अधिकांश व्यक्तिगत पट्टे पुरुषों के नाम पर होते हैं. सामुदायिक अधिकारों में भी महिलाओं को भी कम प्रतिनिधित्व दिया जाता है. इसके चलते महिलाएं केवल खेत मजदूर बनकर रह जाती हैं. महिलाओं को इसका नुकसान यह होता है कि बैंक, बीमा तथा दूसरी सरकारी सहायता का लाभ नहीं उठा पाती है, जो उनके लिए चलाई जा रही हैं.

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उत्तर प्रदेश राज्य के ग़ाज़ियाबाद ज़िले के लोनी से सुरेश कश्यप ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि ये मजदूर हैं और फैक्ट्री मालिक समय से वेतन नही देते हैं। श्रमिकों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है