उत्तरप्रदेश राज्य के हरदोई जिला के बेलीगंज से राजीव रंजन त्रिपाठी ने मोबाइल वाणी के माध्यम से विशाल शर्मा से बातचीत किया। बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि मनरेगा मजदूर से जब काम करवाया जाता है तो उन्हें समय से और पूरी मजदूरी नहीं दी जाती है
उत्तरप्रदेश राज्य के हरदोई जिला के बेलीगंज से राजीव रंजन त्रिपाठी ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि अधिकांश लोगों से बात करने पर यह पता चला कि पंचायती राज विभाग द्वारा निश्चित मूल्य पर श्रम दिया जाता है, वे देरी और भ्रष्टाचार के शिकार होते हैं। समय से श्रमिकों को उनकी मजदूरी ना मिलने के कारण वह आत्मीय टूट जाते हैं और उनके घर में आर्थिक तंगी आ जाती है
अगर इस जहां में मजदूरों का नामोंनिशां न होता, फिर न होता हवामहल और न ही ताजमहल होता!! नमस्कार /आदाब दोस्तों,आज 1 मई को विश्व अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस या मई दिवस मना रहा है।यह दिन श्रमिक वर्ग के संघर्षों और विजयों से भरा एक समृद्ध और यादगार इतिहास है। साथियों,देश और दुनियाँ के विकास में मजदूर भाई-बहनों का योगदान सराहनीय है।हम मजदूर भाई-बहनों के जज्बे को सलाम करते हैं और उनके सुखमय जीवन की कामना करते हैं। मोबाइल वाणी परिवार की तरफ से मजदूर दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !
महिलाओं की लगातार बढ़ती हिस्सेदारी और उसके सहारे में परिवारों के आर्थिक हालात सुधारने की तमाम कहानियां हैं जो अलग-अलग संस्थानों में लिखी गई हैं, अब समय की मांग है कि महिलाओं को इस योजना से जोड़ने के लिए इसमें नए कामों को शामिल किया जाए जिससे की ज्यादातर महिलाएं इसका लाभ ले सकें। दोस्तों आपको क्या लगता है कि मनरेगा के जरिए महिलाओँ के जीवन में क्या बदलाव आए हैं। क्या आपको भी लगता है कि और अधिक महिलाओं को इस योजना से जोड़ा जाना चाहिए ?
मनरेगा में भ्रष्टाचार किसी से छुपा हुआ नहीं है, जिसका खामियाजा सबसे ज्यादा दलित आदिवासी समुदाय के सरपंचों और प्रधानों को उठाना पड़ता है, क्योंकि पहले तो उन्हें गांव के दबंगो और ऊंची जाती के लोगों से लड़ना पड़ता है, किसी तरह उनसे पार पा भी जाएं तो फिर उन्हें प्रशासनिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस मसले पर आप क्या सोचते हैं? क्या मनरेगा नागरिकों की इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम हो पाएगी?
भारत का आम समाज अक्सर सरकारी सेवाओं की शिकायत करता रहता है, सरकारी सेवाओं की इन आलोचनाओं के पक्ष में आम लोगों सहित तमाम बड़े बड़े अर्थशास्त्रियों तक का मानना है कि खुले बाजार से किसी भी क्षेत्र में काम कर रही कंपनियों में कंपटीशन बढ़ेगा जो आम लोगों को बेहतर सुविधाएं देगा। इस एक तर्क के सहारे सरकार ने सभी सेवाओं को बाजार के हवाले पर छोड़ दिया, इसमें जिन सेवाओं पर इसका सबसे ज्यादा असर हुआ वे शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर पड़ा है। इसका खामियाजा गरीब, मजदूर और आम लोगों को भुगतना पड़ता है।
मजदूरों के साथ हो रहा खिलवाड़ समाजवादी मजदूर सभा ने मजदूर को उत्पीड़न के खिलाफ सोमवार को कलेक्ट कलेक्टर में प्रदर्शन करते हुए भूख हड़ताल की प्रदर्शन की अध्यक्षता कर रहे हैं मजदूर सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल निगम ने कहा कि प्रदेश वाक्यांश सरकार मजदूरों के साथ खिलवाड़ कर रही है मजदूरों को लगातार शोषण किया जा रहा है उन्होंने कहा कि मजदूर की उत्पीड़न के खिलाफ इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया है... मजदूरों के साथ हो रहा खिलवाड़ समाजवादी मजदूर सभा ने मजदूर को उत्पीड़न के खिलाफ सोमवार को कलेक्ट कलेक्टर में प्रदर्शन करते हुए भूख हड़ताल की प्रदर्शन की अध्यक्षता कर रहे हैं मजदूर सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल निगम ने कहा कि प्रदेश वाक्यांश सरकार मजदूरों के साथ खिलवाड़ कर रही है मजदूरों को लगातार शोषण किया जा रहा है उन्होंने कहा कि मजदूर की उत्पीड़न के खिलाफ इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया है
फर्जी नौकरी से काम कर रहा सफाई कर्मी जांच के आदेश
भाई के गुमशुदा होने की दर्ज कराई रिपोर्ट बेनीगंज/हरदोई_कोतवाली क्षेत्र एक गांव का युवक बाहर मजदूरी करने गया था। जहां से बिना बताए कहीं चला गया है। जिसकी परिजन तलाश कर रहे हैं लेकिन अभी तक कोई सुराग नहीं लग सका। बता दे अमित पुत्र शिवचरन निवासी बक्स खेड़ा कोतवाली बेनीगंज ने लखनऊ के पारा थाने में गुमशुदगी दर्ज कराई है। बताया मेरा 25 वर्षीय भाई मोहित 15 फ़रवरी को लखनऊ आया था जहां अशोक गुप्ता की बेटी रेनू के बुद्धेश्वर बालाजी मंदिर काकोरी मोड़ स्थित प्लांट पर मजदूरी कर वहीं रात गुजारता था। जो 24 फरवरी की सुबह 6 बजे बिना बताए कहीं चला गया जिसकी दिमागी हालत ठीक नहीं है। काफी तलाश की गई लेकिन कोई सुराग नहीं लगा है। जिसका रंग सांवरा लंबाई 5 फिट पैरों में हवाई चप्पल व धारीदार जैकेट काला लोअर पहन रखा है। अचानक मोहित के गायब हो जाने से परिवार में दुःख का माहौल है।
पिछले 10 सालों में गेहूं की एमएसपी में महज 800 रुपये की वृद्धि हुई है वहीं धान में 823 रुपये की वृद्धि हुई है। सरकार की तरफ से 24 फसलों को ही एमएसपी में शामिल किया गया है। जबकि इसका बड़ा हिस्सा धान और गेहूं के हिस्से में जाता है, यह हाल तब है जबकि महज कुछ प्रतिशत बड़े किसान ही अपनी फसल एमएसपी पर बेच पाते हैं। एक और आंकड़ा है जो इसकी वास्तविक स्थिति को बेहतर ढ़ंग से बंया करत है, 2013-14 में एक आम परिवार की मासिक 6426 रुपये थी, जबकि 2018-19 में यह बढ़कर 10218 रुपये हो गई। उसके बाद से सरकार ने आंकड़े जारी करना ही बंद कर दिए इससे पता लगाना मुश्किल है कि वास्तवितक स्थिति क्या है। दोस्तों आपको सरकार के दावें कितने सच लगते हैं। क्या आप भी मानते हैं कि देश में गरीबी कम हुई है? क्या आपको अपने आसपास गरीब लोग नहीं दिखते हैं, क्या आपके खुद के घर का खर्च बिना सोचे बिचारे पूरे हो जाते हैं? इन सब सरकारी बातों का सच क्या है बताइये ग्रामवाणी पर अपनी राय को रिकॉर्ड करके