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कोविशील्ड बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया की स्वीकारोकती के बाद सवाल उठता है, कि भारत की जांच एजेंसियां क्या कर रही थीं? इतनी जल्दबाजी मंजूरी देने के क्या कारण था, क्या उन्होंने किसी दवाब का सामना करना पड़ रहा था, या फिर केवल भ्रष्टाचार से जुड़ा मामला है। जिसके लिए फार्मा कंपनियां अक्सर कटघरे में रहती हैं? मसला केवल कोविशील्ड का नहीं है, फार्मा कंपनियों को लेकर अक्सर शिकायतें आती रहती हैं, उसके बाद भी जांच एजेंसियां कोई ठोस कारवाई क्यों नहीं करती हैं?
झारखंड राज्य के गिरिडीह जिला ब्लॉक बेंगाबाद से लक्ष्मण राणा मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे है कि गिरिडीह जिले के भ्रष्ट आईएस अधिकारी द्वारा चौबीस घंटे तक बिगुल बजाने या बिगुल बजाने का आदेश दिया जाता है। यह आवाज झारखंड सरकार के मुख्य सचिव तक भी पहुंचनी चाहिए क्योंकि आम ग्रामीणों की शिकायत है कि जब सोने का समय आता है तो रात भर डी. जे. लाऊड स्पीकर में बजाया जाता है, जो आज आम ग्रामीणों के लिए बहुत बड़ी समस्या बन गयी है। क्षेत्र में कितने लोगों के मरने के बावजूद, अधिकारी इससे सबक नहीं लिए है।
कोई भी राजनीतिक दल हो उसके प्रमुख लोगों को जेल में डाल देने से समान अवसर कैसे हो गये, या फिर चुनाव के समय किसी भी दल के बैंक खातों को फ्रीज कर देने के बाद कैसी समानता? आसान शब्दों में कहें तो यह अधिनायकवाद है, जहां शासन और सत्ता का हर अंग और कर्तव्य केवल एक व्यक्ति, एक दल, एक विचारधारा, तक सीमित हो जाता है। और उसका समर्थन करने वालों को केवल सत्ता ही सर्वोपरी लगती है। इसको लागू करने वाला दल देश, देशभक्ति के नाम पर सबको एक ही डंडे से हांकता है, और मानता है कि जो वह कर रहा है सही है।