Transcript Unavailable.

Transcript Unavailable.

दोस्तों, भारत के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट से यह पता चला कि वर्तमान में भारत के करीब 6.57 प्रतिशत गांवों में ही वरिष्ठ माध्यमिक कक्षा 11वीं और 12वीं यानी हायर एजुकेशन के लिए स्कूल हैं। देश के केवल 11 प्रतिशत गांवों में ही 9वीं और 10वीं की पढ़ाई के लिए हाई स्कूल हैं। यदि राज्यवार देखें तो आज भी देश के करीब 10 राज्य ऐसे हैं जहां 15 प्रतिशत से अधिक गांवों में कोई स्कूल नहीं है। शिक्षा में समानता का अधिकार बताने वाले देश के आंकड़े वास्तव में कुछ और ही बयान करते हैं और जहां एक तरफ शिक्षा के क्षेत्र में उन्नति समाज की प्रगति का संकेत देती है, वहीं लड़कियों की लड़कों तुलना में कम संख्या हमारे समाज पर प्रश्न चिह्न भी लगाती है? वासतव में शायद आजाद देश की नारी शिक्षा के लिए अभी भी पूरी तरह से आजाद नहीं है। तब तक आप हमें बताइए कि * ------क्या सच में हमारे देश की लड़कियाँ पढ़ाई के मामले में आजाद है या अभी भी आजादी लेने लाइन में खड़ी है ? * ------आपके हिसाब से लड़कियाँ की शिक्षा क्यों नहीं ले पा रहीं है ? लड़कियों की शिक्षा क्यों ज़रूरी है ? * ------साथ ही लड़कियाँ की शिक्षा के मसले पर आपको किससे सवाल पूछने चाहिए ? और इसे कैसे बेहतर बनाया जा सकता है ?

Transcript Unavailable.

Transcript Unavailable.

Transcript Unavailable.

Transcript Unavailable.

कहते हैं बचपन जीवन का सबसे अनमोल समय होता है लेकिन उसी बचपन में पढ़ाई लिखाई के बजाय अगर बच्चे बाल मजदूरी करने लगे तो उनका बचपन नष्ट हो जाता है। खबर सुनने के लिए ऑडियो क्लिक करें

बिहार राज्य के जमुई जिले के गिद्धौर प्रखंड से मोबाइल वाणी संवाददाता रंजन कुमार ने धनेश्वर यादव से साक्षात्कार लिया जिसमें उन्होंने जानकारी दी कि कोरोना काल में सरकार द्वारा जब लॉकडाउन लगा दिया गया और सभी शिक्षण संस्थान को बंद कर दिया गया तो धनेश्वर यादव के दोनों पुत्र को भोजन भात करने में काफी परेशानी हो गया. जिसके कारण इनके दोनों बच्चे बीच में ही पढ़ाई को छोड़ दिए और मजदूरी करने के लिए पलायन कर गए। आज दोनों बच्चे जयपुर में हैं और वहां मजदूरी का काम कर रहे हैं।बच्चे अपने घर परिवार को चला रहे हैं। विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।

Transcript Unavailable.