हम अक्सर देखते और सुनते हैं कि देश के किसी ना किसी कोने में कोई ना कोई मजदूरों का संगठन अपनी मांगों को लेकर सरकार के विरोध में आंदोलन कर ही रहा होता है. कई बार ये विरोध कंपनियों के गैर जिम्मेदराना रवैए के खिलाफ भी होता है. कोलंबिया सरकार ने अपने प्रमुख कपड़ा और फुटवियर उद्योग में श्रमिकों के लिए न्यूनतम मासिक वेतन 2 अमेरिकी डॉलर से बढ़ाकर 194 अमेरिकी डॉलर कर दिया. यह वेतन आने वाले साल के पहले माह से लागू हो जाएगा. हालांकिवहां के स्थानीय कर्मचारी संगठन इस बढोत्तरी को नाकाफी बता रहे हैं. तो दोस्तों, हमें बताएं कि आप अपने वर्तमान वेतन से कितना खुश हैं? क्या आपको नहीं लगता कि सरकार को न्यूनतम मजदूरी दर में इजाफा करने की जरूरत है? क्या आपने कभी अपनी कंपनी या फिर सरकार से वेतन में इजाफे की मांग की? अगर हां तो कैसे और फिर क्या हुआ?

-भारी नुकसान के बाद, गारमेंट हब का तमिलनाडु सरकार को संदेश- प्रवासियों की लगातार आवाजाही रुकनी चाहिए -पोलैंडः पैरोक प्लांट के कर्मचारियों को एक सप्ताह की हड़ताल के बाद जीत मिली

-अनुबंध वार्ता विफल होने के बाद 2,400 से अधिक खनिकों ने हड़ताल की -वॉरियर मेट में कोयला कर्मचारियों की हड़ताल को 2 महीने पूरे हुए

-दो साल के संघर्ष के बाद पेरिस के आईबिस होटल के चैंबरमेड्स ने वेतन वृद्धि की लड़ाई जीती -चरमराई अर्थव्यवस्था और बेरोज़गारी को लेकर ओमान में जारी विरोध प्रदर्शन का चौथा दिन

-यूएस में वॉल्वो ट्रक प्लांट के कर्मचारियों ने समझौते को पुरज़ोर तरीक़े से ख़ारिज किया -अमेरिका के 15 राज्यों में मैकडॉनल्ड कर्मचारी गए हड़ताल पर, समर्थन में आईं बड़ी हस्तियां

-वैश्विक महामारी के दौर में मजदूर विरोधी नीतियों को तेजी से आगे बढ़ाती सरकार -अदालत ने निर्माण श्रमिकों के लिए पेंशन, राहत राशि के भुगतान को समयसीमा निर्धारित की -अमेजॉन अमेरिका में अपने पांच लाख कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाएगी, अमेरिकी राष्ट्रपति डाला था दबाव

नमस्कार साथियों। मैं श्वेता आज फिर हाज़िर हूँ आपके बीच "टार्गेट पूरा न कर पाने पर कम्पनियाँ मनमाने तरीक़े से निकाल देती हैं श्रमिकों को" विषय पर अपने श्रमिक साथियों की राय-प्रतिक्रिया के साथ। हम श्रमिक अपनी कम्पनी के लिए दिन-रात एक कर, बिना समय की परवाह किए, अपनी जान दांव पर लगाकर काम करते हैं, जिससे कम्पनी को मुनाफ़ा हो और उस मुनाफ़े से मिलने वाले पारिश्रमिक से हमारी रोज़ी-रोटी चल सके। लेकिन जब कभी किसी कारणवश या टार्गेट बहुत अधिक होने के कारण हम उसे पूरा नहीं कर पाते, तो कम्पनियाँ बिना हमारा पक्ष सुने टार्गेट पूरा न होने का ज़िम्मेदार मानकर मनमाने तरीक़े से हमें निकाल देती हैं।जिन श्रमिकों के बूते इन कम्पनियों का काम चलता है और इनके मालिक ऐशो-आराम की ज़िंदगी जीते हैं, उन्हीं श्रमिकों के साथ कम्पनियों का यह रवैया क्या सही है? साथियों इस विषय पर आपका क्या कहना है? क्या आपको भी लगता है कि कम्पनियों की इस मनमानी को रोकने की ज़रूरत है और उसे रोकने के लिए हम श्रमिक साथियों को संगठित होने की ज़रूरत है! साथ ही हमारे द्वारा दी गयी जानकारी से अगर आपके दैनिक कामकाजी जीवन में कोई सकारात्मक प्रभाव पड़ा हो, आपको कुछ करने की प्रेरणा मिलती हो और आप अपने कार्यस्थल पर हो रहे श्रमिक-विरोधी कृत्यों के ख़िलाफ़ संगठित होकर आवाज़ उठाने के लिए प्रेरित होते हैं

सरकार सिर्फ पूंजीपतियों के लिए ही बानी है। श्रमिक कल भी संघर्ष कर रहे थे और आज भी कर रहे हैं। न्यूनतम वेतन ना मिलना तो अब आम समस्या बन गयी है । श्रमिक संगठन भी कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं। आज भी दिल्ली जैसे शहर में बहुसंख्यक पुरुष और महिलाएं गांव से आकर कार्य करते हैं। क्योंकि उनके पास इसके अलावा और कोई चारा नहीं है

एक बार फिर हम हाज़िर है आपके साथ "नए श्रम कानूनों के ऊपर श्रमिक साथियों की राय एवं प्रतिक्रिया लेकर । जहाँ लॉक डाउन लागू होने से श्रम संकट गहरा गया और पूंजीपतियों को मज़दूरों की कमी से आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा। इसके लिए अब सरकार अर्थव्यवस्थाओं को फिर से पटरी पर लाने के लिए श्रम कानूनों में बदलाव किए, लेकिन मजदूर और मजदूर संघ इन बदलावों की खुली मुखालफत कर रहे हैं। श्रमिक का कहना है कि कानून अंधा होता है, इस बदलाव से श्रमिकों को ना तो कोई फायदा होने वाला है और ना ही कोई फर्क पड़ने वाला है। पूंजीपतियों को आगे बढ़ाने के लिए ही श्रम कानूनों में बदलाव किए गए हैं? सरकार नए श्रम कानूनों के सहारे श्रमिकों को कमजोर और पूंजी को मजबूत करना चाहती है।तो साथियों, इन नए श्रम कानूनों पर आपका क्या कहना है? अपना विचार हमसे ज़रूर साझा करें फोन में नंबर तीन दबाकर, धन्यवाद।

पिछले सप्ताह के शुरुआत में संसद ने श्रम कानूनों से सम्बन्धित तीन नई नियमावलियाँ प्रस्तुत किए. इनमें पिछले वर्ष पारित किये गए नवीन श्रम नियम/क़ानून भी शामिल थे. इस नियमावली में श्रमिकों से सम्बन्धित सम्मिलित नियम-क़ानून भारत के सारे श्रमिकों के मौजूदा अधिकारों और पात्रताओं को सिरे से बदलने जा हैं. ये तीनों नियम कार्य-स्थलों से सम्बन्धित श्रमिकों के स्वास्थ्य एवम सुरक्षा, औद्योगिक सम्बन्धों और सामाजिक सुरक्षा के बारे में हैं. यहाँ इस बात का उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि इन तीनों कानूनों को विपक्ष के उन अधिकाँश सांसदों की अनुपस्थिति में जितनी तेज़ी से हो सकता था उतनी तेज़ी से पारित करवाया गया जो इन श्रम कानूनों का जम कर विरोध कर रहे थे. इन विधेयकों ने पिछले साल के अपने संस्करणों का स्थान ले लिया। जिस तरह से जल्दीबाज़ी में इन कानूनों को पारित करवाया गया उसको देखते हुए इस बात की बहुत अधिक सम्भावना है कि इन कानूनों को बनाने वाले लोगों के पास इनको पढ़ने और इनमे किए गए बदलावों की समीक्षा करने के लिए पर्याप्त समय मिला होगा।