दोस्तों, प्रधानमंत्री के पद पर बैठे , किसी भी व्यक्ति से कम से कम इतनी उम्मीद तो कर ही सकते हैं कि उस पद पर बैठने वाला व्यक्ति पद की गरिमा को बनाए रखेगा। लेकिन कल के भाषण में प्रधानमंत्री ने उसका भी ख्याल नहीं रखा, सबसे बड़ी बात देश के पूर्व प्रधानमंत्री के खिलाफ खुले मंच से झूठ बोला। लोकतंत्र में आलोचना सर्वोपरि है वो फिर चाहे काम की हो या व्यक्ति की, सवाल उठता है कि आलोचना करने के लिए झूठ बोलना आवश्यक है क्या? दोस्तों आप प्रधानमंत्री के बयान पर क्या सोचते हैं, क्या आप इस तरह के बयानों से सहमत हैं या असहमत, क्या आपको भी लगता है कि चुनाव जीतने के लिए किसी भी हद तक जाना अनिवार्य है, या फिर आप भी मानते हैं कि कम से कम एक मर्यादा बनाकर रखी जानी चाहिए चाहे चुनाव जीतें या हारें। चुनाव आयोग द्वारा कोई कार्रवाई न करने पर आप क्या सोचते हैं। अपनी राय रिकॉर्ड करें मोबाइलवाणी पर।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" के नारे से रंगी हुई लॉरी, टेम्पो या ऑटो रिक्शा आज एक आम दृश्य है. पर नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च द्वारा 2020 में 14 राज्यों में किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि योजना ने अपने लक्ष्यों की "प्रभावी और समय पर" निगरानी नहीं की। साल 2017 में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट में हरियाणा में "धन के हेराफेरी" के भी प्रमाण प्रस्तुत किए। अपनी रिपोर्ट में कहा कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ स्लोगन छपे लैपटॉप बैग और मग खरीदे गए, जिसका प्रावधान ही नहीं था। साल 2016 की एक और रिपोर्ट में पाया गया कि केंद्रीय बजट रिलीज़ में देरी और पंजाब में धन का उपयोग, राज्य में योजना के संभावित प्रभावी कार्यान्वयन से समझौता है।

झारखण्ड राज्य के बोकारो जिला के कासमार गाँव से सदाम कुमार सेन मोबाइल वाणी के माध्यम से बात रहे हैं कि हमारे झारखंड राज्य के हर गाँव और पुलिस थाना शहर में कानून और व्यवस्था बिगड़ गई है। क्योंकि यहाँ अच्छी जाँच नहीं होती है, यहाँ के जन-प्रतिनिधि, मुख्य मंच पर जिला परिषद के विधायक, जो भी बड़े स्तर पर आता है, वह जन-प्रतिनिधि बन जाता है, यह जनता की राजनीतिक मंशा है। वह किसी भी जनहित के मुद्दे को दबाने की कोशिश करते हैं जो वास्तव में काम कर रहा है और जो लोग भ्रष्टाचार और ऐसे जनहित के खिलाफ आवाज उठाते हैं, अगर वे कमजोर हैं तो वे गरीब हैं। इसलिए उसे साजिश रचने में भी फंसाया जाता है जो उसके पास है और उसने जो भी गलतियाँ की हैं, वह जाकर उन्हें कानून की नज़रों में उजागर करेगा। यह उन्हें कानून के पास जाने और जो है उसे मिटाने की अनुमति नहीं देता है, आज हमारे झारखंड राज्य में ऐसी स्थिति है और इसलिए कोई प्रगति नहीं है, कोई विकास नहीं है। हर जगह लोगों में एक-दूसरे के प्रति नाराजगी, गुस्सा है और जो लोग ज्यादा काम नहीं कर रहे हैं, जो लोग नेता हैं, जो लोग दलाल हैं, जो लोग बैठे हैं और योजना के पैसे खा रहे हैं।

झारखण्ड राज्य के बोकारो जिला के कासमार गाँव से सदाम कुमार सेन मोबाइल वाणी के माध्यम से बात रहे हैं कि आज जब लोग जागरूक हो रहे हैं, तो वे बदलाव की मांग करते हैं। लेकिन डिजिटल भारत होने के बावजूद, लोग जिस तरह का बदलाव चाहते हैं, वह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। बदलाव लाने के लिए, लेकिन आज जिस राजनीति में एक नेता उम्मीदवार खड़ा होता है, वहां 99 प्रतिशत भीड़ जमा होती है। जो लोग जाते हैं वे श्रमिक हैं, उनके चम्मच दलाल हैं, वे लोग हैं जो भीड़ को इकट्ठा करते हैं और भाग लेते हैं, बाकी लोग अपनी मेहनत और प्रशंसा से अपना जीवन जीते हैं। और इन लोगों की वजह से आज स्थिति इतनी गंभीर होती जा रही है कि यह बहुत से लोगों को कानून से ऊपर रखती है। ब्लॉक जिले, जहां इन लोगों की मनमानी के कारण आम लोगों और निर्दोष लोगों को रीढ़ की हड्डी में चोट लगती है, इन लोगों द्वारा बड़ी गलती करने के बाद भी।

झारखण्ड राज्य के बोकारो जिला के कासमार गाँव से सदाम कुमार सेन मोबाइल वाणी के माध्यम से बात रहे हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में, साफ छवि की उतनी जांच नहीं की जाती है जितनी होनी चाहिए। पुलिस कर्मी काम करते हैं और सीधे साधारण सम्मानित परिवार को परेशान करते हैं। ऐसा ही एक मामला होली के दिन कसामत चट्टी का है। जहां दोनों पक्षों के बीच लड़ाई हुई थी, वहां शराब पीने का मामला था, शराब पीकर हुई लड़ाई का विवाद था, जहां लोक प्रतिनिधि वार्ड सदस्य सेवा देवी थीं। यह समझाया गया था कि दारोपी उस सकलवासन में लड़ना नहीं चाहता था जो दारोपी पर एक बुजुर्ग व्यक्ति के साथ चिल्ला रहा था जो 83 वर्ष का है और और उसे भी ऊपर ले गया, उसके हाथ की उंगली तोड़ दी और उसे ऐसा न करने के लिए समझाया, लेकिन उसने अपना बचाव करने के लिए अपने नाम पर मामला दर्ज किया। पुलिस प्रशासन बिना जाँच के मामले को आगे बढ़ाता है और इस तरह से जो कुछ भी है वह सही नहीं है और भले ही लोगों को परेशान करने के लिए कानून न्याय हो, इसलिए अच्छी तरह से जाँच करें।

2024 के आम चुनाव के लिए भी पक्ष-विपक्ष और सहयोगी विरोधी लगभग सभी प्रकार के दलों ने अपने घोषणा पत्र जारी कर दिये हैं। सत्ता पक्ष के घोषणा पत्र के अलावा लगभग सभी दलों ने युवाओं, कामगारों, और रोजगार की बात की है। कोई बेरोजगारी भत्ते की घोषणा कर रहा है तो कोई एक करोड़ नौकरियों का वादा कर रहा है, इसके उलट दस साल से सत्ता पर काबिज राजनीतिक दल रोजगार पर बात ही नहीं कर रहा है, जबकि पहले चुनाव में वह बेरोजगारी को मुद्दा बनाकर ही सत्ता तक पहुंचा था, सवाल उठता है कि जब सत्ताधारी दल गरीबी रोजगार, मंहगाई जैसे विषयों को अपने घोषणापत्र का हिस्सा नहीं बना रहा है तो फिर वह चुनाव किन मुद्दों पर लड़ रहा है।

मनरेगा में भ्रष्टाचार किसी से छुपा हुआ नहीं है, जिसका खामियाजा सबसे ज्यादा दलित आदिवासी समुदाय के सरपंचों और प्रधानों को उठाना पड़ता है, क्योंकि पहले तो उन्हें गांव के दबंगो और ऊंची जाती के लोगों से लड़ना पड़ता है, किसी तरह उनसे पार पा भी जाएं तो फिर उन्हें प्रशासनिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस मसले पर आप क्या सोचते हैं? क्या मनरेगा नागरिकों की इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम हो पाएगी?

भारत का आम समाज अक्सर सरकारी सेवाओं की शिकायत करता रहता है, सरकारी सेवाओं की इन आलोचनाओं के पक्ष में आम लोगों सहित तमाम बड़े बड़े अर्थशास्त्रियों तक का मानना है कि खुले बाजार से किसी भी क्षेत्र में काम कर रही कंपनियों में कंपटीशन बढ़ेगा जो आम लोगों को बेहतर सुविधाएं देगा। इस एक तर्क के सहारे सरकार ने सभी सेवाओं को बाजार के हवाले पर छोड़ दिया, इसमें जिन सेवाओं पर इसका सबसे ज्यादा असर हुआ वे शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर पड़ा है। इसका खामियाजा गरीब, मजदूर और आम लोगों को भुगतना पड़ता है।

कोई भी राजनीतिक दल हो उसके प्रमुख लोगों को जेल में डाल देने से समान अवसर कैसे हो गये, या फिर चुनाव के समय किसी भी दल के बैंक खातों को फ्रीज कर देने के बाद कैसी समानता? आसान शब्दों में कहें तो यह अधिनायकवाद है, जहां शासन और सत्ता का हर अंग और कर्तव्य केवल एक व्यक्ति, एक दल, एक विचारधारा, तक सीमित हो जाता है। और उसका समर्थन करने वालों को केवल सत्ता ही सर्वोपरी लगती है। इसको लागू करने वाला दल देश, देशभक्ति के नाम पर सबको एक ही डंडे से हांकता है, और मानता है कि जो वह कर रहा है सही है।

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