सूबे के स्कूलों में मानसिक दिव्यांगों की संख्या बढ़ रही है। पिछले दो वर्षों में मानसिक दिव्यांग बच्चों की संख्या लगभग दुगुनी हुई है। वर्ष 2021 में राज्यभर में जहां 25 हजार 207 मानसिक दिव्यांग बच्चे नामांकित थे, वहीं 2022 में इनकी संख्या 44 हजार 578 हो गई। हालांकि वर्ष 2019-2020 और 2020-2021 में कोरोना संक्रमण के कारण स्कूल बंद के दौरान बच्चे चिह्नित नहीं किए गए। इधर, बिहार शिक्षा परियोजना परिषद की मानें तो मानसिक दिव्यांग बच्चे स्कूल तो जाते हैं, लेकिन उन्हें पढ़ाने और उनकी मानसिक स्तर को समझने के लिए कोई विशेष शिक्षक नहीं हैं। दूसरी तरफ समग्र शिक्षा के तहत स्कूलों में कुल 44578 मानसिक दिव्यांग बच्चों का नामांकन है और इनके इलाज के लिए कोई इंतजाम नहीं है। यही नहीं विशेष चिकत्सकों की कमी के कारण इनका दिव्यांगता प्रमाण पत्र और यूडीआईडी कार्ड भी नहीं बन रहा है। बिहार शिक्षा परियोजना परिषद की मानें तो राज्य में कुछ विशेष चिकित्सकों को ही दिव्यांगता प्रमाण पत्र और यूडीआईडी कार्ड बनाने का अधिकार है। इसमें जेनरल सर्जन, आर्थोपेडिक, आई स्पेशलिस्ट, ईएनटी और मनोचिकित्सक शामिल हैं। ये सभी सरकारी होने चाहिए, लेकिन इनकी संख्या इतनी कम है कि सभी जिलों के स्कूलों में नामांकित बच्चों का कार्ड बनाने का काम भी पूरा नहीं हो पाता है।