दिल्ली के गुरुग्राम रोड से नन्द किशोर की बातचीत साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से शिव शंकर से हुई। शिव शंकर कहते है कि काम बहुत ही मंदा चल रहा है। महीने में 15 दिन ही काम मिल पाता है। कभी प्रदुषण तो कभी लॉक डाउन आड़ा आ जाती है। 400 रूपए दिहाड़ी रहती है परन्तु काम करवा कर 300 रूपए ही देते है।प्रशासन से मदद लेने पर वो भी सुनवाई नहीं करते है ,गाँव वालों से डरते है।कार्यक्षेत्र में ईंट उठाने का काम दिया जाता है तो कभी ऐसे काम दिया जाता था जिससे वो कर नहीं पाते थे। कार्यक्षेत्र में सुरक्षा के साधन भी नहीं मिलते है ये पहले हॉटीकल्चर का कार्य करते थे माली डिपार्ट का ,जिसमे उनको 15 हज़ार रूपए मिलते थे। लॉक डाउन में काम से निकाल दिया ,जिसके बाद से दिहाड़ी में श्रमिक का काम करते है। इनके साथ इनके परिवार भी बाहर जा कर कार्टन में स्टीकर चिपकने का काम करते है ,जिसके उन्हें 5400 रूपए वेतन मिलते है। इससे गुज़ारा करना बहुत मुश्किल है। दूसरा कारण कि जनसंख्या बढ़ी हुई है ,पहले तो लेबर चौक में दिहाड़ी मिल जाती थी लेकिन अब नहीं मिलती है। बिहार में भी काम करना मुश्किल है क्योंकि वहां रेट कम मिलता है ,इसलिए लोग नगरों की ओर आना पसंद करते है। सरकार से आज तक कोई सहायता नहीं मिली ,बिहार से लेबर कार्ड भी नहीं बना।