दिल्ली से असमत अली ने मोबाईल वाणी के माध्यम से भगवान सेप्टा से साक्षात्कार लिया। भगवान सेप्टा ने बताया कि ये किसानों की मांगों को लेकर रामलीला मैदान पहुंचे हैं। इनकी मुख्य मांग कर्ज माफी और एमएसपी है।किसान की हालत बहुत ख़राब है और खेती में घाटा हो रहा है। खेती में लागत ज्यादा है और बाज़ार में माल की कीमत नही मिलती है। विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।

दिल्ली से असमत अली ने मोबाईल वाणी के माध्यम से चतुर्वेदी जी से साक्षात्कार लिया। चतुर्वेदी जी ने बताया कि ये चंदौली से आये हैं और भारतीय किसान यूनियन टिकैत के मंडल प्रवक्ता हैं।इनके साथ सौ लोग भी आए हैं। किसानों की मांगों को लेकर ये आंदोलन कर रहे हैं। अपने हक़ के लिए दिल्ली आए बच्चे,बूढ़े और महिलाओं सभी लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ा है।रास्ते में जगह-जगह पुलिस ने रोका,जिनसे जूझते हुए ये रामलीला मैदान पहुंचे। विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।

दिल्ली से असमत अली ने मोबाईल वाणी के माध्यम से सुनील चौधरी से साक्षात्कार लिया। सुनील चौधरी ने बताया कि इनको अलीगढ़ से दिल्ली आने में छे घंटे लग गए।जगह-जगह पुलिस ने रोका।मगर जज्बा और हिम्मत के साथ ये किसानों की मांग को ले कर रामलीला मैदान पहुंच गए हैं।सुनील चौधरी का कहना है कि किसानों की मांगों को नहीं मानना सरकार को महंगा पड़ेगा। विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।

दिल्ली एनसीआर श्रमिक वाणी का माध्यम से मोहम्मद शाहनवाज की बातचीत लोग समाज पार्टी गौरीशंकर शर्मा एडवोकेट से हुई शर्मा जी बताते हैं किसने की मांग जायज है MSP गारंटी कानून जरूर बनना चाहिए सरकार को अब तक किसानों की मांग माननी चाहिए थी किसानों के साथ सरकार सौतेला बर्ताव कर रही है ऐसा लगता है कि जैसे किसान किसी दूसरे देश से एंकर अपनी मांग मंगवा रहे हैं

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पिछले 10 सालों में गेहूं की एमएसपी में महज 800 रुपये की वृद्धि हुई है वहीं धान में 823 रुपये की वृद्धि हुई है। सरकार की तरफ से 24 फसलों को ही एमएसपी में शामिल किया गया है। जबकि इसका बड़ा हिस्सा धान और गेहूं के हिस्से में जाता है, यह हाल तब है जबकि महज कुछ प्रतिशत बड़े किसान ही अपनी फसल एमएसपी पर बेच पाते हैं। एक और आंकड़ा है जो इसकी वास्तविक स्थिति को बेहतर ढ़ंग से बंया करत है, 2013-14 में एक आम परिवार की मासिक 6426 रुपये थी, जबकि 2018-19 में यह बढ़कर 10218 रुपये हो गई। उसके बाद से सरकार ने आंकड़े जारी करना ही बंद कर दिए इससे पता लगाना मुश्किल है कि वास्तवितक स्थिति क्या है। दोस्तों आपको सरकार के दावें कितने सच लगते हैं। क्या आप भी मानते हैं कि देश में गरीबी कम हुई है? क्या आपको अपने आसपास गरीब लोग नहीं दिखते हैं, क्या आपके खुद के घर का खर्च बिना सोचे बिचारे पूरे हो जाते हैं? इन सब सरकारी बातों का सच क्या है बताइये ग्रामवाणी पर अपनी राय को रिकॉर्ड करके

जन समस्या

CRISIL के अनुसार 2022-23 में किसान को MSP देने में सरकार पर ₹21,000 करोड़ का अतिरिक्त भार आता, जो कुल बजट का मात्र 0.4% है। जिस देश में ₹14 लाख करोड़ के बैंक लोन माफ कर दिए गए हों, ₹1.8 लाख करोड़ कॉर्पोरेट टैक्स में छूट दी गई हो, वहां किसान पर थोड़ा सा खर्च भी इनकी आंखों को क्यों खटक रहा है? आप इस पर क्या सोचते है ? इस मसले को सुनने के लिए इस ऑडियो को क्लिक करें

देश के किसान एक बार फिर नाराज़ दिखाई दे रहे हैं। इससे पहले साल नवंबर 2020 में किसानों ने केंद्र सरकार के द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों के रद्द करने के लिए दिल्ली में प्रदर्शन किया था और इसके बाद अगले साल 19 नवंबर 2021 को केंद्र सरकार ने तीनों कानून वापस ले लिए थे, हालांकि इस दौरान करीब सात सौ किसानों की मौत हो चुकी थी। उस समय सरकार ने किसानों की कुछ मांगों पर विचार करने और उन्हें जल्दी पूरा करने का आश्वासन दिया था लेकिन ऐसा अब तक नहीं हआ है। और यही वजह है कि किसान एक बार फिर नाराज़ हैं।

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