सरकार सिर्फ पूंजीपतियों के लिए ही बानी है। श्रमिक कल भी संघर्ष कर रहे थे और आज भी कर रहे हैं। न्यूनतम वेतन ना मिलना तो अब आम समस्या बन गयी है । श्रमिक संगठन भी कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं। आज भी दिल्ली जैसे शहर में बहुसंख्यक पुरुष और महिलाएं गांव से आकर कार्य करते हैं। क्योंकि उनके पास इसके अलावा और कोई चारा नहीं है

Transcript Unavailable.

Transcript Unavailable.

पिछले सप्ताह के शुरुआत में संसद ने श्रम कानूनों से सम्बन्धित तीन नई नियमावलियाँ प्रस्तुत किए. इनमें पिछले वर्ष पारित किये गए नवीन श्रम नियम/क़ानून भी शामिल थे. इस नियमावली में श्रमिकों से सम्बन्धित सम्मिलित नियम-क़ानून भारत के सारे श्रमिकों के मौजूदा अधिकारों और पात्रताओं को सिरे से बदलने जा हैं. ये तीनों नियम कार्य-स्थलों से सम्बन्धित श्रमिकों के स्वास्थ्य एवम सुरक्षा, औद्योगिक सम्बन्धों और सामाजिक सुरक्षा के बारे में हैं. यहाँ इस बात का उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि इन तीनों कानूनों को विपक्ष के उन अधिकाँश सांसदों की अनुपस्थिति में जितनी तेज़ी से हो सकता था उतनी तेज़ी से पारित करवाया गया जो इन श्रम कानूनों का जम कर विरोध कर रहे थे. इन विधेयकों ने पिछले साल के अपने संस्करणों का स्थान ले लिया। जिस तरह से जल्दीबाज़ी में इन कानूनों को पारित करवाया गया उसको देखते हुए इस बात की बहुत अधिक सम्भावना है कि इन कानूनों को बनाने वाले लोगों के पास इनको पढ़ने और इनमे किए गए बदलावों की समीक्षा करने के लिए पर्याप्त समय मिला होगा।

Transcript Unavailable.