महाराष्ट्र राज्य के नागपुर जिला से आदर्श मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे है की आज के समय में गोली चलना और चलाना आम बात हो गई है। एनकाउंटर के नाम पर सरकार अपना दबदबा बनाना चाहती है। एनकाउंटर जैसे कानून पर रोक लगनी चाहिए

हरियाणा से अशोक कुमार ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि एनकाउंटर उस परिस्थिति में किया जाता है जब आतंकवादियों को यह पता लगे की सामने पुलिस थाना हो और उसके ऊपर गोलियां चलाये तब उस जगह का अधिकार रहता है कि सरकार भी उसी हथियार से जवाबी करवाई करे। या फिर कोई इतना बड़ा गैंग या कोई भी है किसी तरह से भाग रहा हो तो उसे काबू करने के लिए ऐसा कर सकते हैं। साथ ही यदि कोई हमपर गोलियां चलाये तो इस स्थिति पर एनकाउंटर कर सकते हैं

महाराष्ट्र राज्य के नागपुर से आदर्श ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि इनकाउंटर करना सरकार की मनमानी है। अपराधी को कानून के हवाले करना चाहिए। मगर सरकार अपराधी को मरने में विश्वास करती हैं

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राजनैतिक सिंद्धांत औऱ प्रक्रियाओं में न्याय सबसे पुरानी अवधारणाओं में से एक है, न्याय के सिद्धांत को लेकर तमाम प्रकार की बातें कहीं गई हैं, जिसे लगभग हर दार्शनिक और विद्वान ने अपने समय के अनुसार समझाया है और सभी ने इसके पक्ष में अपनी आवाज को बुलंद किया है। न्याय को लेकर वर्तमान में भी पूरी दुनिया में आज भी वही विचार हैं, कि किसी भी परिस्थिति में सबको न्याय मिलना चाहिए। इसके उलट भारत में इस समय न्याय के मूल सिद्धामत को खत्म किया जा रहा है। कारण कि यहां न्याय सभी कानूनी प्रक्रियाओं को धता को बताकर एनकाउंटक की बुल्डोजर पर सवार है, जिसमें अपरधियों की जाति और धर्म देखकर न्याय किया जाता है। क्या आपको भी लगता है कि पुलिस को इस तरह की कार्रवाइयां सही हैं और अगर सही हैं तो कितनी सही हैं। आप इस मसले पर क्या सोचते हैं हमें बताइये अपनी राय रिकॉर्ड करके, भले ही इस मुद्दे के पक्ष में हों या विपक्ष में

नए नए आजाद हुए देश के प्रधानमंत्री नेहरू एक बार दिल्ली की सड़कों पर थे और जनता का हाल जान रहे थे, इसी बीच एक महिला ने आकर उनकी कॉलर पकड़ कर पूछा कि आजादी के बाद तुमको तो प्रधानमंत्री की कुर्सी मिल गई, जनता को क्या मिला, पहले की ही तरह भूखी और नंगी है। इस पर नेहरु ने जवाब दिया कि अम्मा आप देश के प्रधानमंत्री की कॉलर पकड़ पा रही हैं यह क्या है? नेहरू के इस किस्से को किस रूप में देखना है यह आप पर निर्भर करता है, बस सवाल इतना है कि क्या आज हम ऐसा सोच भी सकते हैं?

समाज कि लड़ाई लड़ने वाले लोगों के आदर्श कितने खोखले और सतही हैं, कि जिसे बनाने में उनकी सालों की मेहनत लगी होती है, उसे यह लोग छोटे से फाएदे के लिए कैसे खत्म करते हैं। हालांकि यह पहली बार नहीं है जब कोई प्रभावशाली व्यक्ति ने इस तरह काम किया हो, नेताओं द्वारा तो अक्सर ही यह किया जाता रहा है। हरियाणा के ऐसे ही एक नेता के लिए ‘आया राम गया राम का’ जुमला तक बन चुका है। दोस्तों आप इस मसले पर क्या सोचते हैं? आपको क्या लगता है कि हमें अपने हक की लड़ाई कैसे लड़नी चाहिए, क्या इसके लिए किसी की जरूरत है जो रास्ता दिखाने का काम करे? आप इस तरह की घटनाओं को किस तरह से देखते हैं, इस मसले पर आप क्या सोचते हैं?

उत्तर प्रदेश राज्य के जिला उन्नाओ से रामकरण मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे है की सरकार को कानून सभी धर्मों के लिए लागू किया जाना चाहिए। यह आवश्यक है क्योंकि सभी धर्मों को एक समान माना जाना चाहिए, चाहे कोई भी धर्म हो, मानवता के रूप में, यह प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है कि वह सभी धर्मों का सम्मान करे और यह प्रत्येक प्रशासन का भी कर्तव्य है की वो सभी धर्मो के साथ सामान व्यवहार करे

हरियाणा से अशोक कुमार मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि जो उर्वरक, पेय, चिकित्सा उत्पाद, दवा आदि बनाने वाले उद्योग बनाते हैं। उनके कर्मचारियों का नाम होना अनिवार्य है सरकार को ऐसा कानून को करना ही चाहिए क्यूंकि जो बड़े बड़े रेस्त्रां हैं और कैसे खाना बनता है उसका सैम्पल हो। इस विषय पर ज्यादा जानकारी नहीं है कि यह अभी भी विस्तृत होनी चाहिए, लेकिन कर्मचारियों का विवरण बड़ी फर्मों पर होना चाहिए, न कि एक रेडीमेड ढाबा स्थापित करने पर जिसमें उनकी एक नीति होनी चाहिए । उनका यह स्पष्ट यही विचार है और शुद्ध शाकाहारी और अन्य मांसाहारी लोगों के बारे में जागरूक होना आवश्यक है। फरोलबाग में एक बाजार है जो शुद्ध शाकाहारी है वे अलग जानकारी लेते हैं। और जो मांसाहारी हैं अपनी अलग-अलग जानकारी लेते हैं

भारतीय संविधान किसी के आर्टिकल 14 से लेकर आर्टिकल 21 तक समानता की बात कही है, इस समानता धार्मिक आर्थिक राजनीतिक और अवसर की समानता का जिक्र किया गया है। इस समानता किसी प्रकार की जगह नहीं है और किसी को भी धर्म, जाति और समंप्रदाय के आधार पर कोई भेद नहीं किये जाने का भी वादा किया गया है। उत्तर प्रदेश सरकार के हालिया फैसले में साफ तौर पर देखा जा सकता है कि वह धर्म की पहचान के आधार भेदभाव पैदा करने की कोशिश है।दोस्तों आप इस मसले पर क्या सोचते हैं? क्या आप सरकार के फैसले के साथ हैं या फिर इसके खिलाफ, जो भी हो इस मसले पर आपकी क्या राय है? आप इस मसले पर जो भी सोचते हैं अपनी राय रिकॉर्ड करें