"गांव आजीविका और हम" कार्यक्रम के तहत हमारे कृषि विशेषज्ञ कपिलदेव शर्मा मुर्गीपालन में रानी खेत बीमारी के सम्बन्ध में जानकारी दे रहे हैं। सुनने के लिए ऑडियो पर क्लिक करें 

"गांव आजीविका और हम" कार्यक्रम के तहत हमारे कृषि विशेषज्ञ कपिलदेव शर्मा बकरी पालन में टीकाकरण के बारे में जानकारी दे रहे है अधिक जानकारी के लिए ऑडियो पर क्लिक करें 

"गांव आजीविका और हम" कार्यक्रम के तहत हमारे कृषि विशेषज्ञ कपिलदेव शर्मा कृषि में ड्रोन के लाभ तथा उपयोग के बारे में जानकारियाँ दे रहे है अधिक जानकारी के लिए ऑडियो पर क्लिक करें 

"गांव आजीविका और हम" कार्यक्रम के तहत हमारे कृषि विशेषज्ञ कपिलदेव शर्मा मछली पालन से जुड़ी जानकारियाँ दे रहे है कि किसानों को किस तरह मछली के स्वास्थ्य का ध्यान रखना है । अधिक जानकारी के लिए ऑडियो पर क्लिक करें 

बेमौसम बारिश के कारण रबी की फसल बर्बाद हो रही है । मंगलवार देर रात तक प्रभावित गिधौर प्रखंड में बेमौसम बारिश से रबी की फसल प्रभावित हो रही है । देर रात तेज हवा और अब बारिश , जिसने रबी फसल को बहुत प्रभावित किया है , कुछ स्थानों पर हल्की बारिश , खेतों में जलभराव और ब्लॉक के विभिन्न क्षेत्रों में बारिश हुई है । बारिश और तेज हवा ने रबी की फसलों को प्रभावित किया है । गेहूँ की खड़ी फसल को खेतों में फैला दिया गया है । जिस समय बारिश हो रही थी ,

पिछले 10 सालों में गेहूं की एमएसपी में महज 800 रुपये की वृद्धि हुई है वहीं धान में 823 रुपये की वृद्धि हुई है। सरकार की तरफ से 24 फसलों को ही एमएसपी में शामिल किया गया है। जबकि इसका बड़ा हिस्सा धान और गेहूं के हिस्से में जाता है, यह हाल तब है जबकि महज कुछ प्रतिशत बड़े किसान ही अपनी फसल एमएसपी पर बेच पाते हैं। एक और आंकड़ा है जो इसकी वास्तविक स्थिति को बेहतर ढ़ंग से बंया करत है, 2013-14 में एक आम परिवार की मासिक 6426 रुपये थी, जबकि 2018-19 में यह बढ़कर 10218 रुपये हो गई। उसके बाद से सरकार ने आंकड़े जारी करना ही बंद कर दिए इससे पता लगाना मुश्किल है कि वास्तवितक स्थिति क्या है। दोस्तों आपको सरकार के दावें कितने सच लगते हैं। क्या आप भी मानते हैं कि देश में गरीबी कम हुई है? क्या आपको अपने आसपास गरीब लोग नहीं दिखते हैं, क्या आपके खुद के घर का खर्च बिना सोचे बिचारे पूरे हो जाते हैं? इन सब सरकारी बातों का सच क्या है बताइये ग्रामवाणी पर अपनी राय को रिकॉर्ड करके

पक्ष विपक्ष कड़ी संख्या 49 के तहत मेरा अपना विचार है की एमएसपी सरकार की नीति (पॉलिसी) है कानून (लॉ) नहीं, इसे सरकार संसद में बिना वोटिंग कराए, जब मर्जी रोक सकती है। अगर एमएसपी के लिए कानून बन जाएगा, तो सरकार तय फसलों को एमएसपी पर खरीदने के लिए मजबूर हो जाएगी। इसके अलावा कई राज्यों में एमएसपी लागू भी नहीं है, जैसे- बिहार। वहां राज्य सरकार ने पैक्स (प्राइमरी एग्रीकल्चर कॉपरेटिव सोसाइटीज) का गठन कर, उसे ही किसानों से अनाज खरीदने का जिम्मा दे रखा है। पैक्स को लेकर हमेशा शिकायतें आती हैं। किसान आरोप लगाते हैं कि उन्हें अपने फसल का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। बिचौलियों को कम कीमत पर फसल बेचनी पड़ती है। इसी लिए मेरा व्यक्तिगत विचार है कि एमएसपी के लिए कानून बना दिया जाए। सरकारी खरीद एमएसपी पर हो, जो ऐसा न करे उसे सजा मिले। साथ ही अन्य फसलों को भी एमएसपी के दायरे में लाया जाए।

CRISIL के अनुसार 2022-23 में किसान को MSP देने में सरकार पर ₹21,000 करोड़ का अतिरिक्त भार आता, जो कुल बजट का मात्र 0.4% है। जिस देश में ₹14 लाख करोड़ के बैंक लोन माफ कर दिए गए हों, ₹1.8 लाख करोड़ कॉर्पोरेट टैक्स में छूट दी गई हो, वहां किसान पर थोड़ा सा खर्च भी इनकी आंखों को क्यों खटक रहा है? आप इस पर क्या सोचते है ? इस मसले को सुनने के लिए इस ऑडियो को क्लिक करें

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देश के किसान एक बार फिर नाराज़ दिखाई दे रहे हैं। इससे पहले साल नवंबर 2020 में किसानों ने केंद्र सरकार के द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों के रद्द करने के लिए दिल्ली में प्रदर्शन किया था और इसके बाद अगले साल 19 नवंबर 2021 को केंद्र सरकार ने तीनों कानून वापस ले लिए थे, हालांकि इस दौरान करीब सात सौ किसानों की मौत हो चुकी थी। उस समय सरकार ने किसानों की कुछ मांगों पर विचार करने और उन्हें जल्दी पूरा करने का आश्वासन दिया था लेकिन ऐसा अब तक नहीं हआ है। और यही वजह है कि किसान एक बार फिर नाराज़ हैं।