*कहां से लाऊं कपड़े लत्ते,* *कहां से लाऊं रंग गुलाल,* *भूखा हूं, कई सालों से,* *दो महीने से भी न मिली पगार!* *बच्चे तरस रहे मिठाई को,* *पत्नी को साड़ी की है दरकार,* *कैसे बताऊं बूढ़ी मां को,* *बमुश्किल रोटी का हुआ जुगाड!* *हक और सम्मान की खातिर,* *"जब हमने आवाज उठाई,* *भूखे गुरुओं के पेट पर,* *लात मार बैठी ये सरकार!* *कैसा ये सुशासन,कैसा अत्याचार,* *रोटी और सम्मान के बदले,* *भूखों मार रही ये सरकार!* विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।