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इस कार्यक्रम में हम जलवायु परिवर्तन के कारण बदलते मौसम और असमान बारिश के पैटर्न से उत्पन्न हो रहे जल संकट पर चर्चा करेंगे। "मौसम की मार, पानी की तकरार" से लेकर "धरती प्यासी, आसमान बेपरवाह" जैसे गंभीर मुद्दों पर गहराई से विचार किया जाएगा। हम समझेंगे कि कैसे सूखा और बाढ़ दोनों ही हमारे जल संसाधनों को प्रभावित कर रहे हैं, और इन समस्याओं से निपटने के लिए सामूहिक और व्यक्तिगत स्तर पर क्या समाधान हो सकते हैं। हम आपसे जानना चाहते हैं – आपके इलाक़े में पानी की क्या स्थिति है? क्या आपने कोई जल संरक्षण के उपाय अपनाए हैं? या आप इस दिशा में कोई क़दम उठाने की सोच रहे हैं?
साथियों, आपके यहां पानी के प्रदूषण की जांच कैसे होती है? यानि क्या सरकार ने इसके लिए पंचायत या प्रखंड स्तर पर कोई व्यवस्था की है? अगर आपके क्षेत्र में पानी प्रदूषित है तो प्रशासन ने स्थानीय जनता के लिए क्या किया? जैसे पाइप लाइन बिछाना, पानी साफ करने के लिए दवाओं का वितरण या फिर पानी के टैंकर की सुविधा दी गई? अगर ऐसा नहीं हो रहा है तो आप कैसे पीने के पानी की सफाई करते हैं? क्या पानी उबालकर पी रहे हैं या फिर उसे साफ करने का कोई और तरीका है? पानी प्रदूषित होने से आपको और परिवार को किस किस तरह की दिक्कतें आ रही हैं?
झारखंड राज्य के बोकारो जिला से मोबाइल वाणी संवाददाता नरेश महतो जानकारी दे रहे हैं कि ग्रामीण विस्थापित रैयत मोर्चा द्वारा दामोदर नदी और घाट को स्वच्छ रखने के लिए नुक्कड़ नाटक का आयोजन किया गया। नदी के तट पर सैकड़ों दाह संस्कार और कूड़े के कारण नदी प्रदूषित हो रही है।असामाजिक तत्वों द्वारा नशे में धुत होने के बाद शराब की बोतलें नदी के तल पर फेंकी जाती हैं।विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।
गरगा बचाओ यात्रा की तैयारी को लेकर बैठक आज
जलवायु परिवर्तन आज की तारीख में एक बड़ी चुनौती बन गई है इसी मुद्दे को लेकर कोलकाता में बैठक सह कार्यशाला आयोजित किया गया जिसमें बिहार पश्चिम बंगाल उड़ीसा तथा झारखंड के स्वयं सेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं।विस्तृत जानकारी के लिए ऑडियो पर क्लिक करें।
जहां जहां स्टील और कोयला का उत्पादन किया जा रहा है वहां वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन गई है उसी मुद्दे को लेकर महिला कल्याण समिति जन जागरूकता कार्यक्रम चलायेगा
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भारतीय संस्कृति में दीपावली घी के दिये जला कर मनाने की परम्परा चली आ रही है. इस परम्परा को जीवित रखते हुए दीया प्रज्ज्वलित कर दीपावली मनावें. इधर देखा जाता है कि दीपावली में पटाखे फोड़ कर व आतिशबाजी कर ख़ुशी का इजहार कर रहे हैं. जो नीति व कानून सम्मत नहीं है. वायु प्रदूषण इस कदर है कि लोगों को सांस लेने में कठिनाई हो रही है. प्रदुषण के कारण विभिन्न प्रकार की बिमारियों का प्रकोप बढ़ रहा है, औषत उम्र घट रहा है. प्रदूषण से मरने वालों की संख्या बढ़ रही है. ऐसी स्थिति में दीपावली पर पटाखे फोडना उदंडता व आत्मघाती है और सामूहिक क्षति का सामना करना पड़ता है. पटाखों से प्रति वर्ष जान माल की खतरा होते रहती है. स्थल पर गंदगी फैलाने व पर्यावरण को प्रदूषित करने वालों पर कानून की धारा लगा कर कार्रवाई करने का प्रावधान है. पटाखों से परहेज करने की आवश्यकता है. ताकि पर्यावरण प्रदूषित न हो और जान माल की भी क्षति न हो. साथ ही पैसे की भी बचत हो जाएगी. पर्यावरण को शुद्ध रखने के लिए हम सबों को पेड़ लगाना चाहिए. प्रत्येक दीपावली में पेड़ लगाने की परम्परा को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है. सब चीजों को सरकार के हिस्से में न छोड़ कर हम सब अपने नैतिक दायित्व का निर्वहन करना चाहिए
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