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डायन एक कुप्रथा है जो पहले राजस्थान के क्षेत्रों में काफी प्रचलन में था।इस प्रथा में ग्रामीण औरतों पर डायन यानी तांत्रिक शक्तियों से शिशुओं को मारने वाली अंधविश्वास से उस पर लगातार निर्दयापूर्ण मार दिया जाता था ।इस प्रथा पर सर्व प्रथम अप्रैल 1853 ईसवी में मेवाड़ में महाराणा स्वरूप सिंह के समय में खेरवाड़ा (उदयपुर) में इसे गैर कानूनी घोषित किया गया था।वर्तमान में झारखंड राज्य में डायन एक कुप्रथा सबसे ऊपर NCRB के रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2001 से 2014 डायन होने के आरोप में 464 महिलाओं की निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई थी जिसमे ज्यादातर महिलाएं आदिवासी थी पुलिस इस पर कार्यवाही भी नही कर सकती थी क्युकी उस समय लोगो का समर्थन भी हुआ करता था।लेकिन आज युग अलग है विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हमारे देश ने इतना विकाश कर लिया है की इन सब अंधविश्वास के लिए हमारे समाज में कोई जगह नही हैं महिलाएं आज समय के साथ बदल गई है सभी आज पुरषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलती है जो की सही भी है कहा जाता है की जब एक पुरुष पढ़ता है तो खुद के लिए पढ़ता है लेकिन जब एक महिला पढ़ती है तो वो पूरे समाज के लिए पढ़ती है ।इसलिए आज हमे ये प्रण लेना चाहिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और डायन जैसी कुप्रथाओं को समाज से खतम करे।
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एक ऐसा गांव जो आजादी के बाद हुए बिकास को चिढ़ाती है
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गिरफ्तार अपराधी
पिपरवार स्थित ज्यादातर विद्यालयों में नही है पर्याप्त तड़ित चालक।
पानी की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण पढ़ने वालों बच्चो को होती है परेशानी दूर कुवें से जाकर रस्सी बाल्टी के सहारे बोतलों में भरकर पानी पीकर बुझाते है अपनी प्यास पानी निकालने के क्रम किसी अनहोनी की आशंका।
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