दिल्ली से संवाददाता रफ़ी की बातचीत साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से आया नगर निवासी राम करण से हुई। राम करण बताते हैं कि वे दिल्ली के आया नगर में रहते थे और गुडगांवा में काम करते थे। जब कम्पनी छोटी-छोटी गलती पर काम से निकाल दिया करती थी तो अपने हक़ को पाने के लिए स्वयं आवाज उठाते थे। लेकिन जब कोर्ट में जाते थे तो वहां कोई सुनवाई नहीं होता था। यदि कोई श्रमिक जागरूक होते हैं तो वे किसी वकील से या संस्था से जुड़े व्यक्ति से अपनी समस्या साझा करते हैं और उनकी राय लेते हैं।और जो भी जानकारी उन्हें मिलती है उसके अनुसार ही अपना काम करते हैं लेकिन दूसरी ओर जो श्रमिक जागरूक नहीं होते हैं वे सीधे लेबर कॉर्ड में जा कर अपना समय बरबाद करते हैं। साथ ही जब श्रमिकों को तारीख़ मिलने पर वे कोर्ट जाते हैं तो एक दिन का काम छूट जाता है और दिहाड़ी भी उन्हें नहीं मिल पाता है। कम्पनी को जब यह खबर मिलती है की श्रमिक कोर्ट का चक्क्र लगा रहे हैं तो कम्पनी श्रमिक को काम पर नहीं रखती है। यह सोच कर की ये तो यूनियन का आदमी है। जबकि मजदुर अपने हक़ और इंसाफ को पाने के लिए लेबर कोर्ट का चक्क्र लगाते हैं। वहीँ श्रमिक किसी यूनियन के माध्यम से मुकदमा दर्ज करती है तो उन्हें 5 या 10% खर्चे के रूप में पैसे देने पड़ते हैं और वकील से जुड़ कर करते हैं तो 10% खर्चा लिया जाता है।साथ ही जब श्रमिक साझा मंच की सहायता से कोई कार्य को करती है तो निःशुल्क कार्य हो जाता है। यदि कोर्ट की करवाई आसान करने के लिए ऐसी कोई व्यवस्था को लागु की जाए जहाँ मामले को ऑनलाइन लॉगिन करके सुनवाई की तारीख मिल जाए या आदेश प्राप्त कर ली जाए। साथ ही अदालत की करवाई को ऑनलाइन श्रमिक देख सकें ऐसी सुविधा आ जाए तो श्रमिकों को काफी लाभ मिलेगा उनका समय बचेगा साथ ही उस दिन की मजदूरी भी नहीं कटेगा। क्योंकि कोई भी ऐसी कम्पनी अबतक सामने नहीं आई है जो मजदूरों के हित के लिए सोचे उनकी सहायता करे। यदि मोबाइल वाणी मजदूरों की सहायता और उनकी समस्या को सरल बनाने के लिए कोई एप्प जारी करती है तो उसमे यह सिस्टम अवश्य दिया जाए जैसे मजदूरों को किस तारीख में अदालत पहुंचना है,कोर्ट के क्या आदेश आए हैं उसकी जानकारी आसानी से मिल जाए तो श्रमिकों को बहुत सहूलियत होगी। दूसरी बात जब गाँव में दो पक्षों में बीच किसी बात को लेकर मतभेद हो जाता है तो इस मामले को लेकर सबसे पहले लोग 100 नंबर पर फोन कर अपनी बात रखते हैं। क्योंकि ग्राम पंचयत के मुखिया की बातों को लोग ज्यादा नहीं मानते हैं।