आज विश्व पर्यटन दिवस है। घूमना - फिरना,नए जगहों का अनुभव प्राप्त करना,मनोरंजन करना और अपने रोजमर्रा के जीवन से दूर, कुछ पल उमंग और उत्साह के साथ बिताना पर्यटन कहलाता है। नए लोगों के साथ मिलने-जुलने से मस्तिष्क विकसित होता है एवं वहां की संस्कृति और सभ्यता का ज्ञान होता है। पर्यटन का किसी भी देश के सामाजिक,आर्थिक तथा राजनीतिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान होता है।यह दिन प्राकृतिक संसाधनों तथा सांस्कृतिक विरासतों के संरक्षण की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है. .... मोबाइल वाणी परिवार की और से आप सभी को विश्व पर्यटन दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं !

सिविल लाइंस, जो बनाया तो अंग्रेजों के लिए गया था लेकिन वह तो रहे नहीं सो अब हमारे काम आ रहा है। बेहद खूबसूरत, जगमगाती इमारतें, चौड़ी सड़कें, फर्राटा भरती गांडियां और सबकुछ इतना करीने से की घूमने के लिए अद्भुत जगह, मेरा खुद से देखा हुआ अब तक का सबसे शानदार दिलकश, बगल में कॉफी की महक उड़ाता इंडियन कॉफी हाउस। और ज्यादा जानने के लिए इस ऑडियो को क्लिक करें।

किसी भी शहर की वैसे तो कई पहचानें हो सकती हैं, आप की पहचान क्या है यह आपको खुद ढूंढना पड़ेगा, हां यह शहर आपकी मदद कर देगा बिना यह जाने के आप कौन है, कहां से आए हैं, और किसलिए आए हैं। यह इलाहाबाद में ही संभव है कि यह राजनीति की पाठशाला भी बनता है, तो धर्म का संगम भी इसी के हिस्से है, धर्म और अधर्म के बीच झूलती राजनीति को सहारा और रास्ता दिखाने वाली तालीम और साहित्य भी इसी शहर की पहचान हैं। इस सब के बावजूद कोई अगर प्रेम न कर पाए तो फिर उसके मानव होने पर भी संदेह होने लगता है।

इंदौर मप्र के मालवा में बसा हुआ है और मालवा माटी को लेकर कहावत है कि मालव माटी गहन गंभीर, पग पग रोटी डग डग नीर... सैकड़ों बरस पहले कही गई यह बात आज भी उतनी ही सच्ची लगती है। इंदौर की सूरत और सीरत आज भी इस कहावत पर कायम है। आप पूछेंगे कैसे तो वो ऐसे कि यहां आने वाला कोई आदमी शायद ही कभी भूखे लौटता होगा।

नर्मदा के किनारों पर अलग-अलग राजवंशों की न जाने कितनी कहानियां लिखी हुई हैं। हालांकि राजवंशों से ज्यादा सभ्यता की कहानियां ज्यादा मुक्कमल दिखाई देती हैं। नर्मदा और उसकी महत्ता को बेहतर समझना हो तो हर साल होने वाली नर्मदा परिक्रमा को देख आना चाहिए। कहने को तो यह परिक्रमा धार्मिक है लेकिन उससे ज्यादा यह सामाजिक है, और प्रकृति के साथ मानव के सहअस्तिव का ज्ञान कराती है।

मैक्लुस्कीगंज 2 मार्च 2024 झारखंड में सिर्फ बेतला नेशनल में मौजूद बायसन बढ़ा रहे हैं जंगल की शान फोटो कैप्सन उपस्थित बायसन झारखंड में सिर्फ बेतला नेशनल पार्क मे पाये जाने वाले बायसन ( गौर,जंगली भैंसा) जंगल की शान है .सैलानियों को भले ही बाघ न दिखे, हाथी न दिखे लेकिन इतना तो तय है कि हिरण ,बंदर , लंगूर के बाद यदि कोई जानवर सबसे अधिक बेतला पार्क में दिखता है तो वह बायसन ही है. करीब 70 की संख्या में मौजूद बायसन बेतला पार्क की खूबसूरती बढ़ाने में काफी योगदान देते हैं. बेतला पार्क का भ्रमण करते समय अलग अलग रुपों में इन बायसन को देखा जा सकता है. कभी प्यास बुझाते हुए वाटर ट्रफ के पास, तो कभी घास चरते हुए ग्रास प्लॉट में ,तो कभी आराम करते हुए पेड़ की छाया में, तो कभी अपने बच्चों के साथ मौज मस्ती करते हुए. अलग-अलग पोज में दिखने वाले इन बायसन को लोग अपने कैमरों में कैद करना नहीं भूलते हैं . बायसन के चारों टांगों में सफेद मोजे की तरह दिखाई देने वाला चिंह सैलानियों को काफी भाता है.एक समय था जब पूरे पलामू टाइगर रिजर्व में हजारों की संख्या में बाइसन थे. लेकिन समय के साथ बाइसन की संख्या घट रही है. सेंसेस रिपोर्ट की माने तो प्रत्येक वर्ष पलामू टाइगर रिजर्व के अन्य क्षेत्रों में बायसन नहीं होने के संकेत मिल रहे हैं .लेकिन बेतला नेशनल पार्क ही एक ऐसा जगह है जहां बायसन बड़ी संख्या में अभी भी मौजूद है. बेतला में बायसन ने अपना स्थायी घर बना लिया गया है .क्योंकि अन्य जगहों की तुलना में बेतला नेशनल पार्क उनके लिए काफी सुरक्षित जगह माना जाता है . सुरक्षित जगह होने के कारण ही बायसन बड़ी संख्या में बेतला पार्क में मौजूद है. इस समय गर्मी के दिनों में पार्क जाने के बाद बायसन को देखना निश्चित माना जाता है .यह बात भी सही है कि अधिक संख्या में वाहनों के प्रवेश करने पर कई बार झाड़ियों में जाकर बायसन छिप जाते हैं. इसीलिए सभी लोग बायसन को नहीं देख पाते हैं. जिस जगह पर बायसन सैलानी देखते हैं उसी जगह पर दूसरे सैलानी नहीं देख पाते हैं. क्योंकि स्वतंत्र होने के कारण वे जंगलों में छिप जाते हैं . पार्क के अंदर मौजूद जलाशयों में गर्मी में प्यास बुझाते हुए बायसन के दृश्य इन दिनों काफी नजर आ रहे हैं. कभी हिरणों के झुंड के साथ ,कभी जंगली सूअर के साथ बायसन वाटर ट्रफ के पास दिख जाते हैं. शाकाहारी हैं लेकिन हमलावर भी वैसे तो बाइसन शाकाहारी जंतु है. लेकिन किसी तरह का व्यवधान होने पर वह हमलावर भी हो जाता है .इसलिए पार्क घूमते समय बायसन देखने के बाद सैलानियों को वाहन में ही बैठे रहने की सलाह दी जाती है. अक्सर जब बायसन बच्चों के साथ होते हैं तब तब हमला करने की आशंका अधिक रहती है. जिस तरह से लंगूर व हिरण की जोड़ी साथ साथ देखी जाती है, उसी तरह से इन दिनों बायसन व लंगूर को भी साथ देखा जाता है. लंगूर पेड़ पर पत्तियों वगैरह खाते हैं और बायसन के लिए नीचे गिरा देते हैं जिसे बायसन शौक से खा जाते हैं . बाघिन को मारकर चर्चा में रहे बायसन वर्ष 2020 में फरवरी महीने के 15 तारीख को बेतला नेशनल पार्क में उसे समय अजीब स्थिति बन गयी थी जब बायसन का झुंड ने मिलकर एक बाघिन को मार डाला था. हुआ यह था कि बायसन अपने बच्चों के साथ झुंड में चर रहे थे. इसी बीच बाघिन के द्वारा बायसन के एक बच्चे को पकड़ने का प्रयास किया गया था. इस खतरे का आभास होते ही बायसन ने उसे पर हमला कर दिया था और उनके हमले से बाघिन की मौत हो गयी थी. इस घटना के बाद बायसन काफी दिनों तक चर्चा में रहे. आज भी पार्क घूमने के दौरान जब लोग उसे स्थल पर पहुंचते हैं तो पूरा घटना दिमाग में घूमने लगता है.

अगर कोई चतरा आये और झारखण्ड के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल इटखोरी के बारे में बात न करें , ऐसा तो हो ही नहीं सकता। तो हम भी यहाँ के दर्शन और इतिहास को खँगालने यहाँ आ पहुँचे। गौरवपूर्ण अतीत को संभाल कर रखने वाले इटखोरी के भद्रकाली में तीन धर्मों का समागम है। हिंदू, बौद्ध एवं जैन धर्म के लिए यह पावन भूमि है। ज्यादा जानने के लिए इस ऑडियो को सुने ...

चतरा को झारखण्ड या छोटा नागपुर का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। 1857 के विद्रोह के दौरान छोटानागपुर में विद्रोहियों और ब्रिटिशों के बीच लड़ा जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई ‘चतरा की लड़ाई’ थी। चतरा झारखंड राज्य की राजधानी से रांची जिले से करीब 124 किलोमीटर दूर है। चतरा में आप सड़क माध्यम के द्वारा पहुंच सकते है। और क्या क्या घूमने लायक है चतरा ज़िले में , ये जानने के लिए इस ऑडियो को क्लिक करें।

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मैक्लुस्कीगंज  7 फरवरी 2024 फ़ोटो 1 - कोयला धुलाई में लगे हाइवा डम्फर. मैक्लुस्कीगंज के रास्ते हाइवा डम्फर से कोयला ट्रांसपोर्टिंग से आम जनों को हो रही है परेशानी. इन दिनों मैक्लुस्कीगंज थाना क्षेत्र के बघमरी, हेसालौंग, कोनका, लपरा के रास्ते कोयला ट्रांसपोर्टिंग चरम पर है. कोयला ढुलाई में लगभग दो दर्जन से अधिक हाइवा डम्फर को लगाया गया है, जिससे उक्त मार्ग पर चलने वाले राहगीरों व आमजनों को धूल गर्द, ट्रैफिक आदि भारी समस्या का सामना करना पड़ रहा है. वहीं विद्यालय जाने वाले विद्यार्थियों को भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. ज्ञात हो कि मैक्लुस्कीगंज पर्यटन के साथ साथ एजुकेशन हब के नाम से विख्यात है. एक ओर जहां देश विदेश से पर्यटकों का आना जाना पूरे वर्ष मैक्लुस्कीगंज में लगा रहता है, वहीं गंज स्थित शिक्षण संस्थानों में झारखंड सहित अन्य राज्यों से विद्यार्थी छात्रावासों में रहकर पठन पाठन करने में लीन है. विद्यालय आवागमन में परेशानी का सबब बना हुआ है. दुर्घटना का भी संभावना बनी रहती है. इस बाबत रांची जिला ग्रामीण महामंत्री प्रीतम कुमार साहू, जितेन्द्रनाथ पांडेय, भाजपा खलारी मंडल संयोजक रामसूरत यादव, समाजसेवी रामबिलास गोप सहित अन्य ने विद्यार्थियों ग्रामीणों व आमजनों की समस्याओं से स्थानीय प्रशासन को अवगत कराते हुए हाइवा डम्फर से कोयला धुलाई पर अंकुश लगाने की मांग की है. साथ ही विद्यालय के समय व छुट्टी के समय बड़े वाहनों के परिचालन पर नो एंट्री लगाने की मांग की है.