इस एपिसोड के मुख्य विषय, वर्षा जल संग्रहण, को दर्शाता है। "बूंद-बूंद से सागर" मुहावरा छोटे प्रयासों से बड़े परिणाम प्राप्त करने की भावना को व्यक्त करता है। यह श्रोताओं को प्रेरित करता है कि वर्षा की हर बूंद महत्वपूर्ण है और उसका संग्रहण करके हम बड़े बदलाव ला सकते हैं। क्या आप वर्षा जल को इक्कट्ठा करने और सिंचाई से जुडी किसी रणनीति को अपनाना चाहेंगे? और क्या आपके समुदाय में भी ऐसी कहानियाँ हैं जहाँ लोगों ने इन उपायों का इस्तेमाल करके चुनौतियों का सामना किया है?

यह एपिसोड बदलते मौसम और असामान्य बारिश के कारण कृषि क्षेत्र पर पड़ने वाले विभिन्न प्रभावों की व्यापक चर्चा करता है। फसल उत्पादन, मिट्टी की गुणवत्ता, पानी प्रबंधन और किसानों की आजीविका पर पड़ने वाले असर का विस्तृत विवरण दिया गया है। साथ ही, इन चुनौतियों से निपटने के लिए किसानों द्वारा अपनाए जा रहे समाधानों और सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला गया है।

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उत्तरप्रदेश राज्य के बाँदा ज़िला से खेम सिंह ,श्रमिक वाणी के माध्यम से बताते है कि महंगाई के कारण किसान सही से खेती नहीं कर पा रहे है। महँगाई के कारण ही किसान खेतों के लिए व्यवस्था नहीं कर पा रहे है

उत्तरप्रदेश राज्य के हमीरपुर ज़िला से तेज़ प्रताप ,श्रमिक वाणी के माध्यम से बताते है कि पर्यावरण बचाने के लिए जल संरक्षित करना ज़रूरी है। खेत पर अगर पानी भरा रहता है तो उसे संरक्षित कर लेना चाहिए। और इसी को सिंचाई के लिए इस्तेमाल करना चाहिए। पेड़ पौधे भी लगानी चाहिए ताकि खेतों की मिट्टी न बहे। पेड़ की कमी से ऑक्सीजन की भी कमी हो जाती है। इसीलिए अधिक से अधिक मात्रा में पेड़ लगानी चाहिए

उत्तरप्रदेश राज्य के हमीरपुर ज़िला से तेज़ प्रताप को श्रमिक वाणी के माध्यम से कुछ लोगों ने बताया कि पर्यावरण बचाने के लिए पेड़ पौधे लगाना चाहिए ,जिससे ऑक्सीजन मिलेगा जो मनुष्य और जीव जंतुओं के लिए आवश्यक है। वहीं बरसात के पानी को भी जमा करना चाहिए जो आगे चल कर सिंचाई का काम करेगी

उत्तरप्रदेश राज्य के गाज़ीपुर ज़िला से नागेंद्र ,श्रमिक वाणी के माध्यम से बताते है कि पूर्वांचल क्षेत्र में कही सूखा कही बाढ़ से अस्त व्यस्त जनजीवन हो गया है। कही धान की फसलें जल रहे हैं ,पानी की आस में धान पीली होती जा रही है और किसान बारिश का इंतजार कर रहे हैं

बिहार राज्य के गया से साकेत ,साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से बताते है कि बिल्हाड़ी के बलवा ग्राम स्थित नहर जो लक्ष्मीपुर -दिघवारा तक क्षेत्र में पानी पहुँचाता है ,किसानों द्वारा इस नहर के पानी से सिंचाई का काम होता है। लेकिन नहर की सफ़ाई नहीं हुई है ,घास से भरी हुई है ,इससे किसानों को बहुत परेशानी होती है। इसकी सफ़ाई होनी चाहिए

दोस्तों, फसले बिना केमिकल के जी जाती हैं पर पानी के बिना तो जमीन बेजान ही है! मवेशियों में भी कहां इतनी जान होगी कि वो खेत जोत पाएं, हमें दूध दे पाएं! पानी तो सबको चाहिए , पर... साथियों, हमें बताएं कि पानी के प्राकृतिक स्त्रोत खत्म होने से आपको किस तरह की दिक्कतें हो रही हैं? क्षेत्र के कुएं, पोखर और तालाब प्रशासन ने खत्म कर दिए हैं या फिर वे सूख रहे हैं? क्या इन्हें बचाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं? अगर स्त्रोत सूख रहे हैं तो आपके पास पीने के पानी का क्या विकल्प है? क्या खेतों में पानी नहीं पहुंचने से फसलों को नुकसान हो रहा है? पानी की कमी के कारण किसानों और पशुपालकों को किस तरह की दिक्कतें हो रही हैं? खेतों में पानी पहुंचाने के लिए आपने क्या व्यवस्था की है और क्या यह पर्याप्त है? दोस्तों, पानी अहम है क्योंकि ये हमें जीवन देता है और आप तो जानते ही हैं.... जिंदगी जरूरी है!