उड़ीसा के मूल निवासी दिलीप कुमार बेंगलोर से साझा मंच मोबाईल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि लॉक डाउन के दौरान मई में घर चले गए थे और प्राईवेट बस से आए हैं। इससे पहले कम्पनी के द्वारा भेजी गयी बस से चालीस के लगभग मज़दूर वापस काम पर आए थे। इन्होंने पीएफ़ निकाल लिया है और लॉक डाउन की अवधि का पैसा नहीं मिला है। कम्पनी ने वेतन में सिर्फ़ दस रुपए बढ़ाए हैं। पहले साप्ताहिक वेतन मिलता था, अब मासिक रूप से देने को कहा जा रहा है। अभी तक ईएसआई का पैसा नहीं निकाल पाए हैं। ये किसी यूनियन के सदस्य नहीं हैं। तमिलनाडु वाले श्रमिकों को साप्ताहिक वेतन मिल रहा है और उड़ीसा और हिंदी वालों को मासिक रूप से वेतन दिया जाता है। कम्पनी के माध्यम से काम करने पर पीएफ़, ईएसआई की सुविधा मिलती है, जबकि ठेकेदार के माध्यम से कोई सुविधा नहीं मिलती है। श्रमिक क़ानूनों के बारे में इन्हें कोई जानकारी नहीं है। इनके अनुसार हर कम्पनी में क़ानून समान होना चाहिए। किसी भी श्रमिक को चोट लगने या कोई दुर्घटना होने पर ईएसआई और पीएफ़ की सुविधा मिले, चाहे वह कम्पनी का श्रमिक हो या फिर ठेकेदार के माध्यम से। ठेकेदार के माध्यम से काम करने पर वेतन दो हज़ार कट कर मिलता है। लॉक डाउन में कम्पनी ने सबको घर भेजा, लेकिन ठेकेदार ने अपने श्रमिकों की कोई मदद नहीं की। अभी घर चलाने के लिए मजबूरी में ठेकेदार के साथ काम करना पड़ रहा है। दो हज़ार चार में ठेकेदार के साथ काम करने पर वेतन बहुत कम मिलता था। लेकिन उस समय की तुलना में अभी वेतन बहुत काम है, क्योंकि महंगाई बहुत बढ़ गयी है। इसलिए परेशानी बहुत बढ़ गयी है। अगले महीने ये घर चले जाएँगे। अभी बारह-तेरह हज़ार वेतन मिलता है, जबकि लॉक डाउन से पहले वेतन बढ़िया मिलता था। अभी वेतन मासिक हो गया है, जबकि पहले साप्ताहिक था। आठ घंटे की ड्यूटी का सिर्फ़ तीन सौ अस्सी रुपए देता है, जिसमें सिर्फ़ दस रुपए की वृद्धि हुई है।