दोस्तों , ई—श्रम कार्ड पूरे देश में मान्य होगा और इससे मजदूर साथियों को दूसरे राज्यों में काम मिलने और सरकारी योजनाओं का लाभ लेने में आसानी होगी. इसलिए आप भी ये कार्ड जरूर बनवा लें. साथ ही अगर आपको ई—श्रम कार्ड बनवाने में कोई भी परेशानी आ रही है तो मोबाइलवाणी आपका सहयोग करेगा. हमारे वॉलिंटियर दिल्ली, एनसीआर समेत और दूसरे राज्यों में भी श्रमिको का ई—श्रम कार्ड बनवाने में मदद कर रहे हैं.

पीएफ खाते में पूरा पैसा नहीं दिखा रहा है? पीएफ में फ़ोन नंबर कैसे चेंज करवा सकते है? इन प्रश्नों के ज़वाब सुनने हेतु ऑडियो पर क्लिक करें

बात है 2007 की , फरीदाबाद में लखानी रबड़ उद्योग में अनेक प्रकार की और विभिन्न नाप की 70 हजार जोड़ी चप्पल प्रतिदिन बनती थी । उस समय मोल्डिंग विभाग में सादे आठ घण्टे की तीन शिफ्ट होती थी । डिब्बे बनाने वालों की साढ़े बारह घण्टे की एक शिफ्ट लगती थी और हवाई चप्पल बनाने वालों की सुबह 8 से रात के साढ़े 10 बजे तक की एक शिफ्ट होती थी। कम्पनी 15 घण्टे में भी एक कप चाय तक नहीं देती थी । ‘‘लखानी रबड़ में उस समय 250 स्थाई और 250 कैजुअल वरकर थे । स्थाई और कैजुअलों की तनखा में 200 रुपये का फर्क था - अप्रैल की तनखा में स्थाई मजदूरों के 200 रुपये और बढा दिये गए थे । कैजुअलों का 6 महीने से ब्रेक था पर ऐसे कैजुअल भी हैं जो महीने.भर के दिखाये ब्रेक के दौरान भी फैक्ट्री में काम करते रहे और उस दौरान उन्हें उनकी पूरी तनखा दी जाती रही - ई.एस.आई. व पी.एफ. की राशि नहीं काटी जाती थी। ‘मोल्डिंग विभाग में तो पूरा काम ही गन्दा होता है - पाउडर उड़ता है, रबड़ पकती है। लाइनों पर चप्पल में सुराख करने वाला काम भी गन्दा है। गर्मियों में तो मोल्डिंग में बहुत ही बुरा हाल हो जाता है - जिसके कारण काफी मजदूरों को साँस की तकलीफें और टी.बी. की बीमारी थी .फैक्ट्री में कई लोगो के हाथ कट जाते थे और नियोक्ता ,एक्सीडेन्ट रिपोर्ट भर कर उन्हें ई.एस.आई. अस्पताल भेज दिया करते थे । सैक्टर.6 स्थित फैक्ट्री में वाशरूम इतनी गन्दी रहती थी कि श्रमिकों को फैक्ट्री के बाहर जाना पड़ता था। साथियों,इसी तरह आज भी कई कम्पनी हम श्रमिकों के साथ अन्याय करती आ रही है और हम न्याय के लिए कुछ कदम नहीं उठा पाते,क्योंकि हम कहीं न कहीं सोचते है कि हमें काम से निकाल ना दें। तो साथियों वक्त है इस अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने की,हम लगातार संघर्ष कर रहे हैं और आगे भी हम अपने हक़ और अधिकारों के लिए लड़ते रहेंगे।साथियों,तो कैसी ले आपको आज की कड़ी?अगर आप भी अपनी कम्पनी की कहानी साझा करना चाहते है तो अभी दबाएं अपने फ़ोन में नंबर 3 .

-मैक्सिको में प्रवासियों ने प्रवास और शरणार्थी संकट के समाधान की मांग की -यूएई में खत्म हुआ ‘मिड डे ब्रेक’ नियम

-यूनिसेफ रिपोर्ट: 80% भारतीय बच्चों ने माना कि महामारी के दौर में उनके सीखने का स्तर घटा -Ford भारत में कारों का निर्माण बंद करेगी, 4000 कर्मचारियों की नौकरी खतरे में

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सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस समय देश में 3.5 करोड़ लोगों को वृद्धावस्था पेंशन योजना का लाभ मिल रहा है. राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना का लाभ केवल उन्हीं वरिष्ठ नागरिकों को दिया जाता है, जिनकी उम्र 60 वर्ष या उससे अधिक है. अगर आप इस योजना का लाभ लेना चाहते हैं तो हर जिले में प्रखंड स्तर पर आरटीपीएस कार्यालय में राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना के लिए आवेदन कर सकते हैं. इस काम के लिए अनुमंडल पदाधिकारी नियुक्त किए गए हैं. क्या आपके पास आवेदन करने के लिए पर्याप्त दस्तावेज नहीं हैं? अगर ऐसा है तो क्या गांव के मुखिया या फिर प्रखंड पदाधिकारी आपकी मदद कर रहे हैं? यदि आप राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना का लाभ लेना चाहते हैं लेकिन उसमें दिक्कत आ रही है तो इसके बारे में हमसे बात कर सकते हैं.

दोस्तों , विधवा पेंशन योजना का लाभ पाने के लिए आवेदिका का आधार कार्ड, पति की मृत्यु का प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र, आय प्रमाण पत्र, आयु प्रमाण पत्र, बैंक अकाउंट पासबुक, मोबाइल नंबर और पासपोर्ट साइज फोटो चाहिए होता है. आप हमें बताएं कि क्या आप में से कोई जरूरतमंद है जिसे विधवा पेंशन योजना का लाभ लेना है पर उसे किसी तरह की परेशानी आ रही है? अगर आपका आवेदन बार—बार अस्वीकार हो रहा है तो उसके बारे में हमें बताएं. मोबाइलवाणी अपने साथी न्याय के साथ मिलकर आपकी समस्या का समाधान करने का प्रयास करेगा. अपनी बात रिकॉर्ड करने के लिए फोन में अभी दबाएं नम्बर 3.

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बात है दिसम्बर 2007 की। दिल्ली, नोएडा, गुड़गाँव, फरीदाबाद में काम करते जिन मजदूरों पर कानूनी रूप से ई.एस.आई. के प्रावधान लागू होते थे, उन में से 70-75 प्रतिशत पर कम्पनियाँ ईएसआई लागू नहीं करती थी ।जिन मजदूरों को कैजुअल अथवा ठेकेदारों के जरिये रखे जाते थे ,उन में नब्बे प्रतिशत की ई.एस.आई. नहीं होती थी। ऐसे में फैक्ट्री में ज्यादा चोट लगने पर मजदूर को निजी चिकित्सालय ले जाना सामान्य था ।चोट लगने पर मजदूरों को पहचाने से कम्पनी साफ़ माना कर देती थी। साथियों,इसलिये घायल होने पर हो सके तो ई.एस.आई. अस्पताल अवश्य जायें - अगर आपके पास ई.एस.आई. कार्ड नहीं है तो आप कैजुअलटी में भी जा सकते हैं। कम्पनी अगर एक्सीडेन्ट रिपोर्ट भरने से माना करती है तो ई. एस.आई. डाॅक्टर से ज़रूर भरवायें। एक्सीडेन्ट रिपोर्ट की फोटो काॅपी अवश्य लें और उस रिपोर्ट में कम्पनी और ठेकेदार आदि वाली गड़बड़ियों को देखें तथा कर्मचारी राज्य बीमा निगम अधिकारियों को लिखित में शिकायतें करें। ई. एस.आई. डाॅक्टर द्वारा फिटनेस दिये जाने पर फैक्ट्री में ड्युटी के लिये जायें। ड्युटी पर नहीं लेना कानून अनुसार अपराध है। इसकी शिकायत ई.एस.आई. लोकल तथा क्षेत्राीय कार्यालयों में लिखित में तुरन्त करें। कार्यस्थलों की हालात के कारण अनेक पेशेगत बीमारियों की भरमार है, मजदूर बड़े पैमाने पर इन से ग्रस्त होते हैं। साथ ही सेवा निवृति के बाद भी तन और मन के इन पेशेगत रोगों की क्षतिपूर्ति तथा उपचार की जिम्मेदारी कम्पनियों व ई.एस.आई. की होती है। तो साथियों,कैसी लगी आपको आज की यह जानकारी ? अगर आपके पास ई. एस. आई. से सम्बंधित कोई भी शिकायत है तो साझा मंच पर अपनी बात ज़रूर रिकॉर्ड करें अपने फ़ोन में नंबर तीन दबाकर। साथ ही सही जानकारी प्राप्त कर इसके खिलाफ अपना कदम उठाना ना भूलें ।