बिहार के रहने वाले आज़ाद कुमार ने साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि वो दिल्ली एनसीआर के फरीदाबाद स्थित बलभगढ़ शहर में फँसे हुए है। उन्हें किरायदार मकान से निकाल दिए है। उनके पास खाने के लिए पैसे नहीं है।
दिल्ली एनसीआर के फ़रीदाबाद के वार्ड नंबर 23 से सुधीर सिंह ने साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि वो रादनिक एक्सपोर्ट में सात साल तक कार्य किये थे। वहां कमिटी की हेड मैडम उनका पैसा रोक कर रखी हुई हैं। माँगने पर केवल धमकी ही दी जाती हैं। पुलिस द्वारा भी कोई सहायता नहीं मिलती हैं। पैसे भी सही से नहीं मिलता हैं। दूसरी कंपनी में कार्य करते हुए ग्यारह महीनें हो गए लेकिन अभी तक परमानेंट नहीं किया गया और पैसा भी नहीं मिल रहा हैं।
हरियाणा राज्य के फरीदाबाद जिले से समर चौधरी साझा मंच के माध्यम से शायरी प्रस्तुत कर रहे है
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मनोहर लाल कश्यप साझा मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि साझा मंच के माध्यम से कई जानकारी प्राप्त हुई ,कार्यक्रम के माध्यम से किसी भी समस्याओं का समाधान की जानकारी दी जाती है। इसी तरह साझा मंच कार्य करता रहे
Feb. 24, 2019, 3:44 p.m. | Tags: personal expressions acknowledgement
दिल्ली एनसीआर फरीदाबाद से बहादुर सिंह साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से बताते हैं, कि सरकार द्वारा जारी किया गया 2019 अंतरिम बजट गरीब जनता एवं निजी क्षेत्र में कार्य कर रहे लोगों के लिए अधिक लाभकारी नहीं है। यह बजट मध्यम वर्ग के लोगों के लिए ही लाभदायक है। जिस प्रकार सरकार द्वारा किसानों को प्रतिदिन 17 रूपए प्रतिदिन के हिसाब से दिए जाने की घोषणा की गई है, इससे किसानों को कितना लाभ मिलेगा। साथ ही ढाई लाख रूपए इनकम टेक्स के रूप में जमा करना था उसे पांच लाख रुपया कर दिया गया है। कई बार यह देखा जाता है की प्राइवेट सेक्टर में जो मजदुर कार्य करते हैं, उनके लिए कम्पनी के द्वारा कार्ड बना कर ठेकेदार मंडल में रख दिया जाता है। दोबारा छः माह बाद कार्ड को रेनुवल करवा कर जॉइनिंग दिखा दिया जाता है। साथ ही चार से छः माह बाद मजदुरों को वेतन दिया जाता है। ऐसी स्थिति में मजदूरों को क्या करना चाहिए।
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सवाल बजट का है। तो ये सवाल कुछ यूँ है कि थाली से रोटी गायब है और हम सलाद की गुणवत्ता पर सवाल उठा रहे हों। यहाँ न्यूनतम् वेतन नहीं मिल रहा है, चाहे वह मज़दूर हो या खेतिहर मज़दूर। 17 रुपये हों या 1700 अगर मिलेंगे भी तो ज़मींदार किसान को, भूमिहीन खेतिहर मज़दूर को नहीं।मज़दूरों की असंगठन और डर की वजह से ठेकेदारी की समस्या नासूर हो चुकी है। मज़दूर लड़ने से परहेज करने लगा है इसलिए व्यवस्था मे बैठे लोग सरेआम कानून की धज्जियाँ उड़ाते हैं।"रिज्वानिंग की हेराफेरी" एक बड़ी समस्या बन चुकी है।मज़दूरों को इसके खिलाफ़ लेबर आॅफिस मे चिट्ठी लिखनी चाहिए। RTI से उन चिट्ठियों पर जवाब मांगना चाहिए। लेबर कोर्ट मे केस डालना चाहिए। हाईकोर्ट मे रिट डालनी चाहिए। यह सब संगठन बनाने से और आसान हो जाता है।कानून मे ठेकेदारी पर रोक है। "रिज्वानिंग की हेराफेरी" कानूनन निषिद्ध है।
पैन एशिया में काम कर रहे फ़िरोज़ कंपनी के भुगतान से परेशान हैं। ओवरटाइम भी नहीं।की साल काम करने के बाद भी ठेकेदार के भरोसे।
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दिल्ली फरीदाबाद सेक्टर-82 के बतौला गांव से रफ़ि और इनके साथ प्रवीण कुमार हैं वे साझा मंच के माध्यम से बताते हैं कि सरकार द्वारा प्रत्येक साल बजट निकाला जाता है। और सरकार द्वारा यह घोषणा भी की जाती है कि इस बजट से दुतीये वर्ग के परिवार वालों के लिए काफी लाभदायक होगा।जो जमीनी स्तर पर लागु नहीं किया जाता है। साथ ही सरकार द्वारा निकाली गई जीएसटी उससे मजदूरों को काफी परेशानी होती है उनका सारा काम बंद पड़ गया है। जो भी योजना निकाली जाती है उसका लाभ दुतीये वर्ग वालों को नहीं मिलता यही। मांग करने पर कहा जाता है बैंक में जाओ वहां इसका लाभ दिया जाता है। बैंक से बात करने पर रेंट एग्रीमेन्ट की मांग की जाती है। अतः सरकार जो भी योजना निकालती है तो उससे पहले हर पहलु की जाँच करनी चाहिए। ताकि गरीब तबके के लोगों को ज्यादा परेशानी ना हो
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फरीदाबाद से बहादुर सिंह जी साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से ये बता रहे है कि बड़ी-बड़ी कंपनियों में लोगों से 8 घंटे की जगह 12 से लेकर 16 घंटे काम लिया जाता है। लेकिन उन्हें ना तो वेतन दिया जाता है और ना ही उन्हें कानून के अनुसार जो सुविधाएं मिलनी चाहिए वो सुविधाएं दी जाती है।ये भी वह पर काम किये थे और इन्हे मात्र एक महीने काम करा कर निकाल दिया गया। और दुबारा काम पर नहीं रखा गया।और ये काफी कोशिश करते है फिर भी इन्हे काम नहीं मिलता है
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Dec. 17, 2019, 5:51 p.m. | Tags: govt entitlements int-PAJ