पलायन के बहुत सारे कारण माने जाते हैं जैसे बेहतर शिक्षा के लिए, खुद के रोज़गार के लिए और बेहतर काम की तलाश में। इस कड़ी में हम बात करेंगे पलायन के मुख्य कारण रोजगार की कमी , या कहें कि पलायन के आर्थिक कारण के बारे में। बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश से पलायन करने वाले श्रमिकों से बात करने पर हमने जाना कि अख्सर वहीं लोग पलायन करते हैं जिनके पास ज़मीन का छोटा टुकड़ा होता है, जो कुछ ही महीने खेतों में काम कर पाते हैं या वो लोोग जिनके पास ज़मीन नहीं होती और उन्हें साल में कुछ ही महीन ज़मींदारों के खेतों में काम मिलता है। मजदूरों को कृषि के ा सड़क, तालाब और ऐसे काम जिनमें ज़्यादा कुशलता की ज़रूरत नहीं होती उन कामों में सरकार द्वारा चलाई जा ही योजना मनरेगा के तहत 100 दिन रोजगार मिलने की ज़मीनी हकीकत ये है कि काम करने के 5 से 6 महीने बाद भी उनकी मज़दूरी का भुगतान नहीं हो पाता। अब श्रमिक वर्ग इन सब समस्याओं से निपटने के लिए दिल्ली, गुजरात, आंध्र प्रदेश,तमिलनाडू, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में जाकर फैक्ट्रियों में मज़दूरी करते हैं, लेकिन शहरों में रोज़गार के लिए पलायन करने वालों की चुनौतियां पलायन के बाद भी कम नहीं हैं। देश भर में लगभग 1 करोड़ प्रवासी मज़दूरों को न्यूनतम मज़दूरी भी नहीं मिल रही, अधिक्तर मज़दूर या तो दिहाड़ी या ठेके पर ही काम करते हैं। साथ ही नौकरी जाने का डर और दूसरे राज्यों में सुरक्षा की चिंता सताती रहती है। केंद्र व राज्य सरकार द्वारा जनहित में चलायी जा रही विभिन्न जन कल्याणकारी योजनाओं जैसे खाद्य सुरक्षा, पेंशन, मनरेगा, बेहतर शिक्षा और खुद के रोजगार के लिए आर्थिक सहयोग ज़रूरत मंदों को मिलने लगे तो मजबूरी में हो रहे पलायन में कमी लाई जा सकती है। श्रोताओ, इस अभियान में जब आप और हम मिलकर अपने परिवार या जानकारों के पलायन से जुड़े अनभव साझा करेंगे तो बहुत कुछ जान पाएंगे, बहुत कुछ सीख सकते हैं, ताकि कार्यक्षेत्र में आपको बेहतर वातावरण मिल सके। तो श्रोताओ, हम आपसे जानना चाहते हैं कि अगर आपको या आपके गांव शहर में रहने वाले दूसरे लोगों को पलायन करना पड़ा तो उसके पीछे मुख्य वजह क्या रही? जहां आप काम करने जाते हैं, वहां के स्थानीय लोगों के स्तर पर या राज्य सरकार के स्तर पर आपके साथ किस तरह का व्यवहार रहता है? क्या परेशानी के हालातों में आपका सहियोग किया जाता है, सुरक्षा दी जाती हैे? प्रवासी मज़दूरों को उचित वेतन मिले, सुरक्षा और सम्मान के साथ काम करने के अवसर मिलें, इसके लिए क्या कुछ किया जाना चाहिए।
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झारखण्ड राज्य के रांची ज़िला के कांके प्रखंड से मनोज कुमार झारखण्ड मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं, कि झारखण्ड में जितने भी निजी विद्यालय के निजी शिक्षक हैं उनका आर्थिक व मानसिक दोनों तरह से शोषण हो रहा हैं।शिक्षकों को कम मज़दूरी पर रखा जाता हैं साथ ही उनका शोषण भी किया जाता हैं शिक्षकों को निजी स्कूल प्रबंधन व प्रबंधक द्वारा निलंबित करने की धमकिया भी मिलती हैं।उन पर मानसिक दबाव भी बनाया जाता हैं।इसका पूरा असर शिक्षा पर पड़ता हैं।झारखण्ड के शिक्षा मंत्री और मुख्यमंत्री से अनुरोध हैं कि इस पर कड़ी कारवाही की जाए।
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"सपने तो हमने खूब दिखाए गये थे ओर हम आम आदमियों ने भी खूब हसीन सपने बुने थे पर कितना सच हुआ ओर कितना नही आज एक बार हुमारे लिए पीछे मूड कर देखना भी ज़रूरी है ताकि हम इस से हमारे आसपास हो रहे राजनैतिक क्रिया कलपो को समझ सके.हमने आप से पहले भी इस बारे मे चर्चा की है ओर आप ने भी ढेरो प्रतिक्रियाएँ दे कर हमें आप की ज़िंदेगी ओर समुदाय मे चल राही भावनाओ को समझने का मौका दिया था.पर आज दो साल बाद भी क्या आप की सोच वही कायम है जो दो साल पहले नोटेबंदी को लेकर थी? नोटेबंदी से आप के ज़िंदेगी मे जो भी प्रभाव पड़ा था, क्या वो तत्कालिक था? या फिर इसकी प्रतिक्रिया अभी भी आप के जीवन मे छल रही है? आख़िर नोट बंदी से आप के ज़िंदेगी मे कौन कौन से बदलाव आए?वैसे, क्या आप को पता है, नोटेबंदी के बाद कितने काले धन वापस आए? रिज़र्ब बैंक की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक नोटबंदी के दौरान 15 लाख 44 हजार करोड़ रुपए के नोट बंद किए गए थे जो के सभी पुराने 500 या हज़ार के थे. उनमें से नोटेबंदी के दौरान15 लाख 31 हजार करोड़ रुपय वापस आए हैं. मतलब सिर्फ 13 हजार करोड़ रुपये ही सिस्टम से बाहर हुआ है. आप सोच रहे होंगे मैने 13 हज़ार करोड़ को ""सिर्फ़"" क्यूँ कहा अब जिस देश मे सरकार अपनी प्रचार प्रसार के लिए सालाना करीब 4 हज़ार क्रोर रुपय खर्चा करती हो ओर जहा 14 हज़ार क्रोर लेकर कोई ब्यापारी देश से फरार हो जाता है वहां 13 हज़ार करोड़ पूरे देश के सिस्टम से बाहर करना कोई ज़्यादा रकम नही लगती है. अगर आरबीआई की इस फाइनल रिपोर्ट को माने तो सवाल यह उठता है कि जब 99.3% पैसा वापस आ गया तो नोटबंदी के ज़रिए पूरे देश को कतार मे खड़ा करने का फायदा क्या हुआ ? उस समय भारतीय अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी के विनाशकारी प्रभाव की ख़बरें पूरे देश से लगातार सुनने को मिली ,उदाहरण के लिए कृषि क्षेत्र में संकट, कारोबार में कमी, फैक्ट्रियों का बंद हो जाना,मजदूरों की छंटनी, मजदूरी का भुगतान नहीं होना जैसी कई ख़बरे लगातार आई।पर हम सब दिल थाम कर एक सुंदर ओर अच्छे भविष्य के चाहत मे इस सभी समास्स्याओं को झेलते चले गये.अब नोटबंदी के इतने दिनों बाद क्या आप के आस-पास इन सभी हालातों में कोई सुधार देखने को मिल रहा है? सरकार ने बढ़चढ़ कर कहा था आप का मोबाइल ही आप का बटुआ है ओर डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के साथ-साथ भारत मे भ्रास्तचार को रोकते हुए कैशलेस अर्थव्यवस्था बनाने की भी बात की थी जो की सुनने मे अच्छा था पर व्यवहारिक रूप में हमारा शहर,गांव ,क़स्बा डिजिटल इंडिया की दिशा में कहा तक बढ़ पाया है? क्या आप मोबाइल या इंटरनेट बॅंकिंग का प्रयोग करते है? ओर आप कितने आसानी से पयत्म या फोनेपे जैसे पेमेंट आप का इस्तेमाल कर पाते है?
स्वच्छता और स्वास्थ्य एक दूसरे के पूरक हैं।साफ़-सफाई रखना एक अच्छी आदत और स्वस्थ रहने का तरीका है हमारे अच्छे स्वस्थ जीवन के लिये। अच्छे स्वास्थ्य के लिये सभी प्रकार की स्वच्छता बहुत जरुरी है चाहे वो व्यक्तिगत हो, अपने आसपास की, पर्यावरण की। हम सभी को निहायत जागरुक होना चाहिये कि कैसे अपने रोजमर्रा के जीवन में स्वच्छता को बनाये रखना है।इसके लिए सबसे जरुरी है अपने गांव को शौच मुक्त करना। दोस्तों, क्या हाल है आपके गांव का....? क्या आपके समुदाय में शौचालय का निर्माण हुआ है..? शौचालय का निर्माण होने से आपके समुदाय की वर्तमान स्थिति कैसी है...? समुदाय को स्वछ बनाए रखने के लिए सरकार के द्वारा दिए जाने वाली राशि से की आप लाभान्वित हुए हैं...? कैसी है आपके गांव की वर्तमान स्थिति..? दोस्तों आप अपने स्तर से अपनी आदत में साफ-सफाई को किस प्रकार शामिलकरते हैं..?
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