मध्यप्रदेश राज्य के जिला छिंदवाड़ा से हमारे श्रोता , मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहते है कि इस मतदान के बाद खुशी आए, डिजिटल को भी अपनाया जाए और साथ ही पेंशन भी बढ़ाई जाए। गरीब महिलाओं को और विधवा को राशन भी दिया जाये।

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स्थानीय पुलिस थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले धर्मपुर गांव के दमनगांव में गांव के कुछ कमजोर लोगों को पीटने और गंभीर रूप से घायल करने का मामला सामने आया है। विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।

झारखण्ड राज्य के बोकारो जिले से जे. एम. रंगीला जी ने मोबाइल वाणी के पक्ष और विपक्ष कड़ी संख्या 63 में दिलीप कुमार महतो खास बातचीत, घोषणापत्र का विषय है तो आइए इस मुद्दे पर बात करते हैं आज हम नवाडीह प्रखंड के गुंजारदी गांव पहुंच गए हैं जहाँ एक युवा किसान दिलीप कुमार महतो के साथ बातचीत कर रहे हैं। सांसद या विधायक, जो चुनाव में खड़े होते हैं, वे उम्मीदवार और दल वादा करते हैं कि हम ऐसा करेंगे,क्या कारण है कि वह हमें गुमराह करने के लिए ऐसा करती है? विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।

झारखण्ड राज्य के बोकारो जिले से जे. एम. रंगीला जी ने मोबाइल वाणी के पक्ष और विपक्ष कड़ी संख्या 63 में मोतीलाल हांसदा बेरमो बोकारो से खास बातचीत की खाली घोषणा करने वाले नेता घोषणाओं के अनुसार काम नहीं करते हैं, राजनीतिक दल हो, चाहे वह पक्ष में हो या विपक्ष में, हर कोई अपना घोषणापत्र जारी करता है, जैसे कि हमारे देश के प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं हर साल दो करोड़ लोगों को रोजगार दूंगा। पंद्रह लाख रुपये आएंगे, तो यह कितना सही हो पाया है, विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।

झारखण्ड राज्य के बोकारो जिला के कासमार गाँव से सदाम कुमार सेन मोबाइल वाणी के माध्यम से बात रहे हैं कि आज जब लोग जागरूक हो रहे हैं, तो वे बदलाव की मांग करते हैं। लेकिन डिजिटल भारत होने के बावजूद, लोग जिस तरह का बदलाव चाहते हैं, वह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। बदलाव लाने के लिए, लेकिन आज जिस राजनीति में एक नेता उम्मीदवार खड़ा होता है, वहां 99 प्रतिशत भीड़ जमा होती है। जो लोग जाते हैं वे श्रमिक हैं, उनके चम्मच दलाल हैं, वे लोग हैं जो भीड़ को इकट्ठा करते हैं और भाग लेते हैं, बाकी लोग अपनी मेहनत और प्रशंसा से अपना जीवन जीते हैं। और इन लोगों की वजह से आज स्थिति इतनी गंभीर होती जा रही है कि यह बहुत से लोगों को कानून से ऊपर रखती है। ब्लॉक जिले, जहां इन लोगों की मनमानी के कारण आम लोगों और निर्दोष लोगों को रीढ़ की हड्डी में चोट लगती है, इन लोगों द्वारा बड़ी गलती करने के बाद भी।

2024 के आम चुनाव के लिए भी पक्ष-विपक्ष और सहयोगी विरोधी लगभग सभी प्रकार के दलों ने अपने घोषणा पत्र जारी कर दिये हैं। सत्ता पक्ष के घोषणा पत्र के अलावा लगभग सभी दलों ने युवाओं, कामगारों, और रोजगार की बात की है। कोई बेरोजगारी भत्ते की घोषणा कर रहा है तो कोई एक करोड़ नौकरियों का वादा कर रहा है, इसके उलट दस साल से सत्ता पर काबिज राजनीतिक दल रोजगार पर बात ही नहीं कर रहा है, जबकि पहले चुनाव में वह बेरोजगारी को मुद्दा बनाकर ही सत्ता तक पहुंचा था, सवाल उठता है कि जब सत्ताधारी दल गरीबी रोजगार, मंहगाई जैसे विषयों को अपने घोषणापत्र का हिस्सा नहीं बना रहा है तो फिर वह चुनाव किन मुद्दों पर लड़ रहा है।

2024 के आम चुनाव के लिए भी पक्ष-विपक्ष और सहयोगी विरोधी लगभग सभी प्रकार के दलों ने अपने घोषणा पत्र जारी कर दिये हैं। सत्ता पक्ष के घोषणा पत्र के अलावा लगभग सभी दलों ने युवाओं, कामगारों, और रोजगार की बात की है। कोई बेरोजगारी भत्ते की घोषणा कर रहा है तो कोई एक करोड़ नौकरियों का वादा कर रहा है, इसके उलट दस साल से सत्ता पर काबिज राजनीतिक दल रोजगार पर बात ही नहीं कर रहा है, जबकि पहले चुनाव में वह बेरोजगारी को मुद्दा बनाकर ही सत्ता तक पहुंचा था, सवाल उठता है कि जब सत्ताधारी दल गरीबी रोजगार, मंहगाई जैसे विषयों को अपने घोषणापत्र का हिस्सा नहीं बना रहा है तो फिर वह चुनाव किन मुद्दों पर लड़ रहा है।

2024 के आम चुनाव के लिए भी पक्ष-विपक्ष और सहयोगी विरोधी लगभग सभी प्रकार के दलों ने अपने घोषणा पत्र जारी कर दिये हैं। सत्ता पक्ष के घोषणा पत्र के अलावा लगभग सभी दलों ने युवाओं, कामगारों, और रोजगार की बात की है। कोई बेरोजगारी भत्ते की घोषणा कर रहा है तो कोई एक करोड़ नौकरियों का वादा कर रहा है, इसके उलट दस साल से सत्ता पर काबिज राजनीतिक दल रोजगार पर बात ही नहीं कर रहा है, जबकि पहले चुनाव में वह बेरोजगारी को मुद्दा बनाकर ही सत्ता तक पहुंचा था, सवाल उठता है कि जब सत्ताधारी दल गरीबी रोजगार, मंहगाई जैसे विषयों को अपने घोषणापत्र का हिस्सा नहीं बना रहा है तो फिर वह चुनाव किन मुद्दों पर लड़ रहा है।

2024 के आम चुनाव के लिए भी पक्ष-विपक्ष और सहयोगी विरोधी लगभग सभी प्रकार के दलों ने अपने घोषणा पत्र जारी कर दिये हैं। सत्ता पक्ष के घोषणा पत्र के अलावा लगभग सभी दलों ने युवाओं, कामगारों, और रोजगार की बात की है। कोई बेरोजगारी भत्ते की घोषणा कर रहा है तो कोई एक करोड़ नौकरियों का वादा कर रहा है, इसके उलट दस साल से सत्ता पर काबिज राजनीतिक दल रोजगार पर बात ही नहीं कर रहा है, जबकि पहले चुनाव में वह बेरोजगारी को मुद्दा बनाकर ही सत्ता तक पहुंचा था, सवाल उठता है कि जब सत्ताधारी दल गरीबी रोजगार, मंहगाई जैसे विषयों को अपने घोषणापत्र का हिस्सा नहीं बना रहा है तो फिर वह चुनाव किन मुद्दों पर लड़ रहा है।