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आदिवासी छात्र एकता नामक संगठन ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त को पत्र लिखकर चुनाव को पर्व की संज्ञा दिए जाने पर आपत्ति जताई है। संस्था के संयोजक इंद्र हेंब्रम, और केंद्रीय सदस्य राज बांकिरा ने भेजे गए ज्ञापन में कहा यह ठीक है, कि भारत देश पर्व- त्योहारों का देश है ।और विविधता में एकता के रूप में इसकी पहचान है। परंतु लोकसभा चुनाव 2024 के प्रचार में निर्वाचन आयोग का चुनाव को पर्व कहना उचित नहीं इसकी जगह किसी दूसरे उचित शब्द का इस्तेमाल किया जाए जो सभी को मान्य हो।

राँची:- राँची नगर निगम के पूर्व महापौर आशा लकड़ा को राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का सदस्य बनाया गया।

*प्रकृति और पर्यावरण का संरक्षक है जनजातीय समाज : डॉ मिथिलेश कुमार* *आदिवासी समाज के विकास में समकालीन अनुसंधान पद्धति का प्रभाव विषय पर दो दिवसीय सेमिनार संपन्न.* *जनजातीय समाज के विकास पर जोर.* फोटो कैप्शन : मंच पर अथिति व अन्य. सेमिनार में उपस्थित लोग. भुरकुंडा (रामगढ़). जेएम कॉलेज भुरकुंडा में झारखंड के आदिवासी समाज के विकास में समकालीन अनुसंधान पद्धति का प्रभाव विषय पर दो दिवसीय सेमिनार शनिवार को संपन्न हुआ. सेमिनार के सत्र का उद्घाटन विनोबा भावे विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर सह डीन डॉ मिथिलेश कुमार ने दीप प्रज्जवलित कर किया. उनके साथ रामगढ़ कॉलेज की प्राचार्या डॉ रत्ना पांडेय, रामगढ़ कॉलेज की पूर्व प्राचार्या डॉ रेखा प्रसाद, रामगढ़ कॉलेज के भौतिकी विभागाध्यक्ष सह जेएम कॉलेज के सचिव बक्शी ओमप्रकाश सिन्हा, जेएम कॉलेज के प्राचार्य डॉ वीएन तिवार, झारखंड जनजातीय विकास परिषद के अध्यक्ष सह ओपेन यूनिवर्सिटी के नोडल पदाधिकारी डॉ मनोज अगरिया, डॉ अरविंद से मंचासीन थे. सेमिनार के विषय पर बोलते हुए डॉ मिथिलेश कुमार ने कहा कि भारतीय समाज जनजातीय समुदाय से आज भी बहुत कुछ ले रहा है. कहने को तो हम स्वयं को प्रगतिशील व आधुनिक कहते हैं, लेकिन असल मायने में हमने जनजातीय समुदाय को कुछ दिया नहीं है. उनकी अपनी एक विशेष जीवनशैली रही है, जो प्रकृति के बेहद करीब है. आज भी जनजातीय समाज पर्यावरण व प्रकृति के लिए स्वयं को उसका संरक्षक मानता है. मूलत: आज के भौतिकवादी व उपभोक्तावादी समाज से उसने स्वयं को दूर रखा है. हालांकि इस समुदाय में भी एक मध्यवर्गीय वर्ग विकसित हो रहा है. लेकिन मूलरूप से आज भी जनजातीय समाज कई त्रुटियों से दूर है. सेमिनार के प्रारंभ में एक टेक्निकल सत्र का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता डॉ मनोज कुमार अगरिया ने की. डॉ अगरिया ने कहा कि जनजातीय समाज के लोगों के सर्वांगीण विकास के लिए सरकार को झारखंड में एसटी कमीशन व आदिम जनजाति आयोग का गठन करने, झारखंड जनजातीय विश्वविद्यालय शुरु करने, झारखंड में बिरहोर, असुर, गौडी भाषा का संरक्षण करने, आदिम जनजातीय समुदाय को लोकसभा व राज्यसभा में आरक्षण देने, झारखंड के सभी विश्वविद्यालय में आरक्षण रोस्टर का पालन करने की आवश्यकता है. सेमिनार के अंतिम चरण में टूकैन रिसर्च एंड डेवलपमेंट बेंगलुरू के निदेशक केतन मिश्रा के द्वारा सभी लोगों को प्रमाण पत्र दिया गया. सेमिनार में कॉलेज की ओर से डॉ एनके सिंह, डॉ लीला सिंह, डॉ विनोद कुमार सिंह, डॉ शीला सिंह, प्रो सावित्री विश्वकर्मा, डॉ शमा बेगम, डॉ जयदेव सिंह, डॉ वीरेंद्र कुमार सिंह, डॉ नरेंद्र कुमार पाठक, डॉ शिवशंकर सिंह, डॉ रामप्रमोद सिंह, प्रो मनोज कुमार सिंह, प्रो महावीर प्रसाद कुशवाहा, प्रो विपुल कुमार सिंह, प्रो ज्ञानेंद्र दुबे, डॉ नरेंद्र प्रसाद सिंह, प्रो विजय मिश्रा, प्रो अनुज कुमार, डॉ अरुणजय सिंह, डॉ संतोष दांगी, प्रो सुब्रतो घोष, प्रो अवधेश कुमार सिंह, जुबिली कॉलेज भुरकुंडा के प्राचार्य प्रो एनके तिवारी, डॉ विभा राय, डॉ एसएस पांडेय, प्रो सुरेश सिंह, सम्मानित अतिथियों में रामगोपाल अग्रवाल सिहत शिक्षकेत्तर कर्मचारी व विद्यार्थी उपस्थित थे.

अपने हक के लिए अंतिम टीके लड़ने को तैयार

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हूल दिवश पर झारखंड के बीरों को नमन

झारखण्ड राज्य के रांची जिला से तरुण कुमार महतो मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे है कि प्रमाणपत्र बनाने का काम 15 दिनों में पूरा करना है

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