महिला बंध्याकरण को लेकर चिकित्सा पदाधिकारी ने चलाया जागरूकता

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दलहन की फसल पर पड़ेगा बर्षा का असर किसानों की बढ़ गई चिंता

मिशन परिवार विकास अभियान के तहत 12 से 24 सितंबर तक चले परिवार नियोजन सेवा पखवाड़ा के दौरान मुंगेर ने एक बार फिर से हासिल की ऐतिहासिक उपलब्धि - महिला बंध्याकरण के मामले में मुंगेर एक बार फिर से पूरे बिहार में रहा टॉप पर - आईयूसीडी (कॉपर टी) और पुरष नसबंदी के मामले में भी रहा दूसरे पायदान पर मुंगेर, राज्य स्वास्थ्य समिति बिहार के द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार मिशन परिवार विकास अभियान के तहत 12 से 24 सितंबर तक राज्य भर में चले परिवार नियोजन सेवा पखवारा के दौरान महिला बंध्याकरण के मामले में एक बार फिर से मुंगेर जिला ने निर्धारित 600 की तुलना में लक्ष्य से अधिक 869 का आंकड़ा प्राप्त करते हुए 144.8% सफलता के साथ पूरे बिहार में पहला स्थान हासिल किया है। इस मामले में पूरे बिहार में दूसरे स्थान पर रहे औरंगाबाद जिला ने निर्धारित 740 की तुलना में लक्ष्य से अधिक 946 का आंकड़ा प्राप्त करते हुए 114.7% सफलता प्राप्त करते हुए पूरे बिहार में दूसरा स्थान प्राप्त किया है। वहीं आईयू सीडी (कॉपर टी) के मामले में निर्धारित लक्ष्य 1650 की तुलना में 1044 का आंकड़ा प्राप्त करते हुए 63.3 % सफलता हासिल कर पूरे बिहार में दूसरा स्थान प्राप्त किया है। इस मामले में कटिहार जिला ने निर्धारित 3215 की तुलना में 2394 का आंकड़ा प्राप्त करते हुए 74.5 % सफलता हासिल कर पूरे बिहार में पहले पायदान पर है। इसी तरह पुरुष नसबंदी के मामले में भी मुंगेर जिला ने एक बार फिर से निर्धारित लक्ष्य 55 कि तुलना में लक्ष्य से अधिक 76 का आंकड़ा प्राप्त करते हुए 138.2 % सफलता हासिल करते हुए पूरे बिहार में दूसरा स्थान प्राप्त किया है। इस मामले में मुंगेर प्रमंडल का ही शेखपुरा जिला ने निर्धारित लक्ष्य 35 कि तुलना में लक्ष्य से अधिक 83 का आंकड़ा प्राप्त करते हुए 237.1% सफलता के साथ पूरे बिहार में पहला स्थान प्राप्त किया है। सिविल सर्जन सह सदस्य सचिव जिला स्वास्थ्य समिति मुंगेर ने बताया कि मुंगेर के जिलाधिकारी और जिला स्वास्थ्य समिति मुंगेर के अध्यक्ष नवीन कुमार के कुशल नेतृत्व में मुंगेर जिला स्वास्थ्य के छेत्र में लगातार नए कीर्तिमान स्थापित कर रही है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि मुंगेर जिला ने एक बार फिर से स्वास्थ्य क्षेत्र अंतर्गत परिवार नियोजन के महिला बंध्याकरण में पूरे राज्य में पहले स्थान पर आया है। मुंगेर जिला ने एक ओर जहां महिला बंध्याकरण के मामले में लगातार दूसरी बार पूरे बिहार में पहला स्थान प्राप्त किया है वहीं पुरुष नसबंदी करवाने और आईयूसिडी (कॉपर टी) लगवाने में भी लगातार दूसरी बार पूरे प्रदेश में दूसरा स्थान प्राप्त किया है। उन्होंने बताया कि महिला बंध्याकरण में मुंगेर जिला का लगातार दूसरी बार पूरे बिहार में टॉप करना और पुरुष नसबंदी और आईयूसीडी में लगातार दूसरे स्थान रहना जिला स्वास्थ्य समिति मुंगेर के डीपीएम नसीम रजी एवं डीसीएम निखिल राज के नेतृत्व में मुंगेर के सुदूर ग्रामीण क्षेत्र सहित शहरी क्षेत्र में जाकर महिलाओं सहित अन्य लोगों को परिवार नियोजन के लिए जागरूक करने का ही परिणाम है। उक्त कार्यक्रम के दौरान आशा कार्यकर्ताओं एवं स्वास्थ्य कर्मियों ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

मुंगेर, 30 जून। राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम 2025 के तहत अब मिस्ड कॉल पर टीबी मरीजों को पूरी जानकारी मिलेगी । इसको लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार ने 1800 - 116666 टॉल फ्री नंबर जारी किया है। इस नंबर पर मिस्ड कॉल करते ही टीबी मरीजों को पूरी आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी। इस साथ ही इस टॉल फ्री नंबर पर कॉल करके टीबी के मरीज अपनी शिकायत भी दर्ज करा सकते हैं। जिला स्वास्थ्य समिति मुंगेर के जिला कार्यक्रम प्रबंधक नसीम रजि ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना है कि सन 2025 तक देश को टीबी के संक्रमण से मुक्त कर दिया जाए। लेकिन यह तभी संभव है जब सभी लोग मिलजुल कर टीबी को जड़ से खत्म करने में अपना सहयोग दें। भारत सरकार के द्वारा टीबी की अधिक से अधिक जानकारी लोगों को उपलब्ध कराने के लिए एक टॉल फ्री नंबर भी जारी किया है जिस पर कॉल न करके सिर्फ मिस्ड कॉल पर ही टीबी से संबंधित सभी आवश्यक जानकारी उपलब्ध करा दी जाएगी। उन्होंने बताया कि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय देश की सबसे गंभीर बीमारी समझी जाने वाली टीबी के उन्मूलन के लिए अब मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हुए टॉल फ्री नंबर जारी किया है।

जिला के प्रभारी सिविल सर्जन डॉ. आनंद शंकर शरण सिंह ने बताया कि मंकी पॉक्स वायरस जानवरों से फैलने वाली एक बीमारी है । मूल रूप से इसके वायरस जानवरोें में ही होते है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक मंकी पॉक्स कई तरह के बंदरों व अन्य जानवरों में पाया जाता है।

स्कूल स्तर पर 12 से 14 आयु वर्ग के बच्चों के कोविड वैक्सीनेशन के लिए जारी किए गए नए दिशा -निर्देश - राज्य स्वास्थ्य समिति बिहार के राज्य प्रतिरक्षण पदाधिकारी ने सभी जिलों के सिविल सर्जन, डीआईओ और जिला शिक्षा पदाधिकारी को जारी किए निर्देश - देश के कई राज्यों में टीकाकरण के बाद इस आयु वर्ग के बच्चों के हॉस्पिटलाइजेशन की सूचना मिलने के बाद जारी किया गया दिशा- निर्देश मुंगेर, 2 अप्रैल। स्कूल के स्तर पर 12 से 14 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों के कोविड वैक्सीनेशन के लिए राज्य स्वास्थ्य समिति ने नए दिशा -निर्देश जारी किए हैं। इसको ले राज्य स्वास्थ्य समिति बिहार के राज्य प्रतिरक्षण पदाधिकारी ने डॉ. नरेंद्र कुमार सिन्हा ने राज्य के सभी जिलों के सिविल सर्जन, डीआईओ और जिला शिक्षा पदाधिकारी को पत्र जारी कर आवश्यक दिशा- निर्देश जारी किए हैं। जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी (डीआईओ) डॉ. राजेश कुमार रौशन ने बताया कि राज्य के सभी जिलों में 12 से 14 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए स्कूल स्तर पर ही कोरोना की वैक्सीन लगाई जा रही है। राज्य स्वास्थ्य समिति से प्राप्त सूचना के अनुसार देश के कई राज्यों में उक्त आयु वर्ग के कई बच्चों के कोरोना टीकाकरण के बाद उनके हॉस्पिटलाइजेशन की सूचना प्राप्त हुई है। इसके प्रारंभिक कारणों में बच्चों में एंग्जायटी पायी गयी है जिसमें बच्चे डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं। इसको देखते हुए उक्त आयु वर्ग के बच्चों के लिए विद्यालय स्तर पर लगाए जा रहे सत्र स्थलों पर निम्नलिखित दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं - - टीकाकरण कक्ष में एक समय में केवल एक ही बच्चा का प्रवेश कराया जाय। - प्रतीक्षा, टीकाकरण एवं 30 मिनट के अवलोकन के लिए अलग-अलग कमरे का प्रबंध किया जाय। - टीकाकरण की प्रतीक्षा करने वाले बच्चों के बैठने के लिए पर्याप्त व्यवस्था करायी जाय तथा वहां लंबी लाइन नहीं लगाई जाय। - टीकाकरण के लिए बच्चों को खाली पेट नहीं रखा जाय। - टीकाकरण की प्रक्रिया से बच्चों का ध्यान नहीं हटाने के लिए अवलोकन कक्ष में खेल, मनोरंजन आदि का व्यवस्था की जाय। उन्होंने बताया कि विद्यालय स्तर पर 12 से 14 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों का टीकाकरण स्थानीय स्तर पर कार्यरत शिक्षा विभाग के पदाधिकारियों के साथ समन्वय स्थापित कर कराए जाएंगे।

22 अप्रैल को जिलाभर में मनाया जाएगा राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस - सरकारी और निजी विद्यालयों सहित आंगनबाड़ी केंद्रों पर 26 अप्रैल को आयोजित होगा मॉप अप दिवस - 1 से 19 वर्ष तक सभी बच्चों और किशोर-किशोरियों को खिलाई जाएगी अल्बेंडाजोल की कृमि नाशक दवा मुंगेर, 1 अप्रैल। आगामी 22 अप्रैल को मुंगेर सहित राज्य के 31 जिलों में राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस और 26 अप्रैल को मॉप अप दिवस मनाया जाएगा। भारत सरकार के दिशा-निर्देश के अनुसार 1 से 19 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों और किशोरों को कृमि से बचाने के लिए आगामी 22 अप्रैल को राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस मनाया जाना है। इस दौरान जिला के सभी सरकारी और निजी विद्यालय, केंद्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय, मदरसा, संस्कृत विद्यालय सहित तकनीकी संस्थान, पॉलिटेक्नीक और आईटीआई संस्थान के साथ-साथ आगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से 1 से 19 आयु वर्ग के बच्चों और किशोर-किशोरियों को कृमि नाशक दवा अल्बेंडाजोल 400 एमजी का सेवन कराया जाएगा। इस दौरान कोरोना प्रोटोकॉल का अक्षरशः पालन किया जाएगा। जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ. राजेश कुमार रौशन ने कहा कि बच्चों में कृमि संक्रमण , व्यक्तिगत अस्वच्छता तथा संक्रमित दूषित मिट्टी सम्पर्क से होता है। कृमि के संक्रमण से बच्चों के पोषण स्तर एवम हीमोग्लोबिन स्तर पर गहरा दुष्प्रभाव पड़ता है। जिससे बच्चों का शारीरिक और बौद्धिक विकास प्रभावित होता है। उन्होंने बताया कि पीजीआई चंडीगढ़, आरएमआरआई पटना, एनआईई चेन्नई, सहयोगी संस्था एविडेंस एक्शन एवम राज्य स्वास्थ्य समिति बिहार के द्वारा कराए गए सर्वेक्षण के अनुसार बच्चों में कृमि संक्रमण का दर 2011 की तुलना में सन 2019 में 65 प्रतिशत से घटकर 24 प्रतिशत पर आ गया है । उन्होंने बताया कि 1 से 2 वर्ष के बच्चों के अल्बेंडाजोल 400 एमजी टैबलेट का आधा चूरकर पानी के साथ खिलाना है वहीं 2 से 3 वर्ष के बच्चों को अल्बेंडाजोल 400 एमजी का एक टैबलेट चूरकर पानी के साथ खिलाना है। इसके साथ ही 3 से 19 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों और किशोरों को एक पूरी टैबलेट चबाकर खिलानी है। इसके बाद ही पानी का सेवन करना है। इस अति महत्वपूर्ण कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए आशा कार्यकर्त्ता, आंगनबाड़ी सेविका- सहायिका, जीविका दीदियों सहित स्वास्थ्य विभाग के सहयोगी संस्थाएं एवं हितधारी संगठनों से भी अपेक्षित सहयोग लिया जाएगा । इसके साथ ही इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए आवश्यक प्रचार- प्रसार भी किया जाएगा। शारीरिक एवं मानसिक विकास बाधित करते हैं कृमि - कृमि संक्रमण के प्रभाव एवं संचरण चक्र पर प्रकाश डालते हुए जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डा. राजेश कुमार रौशन ने बताया कि कृमि ऐसे परजीवी हैं जो मनुष्य के आंत में रहते हैं। आंतों में रहकर ये परजीवी जीवित रहने के लिए मानव शरीर के आवश्यक पोषक तत्वों पर ही निर्भर रहते हैं। जिससे मानव शरीर आवश्यक पोषक तत्वों की कमी का शिकार हो जाता जिससे वे कई अन्य प्रकार की बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। खासकर बच्चों और किशोर एवं किशोरियों पर कृमि के कई दुष्प्रभाव पड़ते हैं। जैसे- मानसिक और शारीरिक विकास का बाधित होना, कुपोषण का शिकार होने से शरीर के अंगों का विकास अवरूद्ध होना, खून की कमी होना आदि जो आगे चलकर उनकी उत्पादक क्षमता को बुरी तरह प्रभावित करते हैं। कृमि का संचरण चक्र संक्रमित बच्चे के खुले में शौच से आरंभ होता है। खुले में शौच करने से कृमि के अंडे मिट्टी में मिल जाते और विकसित होते हैं। अन्य बच्चे जो नंगे पैर चलते हैं या गंदे हाथों से खाना खाते हैं या बिना ढके हुए भोजन का सेवन करते हैं आदि लार्वा के संपर्क में आकर संक्रमित हो जाते हैं। इसके लक्षणों में दस्त, पेट में दर्द, कमजोरी, उल्टी और भूख का न लगना आदि हैं। संक्रमित बच्चों में कृमि की मात्रा जितनी अधिक होगी उनमें उतने ही अधिक लक्षण परिलक्षित होते हैं। हल्के संक्रमण वाले बच्चों व किशोरों में आमतौर पर कोई लक्षण नहीं दिखाई पड़ते हैं।

मुंगेर,स्वास्थ्य विभाग के द्वारा ज्यादा से ज्यादा योग्य लाभार्थियों को कोरोना टीकाकरण से आच्छादित करने की मुहिम लगातार जारी है। वैक्सीन की दोनों डोज लेने के बाद अब योग्य लाभार्थियों एवं फ्रंटलाइन तथा हेल्थ वर्कर को विगत 10 जनवरी से कोरोना वैक्सीन की प्रीकॉशनरी डोज़ लगायी जा रही है। मुंगेर में सभी योग्य लाभार्थियों को जल्द से जल्द टीकाकृत करने के लिए स्वास्थ्य विभाग लगातार प्रयास कर रहा है। टीकाकरण के लिए इस्तेमाल किए जा रहे सिरिंजों के उपयोग एवं स्टॉक के अनुसरण के लिए अपर निदेशक, प्रतिरक्षण सह राज्य प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ. नरेंद्र कुमार सिन्हा के द्वारा नया दिशा-निर्देश जारी किया गया है। कोविड टीकाकरण हेतु उच्च डिनोमिनेशन वाली सिरिंजों का होगा प्राथमिकता के आधार पर उपयोग :

राफ्ट" मोबाइल एप्लीकेशन नवजात शिशुओं के लिए वरदान - नवजात शिशु के जन्म के एक सप्ताह के अंदर चार बार गृह भ्रमण कर बच्चों के स्वास्थ्य की जाती है देखभाल - रियल टाइम एनालिसिस एंड फीडबैक टूल का संक्षिप्त रूप है राफ्ट मुंगेर, कोरोना की तीसरी लहर के दौरान कोविड टेस्टिंग, वैक्सीनेशन के साथ -साथ अन्य लोगों को अन्य स्वास्थ्य सुविधाएं भी लोगों को लगातार मिल रही हैं। इसी क्रम में जिला में नवजात शिशु मृत्यु दर को कम से कमतर करने की दिशा में अत्याधुनिक तकनीक के सहयोग से लगातार कार्य किया जा रहा है। इसके तहत "राफ्ट" नामक मोबाइल एप्लीकेशन की मदद से लगातार शिशु स्वास्थ्य की लगातार मॉनिटरिंग की जा रही है। मालूम हो राफ्ट का फूल फॉर्म रियल टाइम एनालिसिस एंड फीडबैक टूल है । इस तकनीक के जरिये स्वास्थ्य कर्मी ऑनलाइन जीपीएस के माध्यम से लगातार नवजात शिशु के स्वास्थ्य की देखभाल कर रहे हैं। इस तकनीक की मदद से जिला में शिशु मृत्यु दर को कम से कमतर करने का प्रयास किया जा रहा है। एक आंकड़े के अनुसार मुंगेर जिला में अप्रैल 2021 से अक्टूबर 2021 के दौरान 0 से 5 आयु वर्ग का कुल 102 चाइल्ड डेथ हुई है। पूरे राज्य में अभी मैटरनल और चाइल्ड डेथ का आंकड़ा 149 अर्थात तीन डिजिट में है । इस मोबाइल एप के माध्यम से शिशु के जन्म के बाद कमजोर नवजात शिशु की पहचान कर लगातार छह महीने तक उसकी विशेष देखभाल केयर इंडिया के प्रखण्ड प्रबंधक और स्वास्थ्य कर्मी कर रहे हैं। "राफ्ट" मोबाइल एप्लीकेशन से कैसे की जाती है नवजात शिशु की देखभाल : केयर इंडिया मुंगेर के डीटीओ ऑन तबरेज़ आलम ने बताया कि शिशु जन्म के बाद चिह्नित किए गए नवजात शिशु की देखभाल के लिए एक सप्ताह के अंदर चार दिनों तक केयर इंडिया के कर्मी स्वास्थ्य कर्मी के साथ बच्चों के घर जाते हैं। इसके बाद मोबाइल एप्लीकेशन राफ्ट पर शिशु की तस्वीर अपलोड करने के बाद शिशु स्वास्थ्य की उचित देखभाल की सलाह दी जाती है। इसके बाद चौथे दिन और सातवें दिन केयर इंडिया के प्रखंड स्तरीय स्वास्थ्य प्रबंधक मौके पर पहुंचकर इसी प्रक्रिया को दोहराते हैं। उन्होंने बताया कि मुंगेर जिला के सभी प्रखंड में कार्यरत केयर इंडिया के सभी स्वास्थ्य प्रबंधकों को इसकी जिम्मेदारी दी गई है, जो जिला के सभी 9 प्रखंडों में कार्यरत हैं। नवजात शिशु की कैसे की जाती है देखभाल : • सात दिनों तक नवजात को स्नान नहीं कराना । • दिन में 10 से 12 बार स्तनपान व रात्रि में 3 से 4 बार स्तनपान कराना । • नवजात शिशु के नाभि में कुछ भी नहीं लगाना । • नवजात को केवल स्तनपान कराना । • नवजात शिशु को कंगारू मदर केयर की देखभाल देना। • शिशु को अतिरिक्त गर्माहट देने के लिए ऊनी कपड़े का प्रयोग करना । • शिशु को दूध पिलाने के लिए बोतल का प्रयोग बिल्कुल नहीं करना । इस दौरान कैसे की जाती है कुपोषित बच्चों की पहचान : उन्होंने बताया कि शिशु जन्म के बाद कुपोषित शिशु की पहचान की जाती है। इसके लिए कुछ मापदंड हैं जैसे : शिशु जन्म के समय शिशु का वजन 2000 ग्राम या 2000 ग्राम से कम होना । • शिशु का 37 सप्ताह से पहले लेना । • मां का स्तनपान करने में नवजात शिशु का सक्षम नहीं होना । उन्होंने बताया कि राफ्ट मोबाइल एप्लीकेशन के माध्यम से नवजात शिशु के कुपोषित चिह्नित होने के बाद शिशु को उसकी मां के साथ सदर अस्पताल मुंगेर स्थित पोषण एवं पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) में 28 दिनों के लिए भर्ती कराया जाता है। जहां शिशु स्वास्थ्य के सभी मानकों के अनुसार नवजात शिशु के स्वास्थ्य की नियमित देखभाल की जाती है। यहां शिशु स्वास्थ्य के नियमित देखभाल के लिए फीडिंग डिमांस्ट्रेटर के साथ -साथ कई स्वास्थ्य कर्मी कार्यरत हैं।