दोस्तों , ई—श्रम कार्ड पूरे देश में मान्य होगा और इससे मजदूर साथियों को दूसरे राज्यों में काम मिलने और सरकारी योजनाओं का लाभ लेने में आसानी होगी. इसलिए आप भी ये कार्ड जरूर बनवा लें. साथ ही अगर आपको ई—श्रम कार्ड बनवाने में कोई भी परेशानी आ रही है तो मोबाइलवाणी आपका सहयोग करेगा. हमारे वॉलिंटियर दिल्ली, एनसीआर समेत और दूसरे राज्यों में भी श्रमिको का ई—श्रम कार्ड बनवाने में मदद कर रहे हैं.

हम अक्सर देखते और सुनते हैं कि देश के किसी ना किसी कोने में कोई ना कोई मजदूरों का संगठन अपनी मांगों को लेकर सरकार के विरोध में आंदोलन कर ही रहा होता है. कई बार ये विरोध कंपनियों के गैर जिम्मेदराना रवैए के खिलाफ भी होता है. कोलंबिया सरकार ने अपने प्रमुख कपड़ा और फुटवियर उद्योग में श्रमिकों के लिए न्यूनतम मासिक वेतन 2 अमेरिकी डॉलर से बढ़ाकर 194 अमेरिकी डॉलर कर दिया. यह वेतन आने वाले साल के पहले माह से लागू हो जाएगा. हालांकिवहां के स्थानीय कर्मचारी संगठन इस बढोत्तरी को नाकाफी बता रहे हैं. तो दोस्तों, हमें बताएं कि आप अपने वर्तमान वेतन से कितना खुश हैं? क्या आपको नहीं लगता कि सरकार को न्यूनतम मजदूरी दर में इजाफा करने की जरूरत है? क्या आपने कभी अपनी कंपनी या फिर सरकार से वेतन में इजाफे की मांग की? अगर हां तो कैसे और फिर क्या हुआ?

-मैक्सिको में प्रवासियों ने प्रवास और शरणार्थी संकट के समाधान की मांग की -यूएई में खत्म हुआ ‘मिड डे ब्रेक’ नियम

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस समय देश में 3.5 करोड़ लोगों को वृद्धावस्था पेंशन योजना का लाभ मिल रहा है. राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना का लाभ केवल उन्हीं वरिष्ठ नागरिकों को दिया जाता है, जिनकी उम्र 60 वर्ष या उससे अधिक है. अगर आप इस योजना का लाभ लेना चाहते हैं तो हर जिले में प्रखंड स्तर पर आरटीपीएस कार्यालय में राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना के लिए आवेदन कर सकते हैं. इस काम के लिए अनुमंडल पदाधिकारी नियुक्त किए गए हैं. क्या आपके पास आवेदन करने के लिए पर्याप्त दस्तावेज नहीं हैं? अगर ऐसा है तो क्या गांव के मुखिया या फिर प्रखंड पदाधिकारी आपकी मदद कर रहे हैं? यदि आप राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना का लाभ लेना चाहते हैं लेकिन उसमें दिक्कत आ रही है तो इसके बारे में हमसे बात कर सकते हैं.

-भारी नुकसान के बाद, गारमेंट हब का तमिलनाडु सरकार को संदेश- प्रवासियों की लगातार आवाजाही रुकनी चाहिए -पोलैंडः पैरोक प्लांट के कर्मचारियों को एक सप्ताह की हड़ताल के बाद जीत मिली

-वैश्विक महामारी के दौर में मजदूर विरोधी नीतियों को तेजी से आगे बढ़ाती सरकार -अदालत ने निर्माण श्रमिकों के लिए पेंशन, राहत राशि के भुगतान को समयसीमा निर्धारित की -अमेजॉन अमेरिका में अपने पांच लाख कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाएगी, अमेरिकी राष्ट्रपति डाला था दबाव

असल में कोरोना महामारी के कारण मार्च 2020 में लागू किये गए लॉकडाउन का सबसे बुरा प्रभाव प्रवासी मजदूरों पर पड़ा। रोज कमाकर अपना पेट पालने वाले इन मजदूरों को लॉकडाउन की घोषणा के बाद संभलने का मौका ही नहीं मिला। वो जिन ठेकेदारों, कंपनियों, दफ्तरों और लोगों के सहारे थे उन सबने उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया था। बीमारी की दहशत, काम बंदी, भुखमरी का डर और लॉकडाउन के शुरुआत में पुलिस की सख्ती के चलते प्रवासी मजदूरों के सामने ऐसे हालात पैदा हो गए कि उन्हें हजारों किलोमीटर दूर पैदल सफर कर अपने गांव लौटना पडा। पैदल मीलों लंबा सफर तय करने में इन मजदूरों को महीनों लग गए, कई मुश्किलों का सामना करते हुए वे अपने गांव पहुंचे. कई तो ऐसे भी थे जिनका सफर अधूरा ही रह गया. बहुत से मजदूर सडक हादसों का शिकार हुए और कुछ को मौसम की मार और बीमारी ने मार डाला. हालांकि मजदूरों के दर्द को सुप्रीम कोर्ट ने समझा और आदेश दिया कि 15 दिन के अंदर सभी राज्यों से प्रवासियों की सुरक्षित वापसी कराई जाए। यह कदम तत्काल उठाया गया लेकिन जैसे तैसे अपने घर पहुंचे मजदूरों को उनके ही अपनों ने दुत्कार दिया. संक्रमण के डर से मजदूरों को गांव के बाहर ही प्रवास करने पर मजबूर किया गया. इसके बाद मजदूरों को काम देने के लिए केन्द्र सरकार ने मनरेगा के फंड में इजाफा किया. पर जब मुख्य बजट की बात आई तो मनरेगा के नाम पर सरकार ने हाथ खडे कर लिए. गांव में काम नहीं होने के कारण जो मजदूर दोबारा शहर आए थे उन्हें यहां भी काम नहीं मिल रहा है. ऐसे में वे दोबारा गांव की ओर पलायन कर रहे हैं. हम आपसे जानना चाहते हैं कि सरकार ने मनरेगा के फंड में कटौती कर मजदूरों के साथ छल किया है? क्या आपको नहीं लगता कि सरकार के इस फैसले से मजदूरों के हालात बदत्तर हो रहे हैं? लॉकडाउन के बाद आई बेरोजगारी से मजदूर साथी कैसे निपट रहे हैं?

जहाँ एक तरफ़ लॉकडाउन के बाद कम्पनियाँ लगातार श्रमिकों की छँटनी की प्रक्रिया जारी रखे हुए हैं, वहीं दूसरी तरफ़ बेरोज़गारी की मार झेल रहे श्रमिकों का कहना है कि "शहर में काम की अत्यधिक कमी होने के कारण घर वापस लौट जाना उनकी मजबूरी बन गयी है। यह हम श्रमिकों के लिए आम समस्या है। सरकार इसके लिए न पहले ज़िम्मेदार थी, न अब है।" आइए, सुनते हैं पूरी बात- जैसा कि आपको पता है कि कम्पनी की सरकार और सरकार की कम्पनी दोनों ही हमारे श्रमिक साथियों के श्रम से बनी हैं और सिर्फ़ अपनी पूँजी को बढ़ाने के लिए हर बार उनके श्रम का इस्तेमाल करती आयी हैं। लेकिन कोरोना-संक्रमण के बाद की बदली हुई परिस्थितियों में हम आपसे जानना चाहते हैं कि आपको क्या लगता है कि रोज़गार की व्यवस्था करने की ज़िम्मेदारी किसकी है? क्या आप भी बेरोज़गारी की मार झेल रहे हैं? अगर हाँ, तो इसके लिए आपने अभी तक क्या किया है?

हम सभी को पता है कि मजदूर कंपनियों की पूंजी बढ़ाने के लिए दिन-रात की परवाह किए बिना हाड़तोड़ मेहनत करते हैं। हम यह भी जानते हैं कि अधिकारियों द्वारा उनकी मजबूरी का फायदा उठाकर कम मेहनताने में अधिक समय काम कर अत्यधिक उत्पादन करने का दबाव भी बनाया जाता है और विडम्बना यह कि बिना किसी कारण के उनका वेतन भी काट लिया जाता है। जहाँ एक तरफ़ लॉक डाउन के बाद से ही हमारे मज़दूर साथियों की रोज़ी-रोटी के ऊपर काले बादल मंडरा रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर उनके मेहनताने और पीस रेट में लगातार हो रही कटौती ने उनकी थाली में से निवाले कम कर दिए हैं। आइए, आगे हमारे श्रमिक साथी क्या कह रहे हैं जानने की कोशिश करते हैं- सुना आपने! किस तरह कम्पनियाँ लॉकडाउन का हवाला देकर मनमाने तरीके से रेट तय कर रही हैं! अभी आप भी हमें बताइये कि लगातार घट रहे पीस रेट से आने वाले दिनों में आप लोगों को किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है? लॉकडाउन के बाद पीस रेट में किस तरह का अंतर आया है? क्या एक ही जैसा काम करने के बाद भी अलग-अलग कम्पनियों के पीस रेट में अंतर होता है? इस विषय पर अपना विचार हमसे ज़रूर साझा करें, अपने फ़ोन में नंबर 3 दबाकर

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