नमस्कार साथियों। मैं श्वेता आज फिर हाज़िर हूँ आपके बीच "टार्गेट पूरा न कर पाने पर कम्पनियाँ मनमाने तरीक़े से निकाल देती हैं श्रमिकों को" विषय पर अपने श्रमिक साथियों की राय-प्रतिक्रिया के साथ। हम श्रमिक अपनी कम्पनी के लिए दिन-रात एक कर, बिना समय की परवाह किए, अपनी जान दांव पर लगाकर काम करते हैं, जिससे कम्पनी को मुनाफ़ा हो और उस मुनाफ़े से मिलने वाले पारिश्रमिक से हमारी रोज़ी-रोटी चल सके। लेकिन जब कभी किसी कारणवश या टार्गेट बहुत अधिक होने के कारण हम उसे पूरा नहीं कर पाते, तो कम्पनियाँ बिना हमारा पक्ष सुने टार्गेट पूरा न होने का ज़िम्मेदार मानकर मनमाने तरीक़े से हमें निकाल देती हैं।जिन श्रमिकों के बूते इन कम्पनियों का काम चलता है और इनके मालिक ऐशो-आराम की ज़िंदगी जीते हैं, उन्हीं श्रमिकों के साथ कम्पनियों का यह रवैया क्या सही है? साथियों इस विषय पर आपका क्या कहना है? क्या आपको भी लगता है कि कम्पनियों की इस मनमानी को रोकने की ज़रूरत है और उसे रोकने के लिए हम श्रमिक साथियों को संगठित होने की ज़रूरत है! साथ ही हमारे द्वारा दी गयी जानकारी से अगर आपके दैनिक कामकाजी जीवन में कोई सकारात्मक प्रभाव पड़ा हो, आपको कुछ करने की प्रेरणा मिलती हो और आप अपने कार्यस्थल पर हो रहे श्रमिक-विरोधी कृत्यों के ख़िलाफ़ संगठित होकर आवाज़ उठाने के लिए प्रेरित होते हैं