ब्लॉक के कई स्थानों पर नल का पानी नहीं मिल रहा है मुख्यमंत्री नितीश कुमार की नल के पानी की महत्वाकांक्षी योजना केवल ब्लॉक की कई पंचायतों के वार्डों में दिखाई दे रही है लोग खुद पीने के पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं कोई स्लीपर मनोज कुमार नहीं है रविभूषण शर्मा, मुन्ना कुमार, रवि पटेल, अथगर अली, सुरेश दीपक कुमार, कई लोगों ने कहा कि गाँव में नल के पानी का काम ठीक से नहीं हुआ है और लोगों को नल का पानी नहीं मिल रहा है। यिया गांव के लोगों को खुद पानी नहीं मिल रहा है, जिससे लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। कहीं मोटर जल जाती है और कहीं टैंक टूट जाता है, इसलिए कोई काम नहीं है। गाँव के लोगों ने दरवाजे का नल नहीं तोड़ा है। पाइप सड़क के किनारे से सिर्फ दस इंच नीचे लगाया गया है और कुछ दिनों के बाद कई जगहों पर पाइप है। ऐसे कई घर हैं जहां पाइप नहीं लगाई गई है। लोग नल के पानी के लिए तरस रहे हैं लेकिन लोगों की समस्याओं को कोई नहीं सुन रहा है।

किसी भी समाज को बदलने का सबसे आसान तरीका है कि राजनीति को बदला जाए, मानव भारत जैसे देश में जहां आज भी महिलाओं को घर और परिवार संभालने की प्रमुख इकाई के तौर पर देखा जाता है, वहां यह सवाल कम से कम एक सदी आगे का है। हक और अधिकारों की लड़ाई समय, देश, काल और परिस्थितियों से इतर होती है? ऐसे में इस एक सवाल के सहारे इस पर वोट मांगना बड़ा और साहसिक लेकिन जरूरी सवाल है, क्योंकि देश की आबादी में आधा हिस्सा महिलाओं का है। इस मसले पर बहनबॉक्स की तान्याराणा ने कई महिलाओँ से बात की जिसमें से एक महिला ने तान्या को बताया कि कामकाजी माँओं के रूप में, उन्हें खाली जगह की भी ज़रूरत महसूस होती है पर अब उन्हें वह समय नहीं मिलता है. महिलाओं को उनके काम का हिस्सा देने और उन्हें उनकी पहचान देने के मसले पर आप क्या सोचते हैं? इस विषय पर राय रिकॉर्ड करें

मुख्यमंत्री नितीश कुमार की महत्वाकांक्षी योजना नल जल को ब्लॉक की कई पंचायतों में मानकीकृत किया जा रहा है। लोग अच्छे पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं। लेकिन इस विषय में रुचि लेने वाला कोई नहीं है। विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।

नासिक में रहने वाली मयूरी धूमल, जो पानी, स्वच्छता और जेंडर के विषय पर काम करती हैं, कहती हैं कि नासिक के त्र्यंबकेश्वर और इगतपुरी तालुका में स्थिति सबसे खराब है। इन गांवों की महिलाओं को पानी के लिए हर साल औसतन 1800 किमी पैदल चला पड़ता है, जबकि हर साल औसतन 22 टन वज़न बोझ अपने सिर पर ढोती हैं। और ज्यादा जानने के लिए इस ऑडियो को क्लिक करें।

बिहार राज्य के जिला चम्पारण से अमरूल आलम , मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहते है कि गांव में जागरूकता अभियान चलाया गया।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" के नारे से रंगी हुई लॉरी, टेम्पो या ऑटो रिक्शा आज एक आम दृश्य है. पर नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च द्वारा 2020 में 14 राज्यों में किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि योजना ने अपने लक्ष्यों की "प्रभावी और समय पर" निगरानी नहीं की। साल 2017 में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट में हरियाणा में "धन के हेराफेरी" के भी प्रमाण प्रस्तुत किए। अपनी रिपोर्ट में कहा कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ स्लोगन छपे लैपटॉप बैग और मग खरीदे गए, जिसका प्रावधान ही नहीं था। साल 2016 की एक और रिपोर्ट में पाया गया कि केंद्रीय बजट रिलीज़ में देरी और पंजाब में धन का उपयोग, राज्य में योजना के संभावित प्रभावी कार्यान्वयन से समझौता है।

मध्याह्न भोजन की समीक्षा में लापरवाही बरतनेवाले राज्य के 1111 प्रखंड साधनसेवी (बीआरसी) का वेतन अगले आदेश तक के लिए रोक दिया गया है। मध्याह्न भोजन योजना निदेशालय ने शुक्रवार यह कार्रवाई की। साथ ही इनके तीन दिन के वेतन की भी कटौती हो सकती है। एक से दस अप्रैल तक निरीक्षण के क्रम में इन प्रखंड साधनसेवी के कामकाज में खामी पाए जाने के बाद यह कार्रवाई हुई है। इन प्रखंड साधनसेवी से स्पष्टीकरण मांगा गया है। तीन दिनों के अंदर इन्हें जवाब देना है। सबसे अधिक सीवान जिले के 148 प्रखंड साधन सेवी पर कार्रवाई हुई है। वहीं मधुबनी के 69, लखीसराय के 64 और पटना जिला के 40 प्रखंड साधनसेवी पर गाज गिरी है।

महिलाओं की लगातार बढ़ती हिस्सेदारी और उसके सहारे में परिवारों के आर्थिक हालात सुधारने की तमाम कहानियां हैं जो अलग-अलग संस्थानों में लिखी गई हैं, अब समय की मांग है कि महिलाओं को इस योजना से जोड़ने के लिए इसमें नए कामों को शामिल किया जाए जिससे की ज्यादातर महिलाएं इसका लाभ ले सकें। दोस्तों आपको क्या लगता है कि मनरेगा के जरिए महिलाओँ के जीवन में क्या बदलाव आए हैं। क्या आपको भी लगता है कि और अधिक महिलाओं को इस योजना से जोड़ा जाना चाहिए ?

मनरेगा में भ्रष्टाचार किसी से छुपा हुआ नहीं है, जिसका खामियाजा सबसे ज्यादा दलित आदिवासी समुदाय के सरपंचों और प्रधानों को उठाना पड़ता है, क्योंकि पहले तो उन्हें गांव के दबंगो और ऊंची जाती के लोगों से लड़ना पड़ता है, किसी तरह उनसे पार पा भी जाएं तो फिर उन्हें प्रशासनिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस मसले पर आप क्या सोचते हैं? क्या मनरेगा नागरिकों की इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम हो पाएगी?

भारत का आम समाज अक्सर सरकारी सेवाओं की शिकायत करता रहता है, सरकारी सेवाओं की इन आलोचनाओं के पक्ष में आम लोगों सहित तमाम बड़े बड़े अर्थशास्त्रियों तक का मानना है कि खुले बाजार से किसी भी क्षेत्र में काम कर रही कंपनियों में कंपटीशन बढ़ेगा जो आम लोगों को बेहतर सुविधाएं देगा। इस एक तर्क के सहारे सरकार ने सभी सेवाओं को बाजार के हवाले पर छोड़ दिया, इसमें जिन सेवाओं पर इसका सबसे ज्यादा असर हुआ वे शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर पड़ा है। इसका खामियाजा गरीब, मजदूर और आम लोगों को भुगतना पड़ता है।