बिहार राज्य के पूर्वी चम्पारण जिला से अमरूल आलम ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि भादो के मौसम में आसमान से आग उगल रहा है। जहां फसल की हरियाली देख कर किसानों के चेहरे खिले होते थे,वहीं आज अपने फसल को देखकर किसान चिंतित हैं। मौसम के बदले रूप को देखकर लोगों की हालत ख़राब है। तेज धुप और गर्मी के कारण लोगों को घर और बाहर कहीं चैन नही मिल रहा है। लम्बे समय तक गर्म धूप में रहने के कारण लोग बीमार हो रहे हैं। तेज धूप के कारण सबसे ज्यादा प्रभावित मजदूर हैं ,जो बुखार और दस्त से पीड़ित हैं। अगर यहां इसी तरह धूप रही तो किसानों की समस्या बढ़ सकती है। गाँवों में ऊपर वाले बाड़ की खेतों में धान की फसलों से पानी सूखने लगा है, जबकि अभी निचले भाग के खेतों में पानी पर्याप्त है।

अगर इस जहां में मजदूरों का नामोंनिशां न होता, फिर न होता हवामहल और न ही ताजमहल होता!! नमस्कार /आदाब दोस्तों,आज 1 मई को विश्व अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस या मई दिवस मना रहा है।यह दिन श्रमिक वर्ग के संघर्षों और विजयों से भरा एक समृद्ध और यादगार इतिहास है। साथियों,देश और दुनियाँ के विकास में मजदूर भाई-बहनों का योगदान सराहनीय है।हम मजदूर भाई-बहनों के जज्बे को सलाम करते हैं और उनके सुखमय जीवन की कामना करते हैं। मोबाइल वाणी परिवार की तरफ से मजदूर दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !

हमारे लिए रोजी-रोटी चुनाव से अधिक आवश्यक मोतिहारी लोकसभा क्षेत्र में करीब एक माह बाद छठे चरण में 25 मई को मतदान होना है। शहर-बाजार के चौक-चौराहे से लेकर गांव के खेत-खलिहान तक हर तरफ चुनावी चर्चा शुरू हो गयी है। इस चुनावी माहौल के बीच प्रवासी मजदूरों का जत्था रोजी-रोटी की तलाश में प्रदेश जाने को मजबूर हैं। इन प्रवासियों के मन मे वोटिंग की इच्छा तो है, परन्तु कंपनी द्वारा दूसरे मजदूर को काम पर रख लेने की स्थिति में रोजी छूटने के डर से काम पर लौटने की मजबूरी है। वोटिंग की लालसा पर रोजी छूटने का भय भारी पड़ रहा है। शुक्रवार दोपहर एक बजे के करीब बापूधाम मोतिहारी रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर दो पर सप्तक्रांति एक्सप्रेस के इंतजार में बैठे कल्याणपुर के मनोज महतो कहते हैं कि वोट और रोजगार दोनों जरूरी है। हमारे वोट से ही मजबूत सरकार बनेगी। चुनाव के मौके पर घर पर रहने की इच्छा तो बहुत थी, लेकिन कंपनी का ठीकेदार बारबार काम पर लौटने के लिए फोन कर रहा है, जिसके चलते उनको बाहर जाना पड़ रहा है। पीपरा के पिंटू कुमार कहते है कि होली में बड़ी मुश्किल से घर आये थे। परिवार जनों के साथ त्योहार मना कर काम पर वापस लौट रहे हैं। देश तरक्की कर रहा है, पर अपने यहां रोजी-रोजगार का अभाव है। अगर अपने यहां भी रोजगार मिलने लगे तो कोई भी प्रवासी बाहर जाना नहीं चाहता। भारत इलेक्ट्रॉनिक्स में इंजीनियर तुरकौलिया के उदय कुमार कहते हैं कि उनकी तो परमानेंट ड्यूटी है। होली के मौके पर घर आये थे। वैलेट पेपर से मतदान के लिए अप्लाई किया है। कहते हैं कि मौका मिला तो आधुनिक भारत के लिए वोट जरूर करेंगे। जमशेदपुर के लिए टिकट कराने आये गायघाट के राजीव रंजन कहते है कि स्वच्छ छवि के उम्मीदवार को वोट करेंगे। मलाही के बिलटू सहनी ने कहा कि रोजी-रोजगार की मजबूरी है, नहीं तो वे भी चुनाव बाद ही बाहर जाते। संग्रामपुर के दिनेश कुमार दिल्ली की एक प्रतिष्ठित कंपनी में चार वर्ष से काम कर रहे हैं। कम्पनी से फोन आने के बाद काम पर लौट रहे है। अगर कंपनी से पांच दिन की छुट्टी मिल जाएगी, तो वोट करने जरूर आएंगे। कोटवा के अशोक महतो गाजियाबाद की एक फैक्ट्री में मजदूरी करते है। कहते है कि मजबूरी है काम पर वापस जाना पड़ रहा है। अगर गांव पर रहता तो वोट देने जरूर जाता। बहरहाल प्रवासियों के वोटिंग की इच्छा पर रोजी-रोटी की तलाश भारी पड़ती नजर आ रही है।

महिलाओं की लगातार बढ़ती हिस्सेदारी और उसके सहारे में परिवारों के आर्थिक हालात सुधारने की तमाम कहानियां हैं जो अलग-अलग संस्थानों में लिखी गई हैं, अब समय की मांग है कि महिलाओं को इस योजना से जोड़ने के लिए इसमें नए कामों को शामिल किया जाए जिससे की ज्यादातर महिलाएं इसका लाभ ले सकें। दोस्तों आपको क्या लगता है कि मनरेगा के जरिए महिलाओँ के जीवन में क्या बदलाव आए हैं। क्या आपको भी लगता है कि और अधिक महिलाओं को इस योजना से जोड़ा जाना चाहिए ?

मनरेगा में भ्रष्टाचार किसी से छुपा हुआ नहीं है, जिसका खामियाजा सबसे ज्यादा दलित आदिवासी समुदाय के सरपंचों और प्रधानों को उठाना पड़ता है, क्योंकि पहले तो उन्हें गांव के दबंगो और ऊंची जाती के लोगों से लड़ना पड़ता है, किसी तरह उनसे पार पा भी जाएं तो फिर उन्हें प्रशासनिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस मसले पर आप क्या सोचते हैं? क्या मनरेगा नागरिकों की इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम हो पाएगी?

भारत का आम समाज अक्सर सरकारी सेवाओं की शिकायत करता रहता है, सरकारी सेवाओं की इन आलोचनाओं के पक्ष में आम लोगों सहित तमाम बड़े बड़े अर्थशास्त्रियों तक का मानना है कि खुले बाजार से किसी भी क्षेत्र में काम कर रही कंपनियों में कंपटीशन बढ़ेगा जो आम लोगों को बेहतर सुविधाएं देगा। इस एक तर्क के सहारे सरकार ने सभी सेवाओं को बाजार के हवाले पर छोड़ दिया, इसमें जिन सेवाओं पर इसका सबसे ज्यादा असर हुआ वे शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर पड़ा है। इसका खामियाजा गरीब, मजदूर और आम लोगों को भुगतना पड़ता है।

नमस्कार दोस्तों, मोबाइल वाणी पर आपका स्वागत है। तेज़ रफ्तार वक्त और इस मशीनी युग में जब हर वस्तु और सेवा ऑनलाइन जा रही हो उस समय हमारे समाज के पारंपरिक सदस्य जैसे पिछड़ और कई बार बिछड़ जाते हैं। ये सदस्य हैं हमारे बढ़ई, मिस्त्री, शिल्पकार और कारीगर। जिन्हें आजकल जीवन यापन करने में बहुत परेशानी हो रही है। ऐसे में भारत सरकार इन नागरिकों के लिए एक अहम योजना लेकर आई है ताकि ये अपने हुनर को और तराश सकें, अपने काम के लिए इस्तेमाल होने वाले ज़रूरी सामान और औजार ले सकें। आज हम आपको भारत सरकार की विश्वकर्मा योजना के बारे में बताने जा रहे हैं। तो हमें बताइए कि आपको कैसी लगी ये योजना और क्या आप इसका लाभ उठाना चाहते हैं। मोबाइल वाणी पर आकर कहिए अगर आप इस बारे में कोई और जानकारी भी चाहते हैं। हम आपका मार्गदर्शन जरूर करेंगे। ऐसी ही और जानकारियों के लिए सुनते रहिए मोबाइल वाणी,

पिछले 10 सालों में गेहूं की एमएसपी में महज 800 रुपये की वृद्धि हुई है वहीं धान में 823 रुपये की वृद्धि हुई है। सरकार की तरफ से 24 फसलों को ही एमएसपी में शामिल किया गया है। जबकि इसका बड़ा हिस्सा धान और गेहूं के हिस्से में जाता है, यह हाल तब है जबकि महज कुछ प्रतिशत बड़े किसान ही अपनी फसल एमएसपी पर बेच पाते हैं। एक और आंकड़ा है जो इसकी वास्तविक स्थिति को बेहतर ढ़ंग से बंया करत है, 2013-14 में एक आम परिवार की मासिक 6426 रुपये थी, जबकि 2018-19 में यह बढ़कर 10218 रुपये हो गई। उसके बाद से सरकार ने आंकड़े जारी करना ही बंद कर दिए इससे पता लगाना मुश्किल है कि वास्तवितक स्थिति क्या है। दोस्तों आपको सरकार के दावें कितने सच लगते हैं। क्या आप भी मानते हैं कि देश में गरीबी कम हुई है? क्या आपको अपने आसपास गरीब लोग नहीं दिखते हैं, क्या आपके खुद के घर का खर्च बिना सोचे बिचारे पूरे हो जाते हैं? इन सब सरकारी बातों का सच क्या है बताइये ग्रामवाणी पर अपनी राय को रिकॉर्ड करके

कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केवल उनका ही नहीं, बल्कि बिहार समेत पूरे देश के वंचितों का सम्मान किया है। कर्पूरी सामाजिक समरसता के प्रतीक थे। उक्त बातें बुधवार को बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के सौ वे जन्मदिन के अवसर पर स्थानीय महात्मा गांधी समेकित कृषि अनुसंधान संस्थान परिसर में उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण के मौके पर अपने संबोधन में पूर्व केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्री तथा स्थानीय सांसद राधामोहन सिंह ने कही। उन्होंने आगे कहा कि कर्पूरी ठाकुर से उनका व्यक्तिगत सम्बंध रहा है। विधानसभा भंग करो आंदोलन में उनके साथ भागलपुर जेल गए। उनके साथ काम करने का मौका मिला है। वही बिहार सरकार के पूर्व मंत्री प्रमोद कुमार ने कहा कि मोदी सरकार ने गरीबों का विकास किया और गरीबों के लाल कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर सम्मानित किया। मोदी की सरकार ने कर्पूरी जी के सपनों को साकार करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही। मौके पर केवीके प्रमुख डॉ. अरविंद कुमार सिंह, मुखिया हेमंत कुमार, संतोष शर्मा, डॉ. एसके पूर्वे, राजू सिंह, पवन गुप्ता, नेहा पारीख, मनीष कुमार, गुड्डू कुमार आदि मौजूद थे।

सरकार हर बार लड़कियों को शिक्षा में प्रोत्साहित करने के लिए अलग-अलग योजनाएं लाती है, लेकिन सच्चाई यही है कि इन योजनाओं से बड़ी संख्या में लड़कियां दूर रह जाती हैं। कई बार लड़कियाँ इस प्रोत्साहन से स्कूल की दहलीज़ तक तो पहुंच जाती है लेकिन पढ़ाई पूरी कर पाना उनके लिए किसी जंग से कम नहीं होती क्योंकि लड़कियों को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने और पढ़ाई करने के लिए खुद अपनी ज़िम्मेदारी लेनी पड़ती है। लड़कियों के सपनों के बीच बहुत सारी मुश्किलें है जो सामाजिक- सांस्कृतिक ,आर्थिक एवं अन्य कारकों से बहुत गहरे से जुड़ा हुआ हैं . लेकिन जब हम गाँव की लड़कियों और साथ ही, जब जातिगत विश्लेषण करेंगें तो ग्रामीण क्षेत्रों की दलित-मज़दूर परिवारों से आने वाली लड़कियों की भागीदारी न के बराबर पाएंगे। तब तक आप हमें बताइए कि * -------आपके गाँव में या समाज में लड़कियों की शिक्षा की स्थिति क्या है ? * -------क्या सच में हमारे देश की लड़कियाँ पढ़ाई के मामले में आजाद है या अभी भी आजादी लेने की होड़ बाकी है ? * -------साथ ही लड़कियाँ को आगे पढ़ाने और उन्हें बढ़ाने को लेकर हमे किस तरह के प्रयास करने की ज़रूरत है ?