मनरेगा में भ्रष्टाचार किसी से छुपा हुआ नहीं है, जिसका खामियाजा सबसे ज्यादा दलित आदिवासी समुदाय के सरपंचों और प्रधानों को उठाना पड़ता है, क्योंकि पहले तो उन्हें गांव के दबंगो और ऊंची जाती के लोगों से लड़ना पड़ता है, किसी तरह उनसे पार पा भी जाएं तो फिर उन्हें प्रशासनिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस मसले पर आप क्या सोचते हैं? क्या मनरेगा नागरिकों की इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम हो पाएगी?

मजदूरों से जाना गाँव की बात

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ऑटोमोबाइल इण्डस्ट्री कॉण्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन (AICWU) द्वारा बीते मंगलवार (6 फ़रवरी) को होण्डा के मानेसर प्लाण्ट के पास दोपहर की शिफ़्ट बदलने के वक़्त मज़दूरों के बीच पर्चा वितरण अभियान चलाया गया।होण्डा (HMSI) कम्पनी के इस प्लाण्ट में दोपहिया वाहनों (टू व्हीलर्स) बाइक और स्कूटी का निर्माण किया जाता है। आई.एम.टी. मानेसर के सेक्टर 3 के इस होण्डा प्लांट में सबसे ज़्यादा ठेका वर्कर काम करते हैं। अभियान के दौरान ऑटोसेक्टर की होण्डा के अलावा सत्यम, हिताची, तथा कूलर व फ्रीज बनाने वाली कम्पनी फ्रीगोगलास के मज़दूरों से बात हुई। बातचीत करने पर पता चला कि जिनका वेतन क़रीब 12-16 हज़ार है। लेकिन इतनी महँगाई में इतने कम वेतन में घर चलाना मुश्किल होता जा रहा है। सस्ते से सस्ते मज़दूरों को निचोड़ने के लिए एक तरफ़ हर जगह मज़दूरों का ठेका प्रथा के साथ-साथ अप्रेण्टिस व नीम ट्रेनी के नाम पर बेगारी पर खटाया जाता है। वहीं दूसरी तरफ़ वहीं फ़र्ज़ी दस्तावेजों, जबरन वी.आर.एस. (सेवानिवृत्ति), बंदी, आँशिक या पूर्ण तालाबन्दी, तबादले, झूठे आरोपों आदि के नाम पर छँटनी के जरिये स्थायी रोज़गार पर हमला तेज़ किया जा रहा है। इस शोषण व अन्याय ख़िलाफ उठने वाले प्रतिरोध को कमज़ोर करने के लिए कार्यस्थलों पर हमारी एकता तो काफ़ी हद तक स्थायी-अस्थायी मज़दूरों में बाँट कर कमजोर किया जा चुका है और अब समाज में जाति-धर्म और लोकल-बाहरी के नाम पर तेज़ किया जा रहा है। अब ऐसी स्थिति में शोषण व अन्याय के ख़िलाफ़ अपनी वर्गीय एकजुटता को मज़बूत करने की जरूरत है। साथ ही वर्ष 2005 के संघर्ष से प्रेरणा लेते हुए दोबारा लामबन्द होना होगा। साथियों, होण्डा वर्ष 2005 की घटना ऑटोमोबाइल सेक्टर के मज़दूरों के संघर्ष की अहम घटना है। इसके संघर्ष की अहमियत को पूरी पट्टी के मज़दूरों में याद किया जाता है। होण्डा के मज़दूरों के साथ-साथ अन्य कारख़ानों के मज़दूर भी संघर्ष की राह पर थे, जिसकी अगुआई होण्डा मज़दूरों ने की थी। मज़दूरों ने अपनी जुझारू एकता के दम पर संघर्ष को एक हद तक अपने पक्ष में मोड़ा था। लेकिन वर्ष 2019 में क़रीब 2500 पुराने ठेका मज़दूरों की छँटनी के ख़िलाफ़ संघर्ष की हार से आज परिस्थिति पलट चुकी है। इस पर तत्काल गम्भीर मन्थन करने की जरूरत है। इससे सही सबक निकाल कर ही आगे बढ़ा जा सकता है। तभी हम अपनी बुनियादी माँगों को हासिल ही नहीं बल्कि भी कायम रख सकते हैं। ऐसे में सभी मज़दूरों से आगामी 3 मार्च को अपने माँगपत्रक के ज़रिये भगतसिंह जनअधिकार यात्रा के दूसरे चरण में शामिल होने का आह्वान करते हैं। अपनी वर्गीय एकता को मज़बूत करने लिए हमें ‘फूट डालो-राज करो’ की साजिश के जरिये हमें आपस में बाँटने वाली ताकतों से सावधान रहने की जरूरत है। अब हम मिलकर एक बार फिर से अपनी आवाज़ को दिल्ली में बैठी हुकूमत को दस्तक ही नहीं बल्कि चेतावनी भी देंगे कि अगर समय रहते हमारी समस्याओं व माँगों पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले दिनों में हम इस अन्याय के ख़िलाफ़ संघर्ष को तेज़ करते जायेंगे। इसलिए आने वाली 3 मार्च, रविवार को सुबह 11 बजे जन्तर-मन्तर पर इकट्ठा होकर अपना माँग पत्र पेश करेंगे महँगाई, बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ तथा सबको रोज़गार, आपसी भाईचारे के लिए निकाली जा रही जनअधिकार यात्रा गुड़गाँव, मानेसर और धारूहेड़ा के इलाके से 11 और 12 फ़रवरी को गुजरगी। इसमें इसमें शामिल होने के लिए मोबाइल नंबर 8397861640 पर सम्पर्क कर सकतें है। प्रमुख माँगें इस प्रकार हैं :- 1. छँटनी पर रोक लगाओ! 2. ठेका प्रथा बन्द करो! 3. सबको स्थायी रोज़गार की गारण्टी करो! 4. महँगाई पर रोक लगाओ! 5. न्यूनतम मासिक मज़दूरी 25,000 करो 6. कार्यस्थलों पर सुरक्षा के पुख़्ता इन्तज़ाम करो! 7. मजदूर विरोधी चार लेबर कोड रद्द करो 8. यूनियन अधिकार पर हमला बन्द करो ऐसी ही खबरें सुनने के लिए जुड़े रहें मोबाइल वाणी के साथ। नमस्कार

पूस की रात में हल्कू ठंड के कारण अलाव को छोड़कर अपने खेत को देखने बस इसीलिए नही जाता क्योंकि ठंड बहुत थी। लेकिन आज 2023 में लोग अपने राज्य को छोड़कर दूसरे राज्य में नौकरी करने को मजबूर है। ज्यादा सुनने के लिए इस ऑडियो को क्लिक करें।

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