जैसा कि मैं ग्राम प्रधान भाजपा सदस्य ग्राम लोनयासा पंचायत कुपहर पासन सर जिला दिवस से बोल रहा हूं , मैं कहता हूं कि हाल ही में हुए नगरपालिका चुनावों के लिए आचार संहिता लागू होने के बाद सदाधिकार के लोग अब हम मक्खी की ओर लूट रहे हैं , इसलिए मैं एक नमूना प्रस्तुत कर रहा हूं कि देववर जिले के सभी गरीब लोग जो सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत सार्वजनिक वितरण दुकानदार हैं । उन्होंने अत्याचार शुरू कर दिए हैं और सार्वजनिक वितरण प्रणाली से , वे चावल के वितरण में लोगों को लगातार गुमराह कर रहे हैं और गाँव जाकर बहुत चावल देकर उन्हें परेशान कर रहे हैं । पिंटले में दस किलोग्राम की कटौती की जाती है , यह व्यवसाय वह दस साल से कर रहे हैं , कोई भी इस पर अंकुश नहीं लगा पाया है और मोदी जी कहते हैं कि अगर हम इसे बचा रहे हैं , तो भी हम इसे आगे बढ़ा रहे हैं और उनका शोषण और उत्पीड़न किया जाता है , इसलिए यह देवघर जिले का कोई है । जी . एस . को देवर ब्लॉक पर छापा मारने के लिए कहें और शरत ब्लॉक में उन्हें धन्यवाद दें ।

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purane toun holl ka v hoga sundari karan

bagodar parkhand ke khambhara dem parytako ko or v lubhsyega kyoki es prisar ko dhai karor ki lagat se viksit kiya jayega

भारत में शादी के मौकों पर लेन-देन यानी दहेज की प्रथा आदिकाल से चली आ रही है. पहले यह वधू पक्ष की सहमति से उपहार के तौर पर दिया जाता था। लेकिन हाल के वर्षों में यह एक सौदा और शादी की अनिवार्य शर्त बन गया है। विश्व बैंक की अर्थशास्त्री एस अनुकृति, निशीथ प्रकाश और सुंगोह क्वोन की टीम ने 1960 से लेकर 2008 के दौरान ग्रामीण इलाके में हुई 40 हजार शादियों के अध्ययन में पाया कि 95 फीसदी शादियों में दहेज दिया गया. बावजूद इसके कि वर्ष 1961 से ही भारत में दहेज को गैर-कानूनी घोषित किया जा चुका है. यह शोध भारत के 17 राज्यों पर आधारित है. इसमें ग्रामीण भारत पर ही ध्यान केंद्रित किया गया है जहां भारत की बहुसंख्यक आबादी रहती है.दोस्तों आप हमें बताइए कि *----- दहेज प्रथा को लेकर आप क्या सोचते है ? और इसकी मुख्य वजह क्या है ? *----- समाज में दहेज़ प्रथा रोकने को लेकर हमें किस तरह के प्रयास करने की ज़रूरत है ? *----- और क्यों आज भी हमारे समाज में दहेज़ जैसी कुप्रथा मौजूद है ?

चुनावी बॉंड में ऐसा क्या है जिसकी रिपोर्ट सार्वजनिक होने से बचाने के लिए पूरी जी जान से लगी हुई है। सुप्रीम कोर्ट की डांट फटकार और कड़े रुख के बाद बैंक ने यह रिपोर्ट चुनाव आयोग को सौंप दी, अब चुनाव आयोग की बारी है कि वह इसे दी गई 15 मार्च की तारीख तक अपनी बेवसाइट पर प्रकाशित करे।

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