बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" के नारे से रंगी हुई लॉरी, टेम्पो या ऑटो रिक्शा आज एक आम दृश्य है. पर नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च द्वारा 2020 में 14 राज्यों में किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि योजना ने अपने लक्ष्यों की "प्रभावी और समय पर" निगरानी नहीं की। साल 2017 में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट में हरियाणा में "धन के हेराफेरी" के भी प्रमाण प्रस्तुत किए। अपनी रिपोर्ट में कहा कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ स्लोगन छपे लैपटॉप बैग और मग खरीदे गए, जिसका प्रावधान ही नहीं था। साल 2016 की एक और रिपोर्ट में पाया गया कि केंद्रीय बजट रिलीज़ में देरी और पंजाब में धन का उपयोग, राज्य में योजना के संभावित प्रभावी कार्यान्वयन से समझौता है।

महिलाओं की लगातार बढ़ती हिस्सेदारी और उसके सहारे में परिवारों के आर्थिक हालात सुधारने की तमाम कहानियां हैं जो अलग-अलग संस्थानों में लिखी गई हैं, अब समय की मांग है कि महिलाओं को इस योजना से जोड़ने के लिए इसमें नए कामों को शामिल किया जाए जिससे की ज्यादातर महिलाएं इसका लाभ ले सकें। दोस्तों आपको क्या लगता है कि मनरेगा के जरिए महिलाओँ के जीवन में क्या बदलाव आए हैं। क्या आपको भी लगता है कि और अधिक महिलाओं को इस योजना से जोड़ा जाना चाहिए ?

मनरेगा में भ्रष्टाचार किसी से छुपा हुआ नहीं है, जिसका खामियाजा सबसे ज्यादा दलित आदिवासी समुदाय के सरपंचों और प्रधानों को उठाना पड़ता है, क्योंकि पहले तो उन्हें गांव के दबंगो और ऊंची जाती के लोगों से लड़ना पड़ता है, किसी तरह उनसे पार पा भी जाएं तो फिर उन्हें प्रशासनिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस मसले पर आप क्या सोचते हैं? क्या मनरेगा नागरिकों की इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम हो पाएगी?

भारत का आम समाज अक्सर सरकारी सेवाओं की शिकायत करता रहता है, सरकारी सेवाओं की इन आलोचनाओं के पक्ष में आम लोगों सहित तमाम बड़े बड़े अर्थशास्त्रियों तक का मानना है कि खुले बाजार से किसी भी क्षेत्र में काम कर रही कंपनियों में कंपटीशन बढ़ेगा जो आम लोगों को बेहतर सुविधाएं देगा। इस एक तर्क के सहारे सरकार ने सभी सेवाओं को बाजार के हवाले पर छोड़ दिया, इसमें जिन सेवाओं पर इसका सबसे ज्यादा असर हुआ वे शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर पड़ा है। इसका खामियाजा गरीब, मजदूर और आम लोगों को भुगतना पड़ता है।

नमस्कार दोस्तों, मोबाइल वाणी पर आपका स्वागत है। तेज़ रफ्तार वक्त और इस मशीनी युग में जब हर वस्तु और सेवा ऑनलाइन जा रही हो उस समय हमारे समाज के पारंपरिक सदस्य जैसे पिछड़ और कई बार बिछड़ जाते हैं। ये सदस्य हैं हमारे बढ़ई, मिस्त्री, शिल्पकार और कारीगर। जिन्हें आजकल जीवन यापन करने में बहुत परेशानी हो रही है। ऐसे में भारत सरकार इन नागरिकों के लिए एक अहम योजना लेकर आई है ताकि ये अपने हुनर को और तराश सकें, अपने काम के लिए इस्तेमाल होने वाले ज़रूरी सामान और औजार ले सकें। आज हम आपको भारत सरकार की विश्वकर्मा योजना के बारे में बताने जा रहे हैं। तो हमें बताइए कि आपको कैसी लगी ये योजना और क्या आप इसका लाभ उठाना चाहते हैं। मोबाइल वाणी पर आकर कहिए अगर आप इस बारे में कोई और जानकारी भी चाहते हैं। हम आपका मार्गदर्शन जरूर करेंगे। ऐसी ही और जानकारियों के लिए सुनते रहिए मोबाइल वाणी,

किशनगंज: डीएम के द्वारा बिहार लघु उद्यमी योजना के पांच लाभुकों को ऋण वितरण किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा वीसी. के माध्यम से 447 करोड़ की लागत से 33 परियोजना का लोकार्पण एवं 621 करोड़ की लागत से 42 परियोजना का शिलान्यास किया गया। तत्पश्चात वित्त चित्र का लोकार्पण किया गया। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा वीसी के माध्यम से पूरे बिहार में उद्योग विभाग के द्वारा क्रियान्वित बिहार लघु उद्यमी योजना के अन्तर्गत चयनित 40 हजार लाभुकों को प्रथम किस्त की राशि 50 हजार विमुक्त कर कार्य काशुभारंभ किया गया।इसी क्रम में किशनगंज जिलान्तर्गत चयनित 650 लाभूकों में से जिला पदाधिकारी तुषार सिंगला के द्वारा 50 हजार की राशि का सांकेतिक चेक प्रदान कर जिले में योजना का शुभारंभ किया गया। विदित हो के योजना के अन्तर्गत कुल 2 लाख की राशि लघु उद्यम की स्थापना हेतु 3 किस्तों में प्रदान किए जाने का प्रावधान है।विमुक्त राशि सीधे लाभुकों के खाते में हस्तान्तरित होगी। योजना का लाभ पाने वाले लाभुक अनवर हक, जमील अख्तर, रितिक कुमार, कंचन देवी, उषा देवी सभी को 50,000 - 50,000 की राशि दी गई।

बिहार राज्य के किशनगंज जिले के मातखोरी पंचायत के वार्ड नंबर दो में पाइप फट जाने से पानी नहीं मिल रहा है

साथियों गर्मी का मौसम आने वाला है और इसके साथ आएगी पानी की समस्या। आज की कड़ी में लाभार्थी रोहित से साक्षात्कार लिया गया है जो जल संरक्षण पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे है।

पिछले 10 सालों में गेहूं की एमएसपी में महज 800 रुपये की वृद्धि हुई है वहीं धान में 823 रुपये की वृद्धि हुई है। सरकार की तरफ से 24 फसलों को ही एमएसपी में शामिल किया गया है। जबकि इसका बड़ा हिस्सा धान और गेहूं के हिस्से में जाता है, यह हाल तब है जबकि महज कुछ प्रतिशत बड़े किसान ही अपनी फसल एमएसपी पर बेच पाते हैं। एक और आंकड़ा है जो इसकी वास्तविक स्थिति को बेहतर ढ़ंग से बंया करत है, 2013-14 में एक आम परिवार की मासिक 6426 रुपये थी, जबकि 2018-19 में यह बढ़कर 10218 रुपये हो गई। उसके बाद से सरकार ने आंकड़े जारी करना ही बंद कर दिए इससे पता लगाना मुश्किल है कि वास्तवितक स्थिति क्या है। दोस्तों आपको सरकार के दावें कितने सच लगते हैं। क्या आप भी मानते हैं कि देश में गरीबी कम हुई है? क्या आपको अपने आसपास गरीब लोग नहीं दिखते हैं, क्या आपके खुद के घर का खर्च बिना सोचे बिचारे पूरे हो जाते हैं? इन सब सरकारी बातों का सच क्या है बताइये ग्रामवाणी पर अपनी राय को रिकॉर्ड करके

दिघलबैंक प्रखंड अंतर्गत तरावड़ी पंचायत ग्राम कचहरी बस्ती वार्ड नंबर 3 में कई वर्षों से नल जल योजना आरंभ नहीं हुआ है ग्रामीणों में काफी गुस्सा का माहौल दिखाओ वही ग्रामीणों का कहना है कि जब से नल जल योजना की शुरुआत हुई है तब से हमारे गांव में शुद्ध पेयजल पानी नहीं आ रहा है। ग्रामीणों का कहना है नल जल योजना सिर्फ कागज में ही दिखता है असल में आज तक हम लोगों को शुद्ध जल नहीं मिला है हम किशनगंज प्रकार प्रशासन से मांग करते हैं कि इस का जांच किया जाए और तुरंत और विलंब इसको चालू की जाए ताकि लोगों को शुद्ध पेयजल मिल सके धन्यवाद