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आज जिस तरह से दिनों दिन महंगाई बढ़ती जा रही हैं,उसी तरह से रोज़गार के अवसर भी घटती जा रहे हैं।जिसका शिकार मुख्य रूप से आज के युवा वर्ग हो रहें हैं। माता-पिता अपने सारी मेहनत की कमाई अपने बच्चों की पढ़ाई में लगा देते हैं इस आस में की बच्चे पढ़-लिख कर परिपूर्ण हो कर अच्छी नौकरी करेंगे और बुढ़ापा भी उनके साथ ख़ुशी-ख़ुशी कट जाएगी.. उन्हें क्या पता की बच्चे भी पढ़ लिख कर नौकरी की तलाश में दिन-रात मेहनत ही करते रह जाएंगे.. आखिर क्या वजह है जिससे आज देश में पढ़े-लिखे युवाओं को रोजगार के लिए इधर से उधर भटकना पड़ रहा है...? यदि किसी बेरोजगार को रोजगार मिलता भी है तो अपने राज्य को छोड़ कर दूसरे राज्य में जाना पड़ता है।जिससे युवा अपने परिवार के साथ कोई भी ख़ुशी चाहे वह कोई त्यौहार हो या शादी विवाह का कार्यक्रम उसमे शामिल नहीं हो पाते हैं आखिर क्यों उन्हें अपने राज्य को छोड़ कर अन्य राज्य में पलायन करना पड़ता है..? क्या हमारे राज्य में इन युवाओं के लिए कोई रोजगार नहीं है..? दोस्तों आपके अनुसार इसके पीछे का मुख्य वजह क्या है...? सरकार द्वारा आए दिन लोगों को रोजगार से जोड़ने के लिए कई तरह की भर्तियाँ तो निकाली जाती है.. फिर भी समाज में बेरोजगारों की सँख्या में बढ़ोत्तरी क्यों है...? साथ ही सरकार को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए क्या योजना बनानी चाहिए..? कहते हैं कि एक परिवार को सभी सुख सुविधा मिले इसमें बराबरी की भागीदारी महिलाऐं भी निभाती है। महिलाऐं जो किसी बड़ी कम्पनी या घरेलु काम करके अपने परिवार को चलाने में पुरा सहयोग करती है.. तो क्या आपके क्षेत्र में भी महिलाऐं कुछ ऐसा प्रयास कर रहीं है..? यदि हाँ तो क्या है उन महिलाओं के रोजगार का साधन। क्या आपके क्षेत्र में महिलाओं के साथ-साथ पुरुष वर्ग भी रोजगार उत्पन्न करने के लिए सामुदायिक स्तर पर कोई प्रयास करते नजर आते हैं..? आप से जनाना चाहते हैं हमारे देश में रोजगार के अवसर को बढ़ाने के लिए हम सभी को किस प्रकार के प्रमुख कदम उठाने की जरूरत है..? और हमे अपने सामजिक स्तर से क्या प्रयास करने की कोशिश की जानी चाहिए क्योंकि हमारे देश में अमीर लोग अमीर बनते जा रहे हैं और गरीब लोग गरीब होते जा रहे हैं है इसका सीधा नाता एक प्रकार से रोजगार से जोड़ जा सकता है आज हर तरफ मशीनी उपकरण तेजी से बढ़ रही जिसका सीधा असर रोजगार पर पड़ा है इस मशीनीकरण के दौर में हमे बेरोजगार विमुख कर दिया है।जहाँ पहले किसी काम को पूरा करने में दो से तीन या अनेक लोगों की आवश्यकता पड़ती थी वहीँ आज मशीनी उपकरण के आने से आसानी और जल्दी पूरा हो जाता है। ऎसे में रोजगार को किस तरह उपलब्ध किया जाए...? साथ ही दोस्तों, आप हमे बताइयें कि आपके क्षेत्र में लोगों द्वारा रोजगार के अवसर का निर्माण किया गया है जिसमे आपने अपनी भागीदारी निभाई है ? अगर हां तो आपको ऐसा करने की प्रेरणा कहा से मिली?

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इस बरसात के बाद वो दिन दूर नही जब ये हाथी राजा आप ही के गांव के तरफ रुख़ करेंगे. हलवा पूरी ना सही पर खेत के फसल ज़रूर साफ करेंगे. और ये कोई आज की बात नही,बल्कि झारखंड मे ये समस्या पुराने समय से चली आ रही है. इस अनचाहे मेहमान के आने से केवल किसान की फसल ही नही बल्कि साधारण लोगो की जान पर भी बन आती है. कई बार लोग समूह मे रात भर जाग कर अपने खेतो की रक्षा करते रहते है तो कई बार तेज़ रौशनी, आग और ड्रम बजा कर हाथियों को भागने की कोशिश होती है. आप के समुदाय मे इनमे से किस प्रकार की कोशिश ज़्यादा होती है...? और इस मे सफलता किस हद तक मिल पति है...? प्रायः हथियाँ आख़िर जंगल छोड़ कर इंसानो के बस्तियों का रुख़ क्यों करती है...? आख़िर इस मौसम मे ऐसा क्या होता है जो हाथियों को गांवों के तरफ खिच लाती है...? और जब हथियाँ गाँवो के तरफ आती है तो आप के क्षेत्रा के वन विभाग अधिकारी कितनी सक्रिया रहती है..? प्रायोगिक तरीक़ो के तौर पर केरला मे मधु मख्ही पालन कर हाथियों को भगाया गया है तो तमिल नाडु मे PVC गण से भागने की कोशिश हो रही है. इधर ओड़िसा मे LED लाइट और स्कैयर गण के ज़रिए हाथी भागने का प्रयोग जारी है. ऐसे मे आप के क्षेत्रा मे हाथी भागने के लिए वन विभाग अधिकारी क्या कोई नया तरीका अपनाते है या पारंपरिक तरीके के सहारे ही अभी तक हाथी भागने की कोशिश होती है...? जब हाथी खेत का फसल चौपट कर चला जाता है तो किसान पर आफ़तो का सैलाब टूट पड़ती है. वो किसान जीने बड़ी मेहनत से फसल उगाया था ये सोच कर की वो इस फसल के पैसे से अपने परिवार का भारण पोषण करेगा, उसके हाथ मे अब कुछ भी नही बचता है. ऐसे मे उसका सहारा होता है केवल सरकारी मुआवजा. पर क्या वो मुआवजा सही समय से किसानो को मिल पाती है...? और यदि नही तो उन्हे किस तरह के समस्याओं का सामना करना पड़ता है...? आप के अनुसार क्या मुआवजा की राशि देते समय बरबाद हुए फसल का सही मूल्यांकन किया जाता हैं..?

झारखण्ड राज्य के रांची से दृष्टि वाधित महिला नाज़िया मोबाइल वाणी और पंचायत नामा के साथ अपनी आपबीती साझा करते हुवे कहती हैं, कि ये एक साधारण स्कूल से अपनी दशवीं की पढाई पूरा कि। जब ग्रेजुवेशन कर रहीं थी तभी इनकी आँखों में कुछ दिक्कत होने लगी और धीरे-धीरे इनकी आँखों क रौशनी ख़त्म हो गई। नाज़िया ने कभी भी अपनी कमी को कमी नहीं समझा। कुछ दिनों के बाद इन्होने कंप्यूटर सीखा और एक शिक्षिका के रूप में लगभग दस वर्षों तक बच्चों को कंप्यूटर भी सिखाया। साथ ही नाज़िया ने कंप्यूटर संस्था के लिए खुद का रजिस्टेशन भी करवाया। नाज़िया ने कई कंपनियों और संस्थाओं में नौकरी के लिए इंटरव्यू भी दिया पर कही भी इन्हे नौकरी नहीं मिला। इनकी विकलांगता के कारण सबने कहा की आप विकलांग हो आपको दिखाई नहीं देता तो आप कैसे काम करोगे। तभी अचानक कहीं से नाज़िया को मालूम हुआ की झारखंड के रांची स्थित एक कम्पनी में दो आवेदन निकला है दृष्टिबाधितों के लिए। नाज़िया ने ऑफिस में फ़ोन कर अपना रजिस्ट्रेशन करवाया। कुछ दिनों के बाद ऑफिस से फोन आया और नाज़िया को अपना बायोडाटा जमा करने को कहा गया। नाज़िया ने अपना बायोडाटा जमा किया और इंटरव्यू भी दिया। और उन्हें हमारी वाणी में एक मॉडरेटर के रूप में नौकरी मिल गई। काम करने में नाज़िया को कोई दिक्क्त नहीं होती है क्योंकि जिन लोगों को कंप्यूटर में दिखाई देता है वे देख कर काम करते हैं और जिन्हे दिखाई नहीं देता वो टेक्नॉलजी सुविधा के साथ सुनकर काम करते हैं। काम पर आने जाने में नाज़िया को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जैसे-यदि घर में कोई ऑफिस पहुंचाने वाला ना हो तो ऑफिस समय पर नहीं जा पातीं हैं। इसी प्रकार ऑफिस से घर परिवार के सदस्य ही लेकर आते हैं।नाज़िया अन्य लोगों को यह सन्देश देती हैं कि कोई भी अपनी विकलांगता को अपनी कमजोरी ना समझे बल्कि उसे अपनी ताकत बनाएं। यदि कोई दिव्यांग नहीं देख सकते तो क्या हुआ वे हर वो काम को कर सकते हैं जिसे सम्पूर्ण व्यक्ति करते हैं।

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