सरकार द्वारा लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीट आरक्षित करने और गांवों में पीएम आवास योजना के तहत 70 प्रतिशत से ज्यादा मकान महिलाओं को देने से देश में महिलाओं की गरिमा बढ़ी तो है। हालांकि, इन सबके बावजूद कुछ ऐसे कारण हैं जो महिलाओं को जॉब मार्केट में आने से रोक रहे हैं। भारत में महिलाओं के लिए काम करना मुश्किल समझा जाता है. महिलाएं अगर जॉब मार्केट में नहीं हैं, तो उसकी कई सारी वजहें हैं, जिनमें वर्कप्लेस पर काम के लिए अच्छा माहौल न मिल पाना भी शामिल है . दोस्तों, हर समस्या का समाधान होता है आप हमें बताइए कि *----- नौकरी की तलाश में महिलाओं को किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है। *----- आपके अनुसार महिलाओं के नौकरी से दूर होने के प्रमुख कारण क्या हैं? *----- महिलाओं को नौकरी में बने रहने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
2024 के आम चुनाव के लिए भी पक्ष-विपक्ष और सहयोगी विरोधी लगभग सभी प्रकार के दलों ने अपने घोषणा पत्र जारी कर दिये हैं। सत्ता पक्ष के घोषणा पत्र के अलावा लगभग सभी दलों ने युवाओं, कामगारों, और रोजगार की बात की है। कोई बेरोजगारी भत्ते की घोषणा कर रहा है तो कोई एक करोड़ नौकरियों का वादा कर रहा है, इसके उलट दस साल से सत्ता पर काबिज राजनीतिक दल रोजगार पर बात ही नहीं कर रहा है, जबकि पहले चुनाव में वह बेरोजगारी को मुद्दा बनाकर ही सत्ता तक पहुंचा था, सवाल उठता है कि जब सत्ताधारी दल गरीबी रोजगार, मंहगाई जैसे विषयों को अपने घोषणापत्र का हिस्सा नहीं बना रहा है तो फिर वह चुनाव किन मुद्दों पर लड़ रहा है।
तमाम गैर सरकारी रिपोर्टों के अनुसार इस समय देश में बेरोजगारी की दर अपने उच्चतम स्तर पर है। वहीं सरकारें हर छोटी मोटी भर्ती प्रक्रिया में सफल हुए उम्मीदवारों को नियुक्त पत्र देने के लिए बड़ी-बड़ी रैलियों का आयोजन कर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों को भी आमंत्रित कर रही हैं, जिससे की बताया जा सके कि युवाओं को रोजगार उनकी पार्टी की सरकार होने की वजह से मिल रहा है।
सरकार का दावा है कि वह 80 करोड़ लोगों को फ्री राशन दे रही है, और उसको अगले पांच साल तक दिये जाने की घोषणा की है। वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में यह भी दावा किया कि उनकी सरकार की नीतियों के कारण देश के आम लोगों की औसत आय में करीब 50 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। इस दौरान वित्त मंत्री यह बताना भूल गईं की इस दौरान आम जरूरत की वस्तुओं की कीमतों में कितनी बढ़ोत्तरी हुई है।
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बेरोजगार बच्चों के लिए सरकार से रोजगार की मांग
बिहार के स्कूल में केवल खिचड़ी वं कालेजों में डिग्री बाटी जा रही है-प्रशांत किशोर बिहार के स्कूलों में केवल खिचड़ी व कालेजो में डिग्री बाटी जा रही है । शिक्षा पुरी तरह चौपट हो चुकी है मुख्यमंत्री जी केवल कुर्सी बचाने में लगे हैं उक्त बातें राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कहा । उन्होंने काहा कि बिहार सबसे पिछड़ा,अशिक्षित, बेरोजगारी व भुखमरी वाला राज्य है।अगर स्थिति सुधारनी है तो जाती वाद से उपर उठ कर भोट करना होगा। यह तभी सम्भव है जब यहां के लोग अपनी जिम्मेवारी को समझेंगे।जाति-धर्म के बदले विकास व अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए वोट करेंगे तभी स्थिति सुधरेगी।वे शनिवार को कुण्डवा मध्य विद्यालय कैम्प में जन सुराज यात्रा के 91वें दिन विभिन्न गावों के भ्रमण करने से पहले प्रेस को संबोधित करते हुए कही।उन्होंने बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर कहा कि सरकार की उदासीनता के कारण राज्य की शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त है।वहीं किसानों की स्थिति पर बोलते हुए कहा कि फसलों का उचित मूल्य नहीं मिलने के कारण किसानों की स्थिति दयनीय है।विगत दस वर्षों में राज्य में 13 प्रतिशत धान व एक प्रतिशत गेंहूँ हीं सरकारी मूल्य पर खरीदा गया है।जबकि पंजाब में यह आंकड़ा 70 फीसदी है।सिंचाई की सही व्यवस्था नहीं होना व खाद-बीज की अनुपलब्धता भी किसानों की दयनीय स्थिति का एक कारण है।
रीगा चीनी मिल बंद होने से हजारों लोगों को रोजी-रोटी छिन गया इस बार बिहार सरकार का कोई पहल नहीं हो पा रही है यहां के ग्रामीण मजदूर बिहार सरकार से इस मिल को चालू करने के लिए अपील कर रहे हैं। इस खबर को सुनने के लिए ऑडियो पर क्लिक करें।
बैरगनिया प्रखंड के जमुआ पंचायत ग्राम वासी अजय कुमार को आखिर क्यों बनाने पर रहे हैं ग्रेजुएशन करने के बाद जलेबी, जब यह बात अजय कुमार से मीडिया ने पूछताछ किया तो अजय कुमार ने बताया कि बिहार में उन लोगों को ही नौकरी मिलती है जो पहले से उनके रिश्तेदार किसी न किसी पद पर जॉब कर रहे होते हैं बिहार में शिक्षा लेकर के हंड्रेड में 10 स्टूडेंट ही नौकरी प्राप्त कर पाते हैं बिहार सरकार को इस पर पहल करने की बात कही है। विस्तृत जानकारी के लिए ऑडियो पर क्लिक करें।
सीतामढ़ी जिला के बैरगनिया प्रखंड ग्राम पंचायत जमुआ निवासी अजय कुमार साह b.a. पास करके आखिर क्यों कर रहे हैं छोटा सा मजदूरी सुने इंटरव्यू