सुनिए डॉक्टर स्नेहा माथुर की संघर्षमय लेकिन प्रेरक कहानी और जानिए कैसे उन्होंने भारतीय समाज और परिवारों में फैली बुराइयों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई! सुनिए उनका संघर्ष और जीत, धारावाहिक 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' में...

दोस्तों इस तरह के बाबाओं द्वारा चलाई जा रही धर्म की दुकानों पर आपका क्या मानना है, क्या आपको भी लगता है कि इन पर रोक लगाई जानी चाहिए या फिर इनको ऐसे ही चलते ही रहने देना चाहिए? या फिर हर धर्म और संप्रदाय के प्रमुखों द्वारा धर्म के वास्तविक उद्देश्यों का प्रचार प्रसार कर अंधविश्वास में पड़े लोगों को धर्म का वास्तविक मर्म समझाना चाहिए। जो भी आप इस मसले पर क्या सोचते हैं अपनी राय रिकॉर्ड करें ग्रामवाणी पर

लोकतंत्र का उत्सव इन चुनावों ने राजनेताओं और जनता को बहुत से सबक दिये हैं। ऐसे सबक जो केवल चुनावी राजनीति में नहीं बल्कि जीवन के हर पहलू में हमें सीखना जरूरी सा है। ये सबक आज के आज़ाद भारत के समाज को समझने के लिए बेहद जरूरी हैं।

डायन एक कुप्रथा है जो पहले राजस्थान के क्षेत्रों में काफी प्रचलन में था।इस प्रथा में ग्रामीण औरतों पर डायन यानी तांत्रिक शक्तियों से शिशुओं को मारने वाली अंधविश्वास से उस पर लगातार निर्दयापूर्ण मार दिया जाता था ।इस प्रथा पर सर्व प्रथम अप्रैल 1853 ईसवी में मेवाड़ में महाराणा स्वरूप सिंह के समय में खेरवाड़ा (उदयपुर) में इसे गैर कानूनी घोषित किया गया था।वर्तमान में झारखंड राज्य में डायन एक कुप्रथा सबसे ऊपर NCRB के रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2001 से 2014 डायन होने के आरोप में 464 महिलाओं की निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई थी जिसमे ज्यादातर महिलाएं आदिवासी थी पुलिस इस पर कार्यवाही भी नही कर सकती थी क्युकी उस समय लोगो का समर्थन भी हुआ करता था।लेकिन आज युग अलग है विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हमारे देश ने इतना विकाश कर लिया है की इन सब अंधविश्वास के लिए हमारे समाज में कोई जगह नही हैं महिलाएं आज समय के साथ बदल गई है सभी आज पुरषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलती है जो की सही भी है कहा जाता है की जब एक पुरुष पढ़ता है तो खुद के लिए पढ़ता है लेकिन जब एक महिला पढ़ती है तो वो पूरे समाज के लिए पढ़ती है ।इसलिए आज हमे ये प्रण लेना चाहिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और डायन जैसी कुप्रथाओं को समाज से खतम करे।

झारखण्ड राज्य के रांची जिला के एक मानसिक रूप से बीमार बच्चे का इलाज कराया गया

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