भारतीय संविधान किसी के आर्टिकल 14 से लेकर आर्टिकल 21 तक समानता की बात कही है, इस समानता धार्मिक आर्थिक राजनीतिक और अवसर की समानता का जिक्र किया गया है। इस समानता किसी प्रकार की जगह नहीं है और किसी को भी धर्म, जाति और समंप्रदाय के आधार पर कोई भेद नहीं किये जाने का भी वादा किया गया है। उत्तर प्रदेश सरकार के हालिया फैसले में साफ तौर पर देखा जा सकता है कि वह धर्म की पहचान के आधार भेदभाव पैदा करने की कोशिश है।दोस्तों आप इस मसले पर क्या सोचते हैं? क्या आप सरकार के फैसले के साथ हैं या फिर इसके खिलाफ, जो भी हो इस मसले पर आपकी क्या राय है? आप इस मसले पर जो भी सोचते हैं अपनी राय रिकॉर्ड करें

मोटाभाई ने महज एक शादी में जितना खर्च किया है, वह उनकी दौलत 118 बिलियन डॉलर का 0.27 है। जबकि उनकी दौलत कृषि संकट से जूझ रहे देश का केंद्रीय बजट का 7.5 प्रतिशत से भी कम है। जिस मीडिया की जिम्मेदारी थी कि वह लोगों को सच बताएगा बिना किसी का पक्ष लिए, क्या यह वही सच है? अगर हां तो फिर इसके आगे कोई सवाल ही नहीं बनता और अगर यह सच नहीं तो फिर मीडिया द्वारा महज एक शादी को देश का अचीवमेंट बताना शुद्ध रूप से मुनाफे से जुड़ा मसला है जो विज्ञापन के रुप में आम लोगों के सामने आता है। क्योंकि मीडिया का लगभग पचास प्रतिशत हिस्सा तो मोटाभाई का खुद का है और जो नहीं है वह विज्ञापन के लिए हो जाता है "कर लो दुनिया मुट्ठी में” की तर्ज पर। दोस्तों, इस मुद्दे पर आप क्या सोचते है ?अपनी राय रिकॉर्ड करें मोबाईलवाणी पर, अपने फोन से तीन नंबर का बटन दबाकर या फिर मोबाईल का एप डाउनलोड करके।

साथियों, आपके यहां पानी के प्रदूषण की जांच कैसे होती है? यानि क्या सरकार ने इसके लिए पंचायत या प्रखंड स्तर पर कोई व्यवस्था की है? अगर आपके क्षेत्र में पानी प्रदूषित है तो प्रशासन ने स्थानीय जनता के लिए क्या किया? जैसे पाइप लाइन बिछाना, पानी साफ करने के लिए दवाओं का वितरण या फिर पानी के टैंकर की सुविधा दी गई? अगर ऐसा नहीं हो रहा है तो आप कैसे पीने के पानी की सफाई करते हैं? क्या पानी उबालकर पी रहे हैं या फिर उसे साफ करने का कोई और तरीका है? पानी प्रदूषित होने से आपको और परिवार को किस किस तरह की दिक्कतें आ रही हैं?

दोस्तों इस तरह के बाबाओं द्वारा चलाई जा रही धर्म की दुकानों पर आपका क्या मानना है, क्या आपको भी लगता है कि इन पर रोक लगाई जानी चाहिए या फिर इनको ऐसे ही चलते ही रहने देना चाहिए? या फिर हर धर्म और संप्रदाय के प्रमुखों द्वारा धर्म के वास्तविक उद्देश्यों का प्रचार प्रसार कर अंधविश्वास में पड़े लोगों को धर्म का वास्तविक मर्म समझाना चाहिए। जो भी आप इस मसले पर क्या सोचते हैं अपनी राय रिकॉर्ड करें ग्रामवाणी पर

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उत्तर प्रदेश राज्य के हरदोई जिला से मोबाइल वाणी संवाददाता अनुराग गुप्ता ने जानकारी दी कि खेती किसानी से लेकर अंतरिक्ष प्रोग्राम में अपनी मौजूदगी दर्ज कराकर इतिहास रच रही महिलाओं के इस दौर में लैंगिक असमानता किसी अभिशाप से कम नहीं है, सरकार के प्रयासों से महिलाओं को विभिन्न क्षेत्रों में हिस्सेदारी तो मिल रही हैं लेकिन वह आज भी पुरुषों के मुकाबले खुद को पीछे पा रही हैं इसकी मुख्य वजह पुरुष सत्ता का एकाधिकार होना है । हरदोई जनपद में इसकी स्थिति पर बात की जाए तो हरदोई जिले में लैंगिक असमानता चरम पर हैं। नगरीय इलाकों में भी विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं को चाहकर भी वह अधिकार नहीं मिल पा रहे जो वह चाहती हैं, ग्रामीणों क्षेत्रो की स्थिति तो बेहद भयाभह है। हरदोई जनपद में सरकार मिशन शक्ति के तहत जहां महिलाओं को उनके कानूनी अधिकार बताकर सुरक्षा के प्रति जागरूक कर रही हैं तो विभिन्न सरकार विभाग भी अपने स्तर पर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं । इसके अलावा तमाम स्वयंसेवी संस्थाएं भी महिलाओं के उत्थान की दिशा में प्रयासरत हैं। दोस्तों, जिन महिलाओं को समानता का अधिकार मिल रहा हैं उनकी संख्या बेहद कम हैं । सरकार को और हम सभी को महिलाओं के साथ साथ पुरुषों को भी लैंगिक समानता को लेकर जागरूक करना पड़ेगा, क्योंकि महिलाओं को समानता का अधिकार तभी मिल पायेगा जब समाज के पुरूष इस दिशा में आगे आकर चली आ रही सामाजिक व धार्मिक परम्पराओं को त्याग कर महिलाओं को अपने समकक्ष खड़ा होने की हिम्मत जुटा पाएंगे । समाज के पुरुषों को यह पहल करनी ही चाहिए ताकि महिलाओं को समानता का अधिकार मिल सके । जो देश व समाज के हित के लिए बेहद जरूरी भी हैं।

उत्तर प्रदेश राज्य के हरदोई जिला से अनुराग गुप्ता ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि लोकतंत्र में सरकार जनता के प्रति जबाबदेह होती हैं, ऐसे में लोकतांत्रिक तरीके से सत्तासीन हुई सरकार को बनाये गए नियमों के तहत ही काम करना चाहिए ।पक्ष-विपक्ष कार्यक्रम के ताजा एपिसोड कड़ी संख्या 71 में 'लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं और सत्ता पक्ष की हठ' पर आधारित रिपोर्ट में बेहद महत्वपूर्ण मुद्दे को उठाया गया। लोकतंत्र में कार्यपालिका, न्यायपालिका व व्यस्थापिका को संविधान द्वारा अधिकार देकर उनको संचालित करने के लिए नियम तय किये गए हैं । लेकिन पिछली सरकार में जिस तरह नियमों की अनदेखी कर काम किया गया, उससे न सिर्फ देश में बल्कि विदेश में भी विरोध के स्वर सुनाई दिए थे । कोई भी संस्थान का अपना कोई मत नहीं होना चाहिए, संस्थान को चाहिए कि उसके लिए जो नियम बनाये गए या तय किये गए उनके अनुसार ही काम करना चाहिए । अब एक नई सरकार का गठन हो चुका है, इस सरकार को अपनी पिछली गलतियों को दोहराना नहीं चाहिए, बल्कि सरकार चलाये के जो नियम बनाये गए उनके अनुसार काम करना चाहिए, ताकि विपक्ष के साथ साथ देश की जनता को भी लगे कि उसने लोकतांत्रिक तरीके से जो सरकार बनाई है वह अपने निजी हित को किनारे कर जनहित में काम कर रही हैं । सत्ता पक्ष की हठ से नई परम्पराओं का श्रीगणेश होना देश के लोकतंत्र व जनता के हित मे नहीं हैं । क्योंकि लोकतंत्र में कब सत्ता परिवर्तन हो जाये यह जनता तय करती हैं, और जब सत्ता दूसरी विचारधारा के हाथ में होती है तो वह भी अपनी नीतियों के हिसाब से काम करेगी बनाये गए नियमों के हिसाब से नहीं । इसलिए लोकतांत्रिक संस्थानो को हठ त्याग कर नई परम्पराओं को शुरू करने से बचना चाहिए और नियमों के हिसाब से ही काम करना चाहिए। विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।

दोस्तों नई सरकार का गठन हो गया है। ऐसे में सरकार से आपकी क्या अपेक्षाए हैं, क्या आपको भी लगता है कि लोकतंत्र के संस्थानों के उनके नियमों के अनुसार ही काम करना चाहिए या सरकार का रुख ठीक है कि वह चुनकर सत्ता में आए हैं, तो अब उनकी मर्जी है कि वे कैसे चलाते हैं। इस मसले पर अपनी राय रिकॉर्ड करें मोबाईलवाणी पर

उत्तरप्रदेश राज्य के जिला हरदोई से बुध सेन सोनी , मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहते है कि प्रेरणा से हो सकता है महिला समाज का उत्थान। लड़का और लड़की को एक समान मानना चाहिए।

दोस्तों, हमारे यह 2 तरह के देश बसते है। एक शहर , जिसे हम इंडिया कहते है और दूसरा ग्रामीण जो भारत है और इसी भारत में देश की लगभग आधी से ज्यादा आबादी रहती है। और उस आबादी में आज भी हम महिला को नाम से नहीं जानते। कोई महिला पिंटू की माँ है , कोई मनोज की पत्नी, कोई फलाने घर की बड़ी या छोटी बहु है , कोई संजय की बहन, तो कोई फलाने गाँव वाली, जहाँ उन्हें उनके मायके के गाँव के नाम से जाना जाता है। हम महिलाओ को आज भी ऐसे ही पुकारते है और अपने आप को समाज में मॉडर्न दिखने की रीती का निर्वाह कर लेते है। समाज में महिलाओं की पहचान का महत्व और उनकी स्थिति को समझने की आवश्यकता के बावजूद, यह बहुत दुःख कि बात है आधुनिक समय में भी महिलाओं की पहचान गुम हो रही है। तो दोस्तों, आप हमें बताइए कि *-----आप इस मसले को लेकर क्या सोचते है ? *-----आपके अनुसार से औरतों को आगे लाने के लिए हमें किस तरह के प्रयास करने की ज़रूरत है *-----साथ ही, आप औरतों को किस नाम से जानते है ?