2024 के आम चुनाव के लिए भी पक्ष-विपक्ष और सहयोगी विरोधी लगभग सभी प्रकार के दलों ने अपने घोषणा पत्र जारी कर दिये हैं। सत्ता पक्ष के घोषणा पत्र के अलावा लगभग सभी दलों ने युवाओं, कामगारों, और रोजगार की बात की है। कोई बेरोजगारी भत्ते की घोषणा कर रहा है तो कोई एक करोड़ नौकरियों का वादा कर रहा है, इसके उलट दस साल से सत्ता पर काबिज राजनीतिक दल रोजगार पर बात ही नहीं कर रहा है, जबकि पहले चुनाव में वह बेरोजगारी को मुद्दा बनाकर ही सत्ता तक पहुंचा था, सवाल उठता है कि जब सत्ताधारी दल गरीबी रोजगार, मंहगाई जैसे विषयों को अपने घोषणापत्र का हिस्सा नहीं बना रहा है तो फिर वह चुनाव किन मुद्दों पर लड़ रहा है।

एक अप्रेल से टोल टैक्स में हो जाएगी वृद्धि जिससे जनता की जेब में एक बार फिर महंगाई की मार पड़ेगी

एडीआर संस्था ने अपनी एक और रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में राजनीतिक पार्टियों की कमाई और खर्च का उल्लेख है। यह रिपोर्ट बताती है कि कैसे राजनीतिक पार्टियां अपने विस्तार और सत्ता में बने रहने के लिए बड़े पैमाने पर खर्च करती हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक देश के सबसे बड़े सत्ता धारी दल ने बीते वित्तीय वर्ष में बेहिसाब कमाई की और इसी तरह खर्च भी किया। इस रिपोर्ट में 6 पार्टियों की आय और व्यय के आधार पर तैयार किया गया है। इसमें भाजपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, सीपीआई एम और बीएसपी और एनपीईपी शामिल हैं। दोस्तों, *---- आपको क्या लगता है, कि चुनाव लडने पर केवल राजनीतिक दलों की महत्ता कितनी जरूरी है, या फिर आम आदमी की भूमिका भी इसमें होनी चाहिए? *---- चुनाव आयोग द्वारा लगाई गई खर्च की सीमा के दायेंरें में राजनीतिक दलों को भी लाना चाहिए? *---- सक्रिय लोकतंत्र में आम जनता को केवल वोट देने तक ही क्यों महदूद रखा जाए?

देश के किसान एक बार फिर नाराज़ दिखाई दे रहे हैं। इससे पहले साल नवंबर 2020 में किसानों ने केंद्र सरकार के द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों के रद्द करने के लिए दिल्ली में प्रदर्शन किया था और इसके बाद अगले साल 19 नवंबर 2021 को केंद्र सरकार ने तीनों कानून वापस ले लिए थे, हालांकि इस दौरान करीब सात सौ किसानों की मौत हो चुकी थी। उस समय सरकार ने किसानों की कुछ मांगों पर विचार करने और उन्हें जल्दी पूरा करने का आश्वासन दिया था लेकिन ऐसा अब तक नहीं हआ है। और यही वजह है कि किसान एक बार फिर नाराज़ हैं।

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एक सामान्य समझ है कि कानून और व्यवस्था जनता की भलाई के लिए बनाई जाती है और उम्मीद की जाती है कि जनता उनका पालन करेगी, और इनको तोड़ने वालों पर नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी। इसके उलट भारतीय न्याय संहिता में किये गये हालिया बदलाव जनता के विरोध में राज्य और पुलिस को ज्यादा अधिकार देते हैं, जिससे आभाष होता है कि सरकार की नजर में हर मसले पर दोषी और पुलिस और कानून पूरी तरह से सही हैं।

सरकार द्वारा ट्रक चालकों के लिए ले गए नए नियम के कारण ट्रक चालकों में हड़कंप मचा हुआ है और वह सरकार पर या दवा बनाने का प्रयास कर रहा है कि इस कानून को लागू नहीं किया जाए अन्यथा नौकरी छोड़ देंगे लेकिन सरकार के द्वारा जो कानून ले जा रहे हैं वह ट्रक चालक और आम जनता दोनों के हित में है अगर ट्रक चालक सरकार द्वारा निर्धारित गति सीमा से अपने गाड़ियों का संचालन करें तो सड़क हादसा नहीं होगा लेकिन वह अपनी गतिशिमा के अनुसार चलता है जिसके कारण सड़क हादसा बढ़ रहा है और निर्दोष अपना जान गवा रहा है

लोक आस्था का महापर्व छठ को लेकर गिद्धौर बाजार में सामानों की खरीदारी को लेकर लोगों की भीड़ शुरू हो गयी हैै। छठ पूजा को लेकर फलों की आवक तेज हो गयी है वहीं दाम में वृद्धि हो गयी हैै। इसके साथ सभी पुजन सामाग्री बाजार में सजने लगे हैं। छठ पूजा को लेकर बाजार में सुप डाला, पूजा सामाग्री, नारियल आदि की डिमांड बढ़ गई है। बता दे कि आज रविवार को भगवान सूर्य को पहला अर्घ्य दिया जाएगा तथा कल सोमवार को दूसरे उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। छठ पूजा को लेकर अभी से ही पूरे शहर में छठ मइया के गीत सुनायी देने लगी है। सभी छठ व्रती अपने घरों की सफाई में लगे हैं, छठ पूजा में आस्था का विशेष ध्यान रखा जाता है। छठ घाटों की सफाई के साथ सजावट का काम जारी हो गया हैै। छठ को लेकर विभिन्न समितियों के द्वारा गली मोहल्लों के सजाने का काम किया जा रहा है। छठ पूजा को लेकर सूप 40 से 50 रुपए बिक रहा है।

नहाय-खाय को लेकर कद्दू के दाम में उछाल, 25 से 100 रुपये तक हुई बिक्री