ये विशाल है, नारौल, अहमदाबाद से और साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से एक दिहाड़ी मज़दूर नागेंद्र नाथ यादव की परेशानी से हमें अवगत करा रहे हैं, जो अहमदाबाद, भटवा के निवासी हैं और लॉक डाउन में में इन्हें अभी तक कहीं से, किससे भी प्रकार की सहायता नहीं मिली है। किसी तरह लोगों से माँगकर इनका काम चल रहा है।
ये विशाल है अहमदाबाद के वटवा विस्तार से और साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से एक दिहाड़ी मज़दूर इंद्रजीत सिंह की परेशानी से हमें अवगत करा रहे हैं, जिनकी कम्पनी बंद है इस समय। लॉक डाउन में में इन्हें अभी तक कहीं से, किससे भी प्रकार की सहायता नहीं मिली है। ये साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से सरकार से अपने जैसे लोगों की सहायता करने की अपील कर रहे हैं।
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ये हेमलता जी अहमदाबाद, गुजरात से हैं और कोरोना वायरस के चलते हुई तालाबंदी के कारण गरीब कामगारों, विशेषतया अंतरप्रांतीय गरीब कामगारों को रोज़मर्रा के जीवन में आ रही परेशानियों के बारे में बता रही हैं। गुजरात सरकार द्वारा इनकी मदद के लिए शुरू की गयी अन्न-भरण योजना के तहत प्रवासी कामगारों को सिर्फ़ आधार कार्ड दिखाने पर राशन और गुजरात के कामगारों को राशन कार्ड होने के कारण उनके बैंक खातों में एक हज़ार रुपए भी दे रही है। लेकिन कुछ ही कामगारों को इसका लाभ मिला है और आज भी अधिकांश कामगार किसी तरह एक समय ही भोजन कर पा रहे हैं। लेकिन प्रवासी कामगारों के पास गुजरात का राशन कार्ड नहीं होने की वजह से उन्हें ये आर्थिक मदद नहीं मिल पा रही है।साझा मंच के माध्यम से ये गुजरात सरकार से अपील कर रही हैं कि अन्न-भरण की योजना में वह गरीब प्रवासी कामगारों के समस्याओं को देखते हुए उनकी भी आर्थिक मदद की जाय, जिससे तालाबंदी के इस बुरे समय में उन्हें जीवन-यापन में मदद मिले।
ये अहमदाबाद, गुजरात से ग़ुड्डु यादव बोल रहे हैं और अपने परिवार के साथ लॉक डाउन में फँसे हुए हैं। इनके पास खाने की बहुत दिक़्क़त है और इनका कहना है कि कोरोना से ये भले बच जाएँ, लेकिन भूख से ज़रूर मर जाएँगे। ये साझा मंच मोबाइल वाणी से राशन की मदद करने की प्रार्थना कर रहे हैं।
ये किरण यादव अहमदाबाद, गुजरात से बोल रही हैं, जो दिहाड़ी मज़दूर हैं। अपने दो बच्चों और पति के साथ लॉक डाउन में फंसी हैं। इन्हें अभी तक कोई मदद नहीं मिली है और इन्हें डर है कि कोरोना से नहीं, बल्कि भूखमरी से मर जाएँगी। साझा मंच के माध्यम से मदद की गुहार लगा रही हैं।
ये हेमलता जी वटवा गाँव में रहने वाले उत्तर प्रदेश और बिहार के मज़दूरों की समस्या के बारे में बता रही हैं कि उनके पास राशन कार्ड न होने के कारण अभी तक कोई भी सरकारी मदद या फिर राशन की सहायता नहीं मिली है, जिसकी वजह से लॉक डाउन की अवधि में उन्हें अत्यधिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। सरकार को उनकी इस परेशानी को ध्यान में रखते हुए उन्हें राशन की उपलब्धता सुनिश्चित करानी चाहिए।
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