माता-पिता के रूप में जहाँ हम परवरिश की खूबियाँ सीखते हैं, वहीँ इन खूबियों का इस्तेमाल करके हम अपने बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास को बढ़ावा दे सकते है। आप अपने बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास को बढ़ाने और उन्हें सीखाने के लिए क्या-क्या तरीके अपनाते है? इस बारे में बचपन मनाओ सुन रहे दूसरे साथियों को भी जानकारी दें। अपनी बात रिकॉर्ड करने के लिए दबाएं नंबर 3.

दो वर्ष पूर्व से बाल गृह मोतिहारी में रह रहे विशेष बालक का गृह खोज शुक्रवार को कुशीनगर, उत्तर प्रदेश स्थित घर पर सुरक्षित पहुंचाया गया । वह बालक 24 नवम्बर 2021 को लापता हो गया था। बालक के गृह को खोजने के लिये सहायक निदेशक बाल संरक्षण इकाई शिवेन्द्र कुमार के निर्देशन में विशेष शिक्षक की एक टीम गठित कर सारी जानकारी एकत्र किया गया। बालक को बिहार एवं उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध मंदिर, मस्जिद, स्टेशन एवं महत्वपूर्ण स्थानों को दिखाया गया। उसके बाद पूर्व के बालकों को गृह पहुंचाने के दौरान लिये गये स्थानों का फोटो दिखाया गया। पिछले सप्ताह एक बालक को तमकोही रोड, कुशीनगर पहुंचाया गया था। तमकोही रोड का विडियो देखने के बाद बालक के चेहरे पर खुशी देखी गयी।

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सुगौली,पू.च:--प्रखंड सह अंचल कार्यालय परिसर में 50 दिव्यांगों के बीच कंबल का वितरण किया गया। इसकी जानकारी देते हुए प्रखंड विकास पदाधिकारी तेज प्रताप त्यागी ने बताया कि प्रखंड के पंचायतों और नगर पंचायत क्षेत्र से आए पचास दिव्यांगों के बीच विभागीय स्तर पर कंबल का वितरण किया गया। उन्होंने बताया कि वितरण के पूर्व दिव्यांगों को कम्बल वितरण की सूचना दे दी गई थी। जिसके बाद दिव्यंगजन प्रखंड कार्यालय परिसर पहुंचे थे। बीडीओ श्री त्यागी ने बताया कि ठंड के मौसम से दिव्यांगों के बचाव के लिए कंबल विभाग द्वारा उपलब्ध कराई गई थी। वहीं कंबल पाकर दिव्यांगजन बड़े खुश दीखे। वितरण के समय बीडीओ तेज प्रताप त्यागी,सहायक परियोजना पदाधिकारी दिवाकर कुमार, राजस्व कर्मचारी अखिलेश कुमार सहित अन्य कर्मी मौजूद रहे।

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बिहार राज्य से मोबाइल वाणी के माध्यम से राधिका कुमारी बता रही हैं की इन्हें एक साल से दिव्यांग पेंशन नहीं मिल रहा है

बिहार राज्य के शिवहर जिला के मसौधा पंचायत थाना पिपराही से राधिका कुमारी मोबाइल वाणी के माध्यम से कहती है कि इन्हें विकलांग पेंशन सात आठ साल से मिलता था लेकिन अभी एक साल से बंद है ,इसकी जानकारी चाहिए।

एक पिता की लड़ाई और संघर्ष ने असाध्य रोग से लड़ रहे सूबे के 243 बच्चों को पढ़ने का हक मिलने की राह खोल दी है। मांसपेशियों को बेहद कमजोर कर खड़े होने और चलने-फिरने तक में नाकाम कर देने वाले रोग डचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से पीड़ित इन बच्चों को घर पर पढ़ाने की व्यवस्था की जाएगी। यह डचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से जूझ रहे 12 वर्षीय बच्चे संस्कार के पिता संतोष कुमार की पहल से संभव हुआ है। संतोष ने ऐसे बच्चों को शिक्षा का अधिकार नहीं मिलने को लेकर सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी और कोई व्यवस्था नहीं होने पर सवाल उठाए। इसके बाद केंद्र सरकार ने राज्यों को इस रोग से पीड़ित बच्चों का ब्योरा जुटाकर शिक्षा का हक दिलाने के आदेश दिए हैं। पटना निवासी संतोष ने आरटीआई लगाई तो इन बच्चों के लिए पढ़ाई का कोई इंतजाम नहीं होने की बात सामने आई। सूबे में 243 बच्चों के डचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के शिकार होने का पता चला। मामला केंद्र सरकार के संज्ञान में लाए जाने पर स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग के अंडर सेक्रेटरी केसी वासुदेवन ने इसे लेकर निर्देश जारी किया है। इसके बाद सूबे में जिलावार ऐसे बच्चों की सूची बनाई गई। राज्य कार्यक्रम अधिकारी ने सभी जिलों से सूची में दर्ज बच्चों के बारे में जरूरी जानकारी भेजने का निर्देश दिया है। मुजफ्फरपुर में 11 और पटना में 40 से अधिक बच्चे इस घातक बीमारी से पीड़ित मिले हैं।

सूबे के स्कूलों में मानसिक दिव्यांगों की संख्या बढ़ रही है। पिछले दो वर्षों में मानसिक दिव्यांग बच्चों की संख्या लगभग दुगुनी हुई है। वर्ष 2021 में राज्यभर में जहां 25 हजार 207 मानसिक दिव्यांग बच्चे नामांकित थे, वहीं 2022 में इनकी संख्या 44 हजार 578 हो गई। हालांकि वर्ष 2019-2020 और 2020-2021 में कोरोना संक्रमण के कारण स्कूल बंद के दौरान बच्चे चिह्नित नहीं किए गए। इधर, बिहार शिक्षा परियोजना परिषद की मानें तो मानसिक दिव्यांग बच्चे स्कूल तो जाते हैं, लेकिन उन्हें पढ़ाने और उनकी मानसिक स्तर को समझने के लिए कोई विशेष शिक्षक नहीं हैं। दूसरी तरफ समग्र शिक्षा के तहत स्कूलों में कुल 44578 मानसिक दिव्यांग बच्चों का नामांकन है और इनके इलाज के लिए कोई इंतजाम नहीं है। यही नहीं विशेष चिकत्सकों की कमी के कारण इनका दिव्यांगता प्रमाण पत्र और यूडीआईडी कार्ड भी नहीं बन रहा है। बिहार शिक्षा परियोजना परिषद की मानें तो राज्य में कुछ विशेष चिकित्सकों को ही दिव्यांगता प्रमाण पत्र और यूडीआईडी कार्ड बनाने का अधिकार है। इसमें जेनरल सर्जन, आर्थोपेडिक, आई स्पेशलिस्ट, ईएनटी और मनोचिकित्सक शामिल हैं। ये सभी सरकारी होने चाहिए, लेकिन इनकी संख्या इतनी कम है कि सभी जिलों के स्कूलों में नामांकित बच्चों का कार्ड बनाने का काम भी पूरा नहीं हो पाता है।