लड़ना होगा ।

उत्तरप्रदेश राज्य के बदायू से अरूण मीना मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि अपने वोट का महत्व समझें। कुछ लोग यह सोचकर बैठते हैं कि वोटिंग की जगह दूर है,इतनी गर्मी है, हमें और भी बहुत काम करना है, अगर हम अकेले वोट नहीं देंगे, तो क्या होगा। जो इस तरह सोचते हैं, वे बहुत गलत सोचते हैं, जो देश का विकास चाहते हैं जो देश के लिए कुछ करना चाहते हैं, वे वोट देंगे। ऐसा मत सोचिए कि अगर हम वोट देने नहीं जाएंगे तो कोई नुकसान नहीं होगा, दोस्तों, आपका वोट कीमती है, आपका वोट बहुत कीमती है और आप अपने वोट की ताकत को नहीं समझेंगे, तो कौन समझेगा? अपने वोट की शक्ति को समझें और जानें और जहां भी चुनाव हैं, चाहे जो भी परिस्थितियां हों, आपको वोट देना चाहिए।

उत्तर प्रदेश राज्य के बदायूं जिला से अरुण मीना ने श्रमिक वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि हमारे देश में एक तरह से लोग कहते हैं कि लोकतंत्र एक त्योहार है, यानी हमारा चुनाव चल रहा है, हम इसे लोकतंत्र कहते हैं। लोकतंत्र हमारे देश में लोकतंत्र है, यानी हमारे देश में लोकतंत्र। इसलिए हम कहना चाहेंगे कि अपने सभी नियमों का उपयोग करें,नमस्कार हमारी वाणी हम और बिना बड़ी उत्तर प्रदेश से सौ प्रतिशत नेत्रहीन चुनाव चल रहा है बहुत तेज़ दोस्तों और हमारे देश में एक तरह से लोग कहते हैं कि लोकतंत्र एक त्योहार है, यानी हमारा चुनाव चल रहा है, हम इसे लोकतंत्र कहते हैं। लोकतंत्र हमारे देश में लोकतंत्र है, यानी हमारे देश में लोकतंत्र। इसलिए हम कहना चाहेंगे कि अपने सभी नितंबों का उपयोग करें, यानी जिन भाइयों के पास उतने ही जूते हैं, वे अपने जूते के बूट का उपयोग करें क्योंकि कि हम अपने वोट से जो चाहें कर सकते हैं, हम अपने भाग्य को बदल सकते हैं, हम कुछ भी कर सकते हैं, किसी पर कोई दबाव नहीं है, सभी का वोट स्वतंत्र है। यह मत सोचिए कि हमारे किसी एक बोर्ड का जो होगा वह हमारी नियति को बदल देगा क्योंकि कहा जाता है कि नियति हर किसी को समय-समय पर मौका देती है, इसलिए आज हमारे हाथों में वह अवसर आ गया है, जिसे हम सही समय पर जानते हैं।

उत्तरप्रदेश राज्य के उन्नाव जिला से राम करण श्रमिक वाणी के माध्यम से सभी श्रोताओं को श्रम दिवस पर बधाई व्यक्त कर रहे हैं। लाखों बलिदान देने के बाद मजदूर अपनी बात कहीं भी रख सकता है, मजदूरों को खुद आवाज उठानी होगी, तभी आपको अधिकार मिलेंगे। हम सभी इस दिन को याद करते हैं क्योंकि हमारे लाखों लोगों ने इन अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी थी। यह एक बड़ी जीत थी, अमेरिका में एक संघर्ष था, लोगों ने गोलियां चलाईं, इतने लोग शहीद हुए, लेकिन इस शहादत को हम याद रखेंगे और वे जहां भी होंगे। अपनी आवाज उठाएं, अपने मन की बात कहें, अपने विचार कहें, तभी हम उन अधिकारों को प्राप्त कर पाएंगे जिन्हें लोगों ने सदियों से संघर्ष किया है। कंपनी के मालिकों को भी श्रम दिवस मनाना चाहिए और अपने सभी कर्मचारियों को खाना खिलाना चाहिए और उनका स्वागत करना चाहिए, चाहे वे कोई भी हों।

दिल्ली के मानेसर से शंकर पाल मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे है की कैसे जानकारी के आभाव में श्रमिक अपने अधिकारों से वंचित रह जाते है।