गिद्धौर प्रखंड क्षेत्र में जब से ग्राम वाली काम कर रही है तब से गरीबों का काम आसान हो गया है क्योंकि मोबाइल एक ऐसा उपकरण है जो प्रत्येक गांव के घरों में मौजूद है और लोग इसी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर ग्राम बनी सुनते हैं और अपनी राय प्रतिक्रिया के साथ-साथ अपनी समस्या भी रिकॉर्ड करते हैं

किसी भी समाज को बदलने का सबसे आसान तरीका है कि राजनीति को बदला जाए, मानव भारत जैसे देश में जहां आज भी महिलाओं को घर और परिवार संभालने की प्रमुख इकाई के तौर पर देखा जाता है, वहां यह सवाल कम से कम एक सदी आगे का है। हक और अधिकारों की लड़ाई समय, देश, काल और परिस्थितियों से इतर होती है? ऐसे में इस एक सवाल के सहारे इस पर वोट मांगना बड़ा और साहसिक लेकिन जरूरी सवाल है, क्योंकि देश की आबादी में आधा हिस्सा महिलाओं का है। इस मसले पर बहनबॉक्स की तान्याराणा ने कई महिलाओँ से बात की जिसमें से एक महिला ने तान्या को बताया कि कामकाजी माँओं के रूप में, उन्हें खाली जगह की भी ज़रूरत महसूस होती है पर अब उन्हें वह समय नहीं मिलता है. महिलाओं को उनके काम का हिस्सा देने और उन्हें उनकी पहचान देने के मसले पर आप क्या सोचते हैं? इस विषय पर राय रिकॉर्ड करें

आपका पैसा आपकी ताकत की आज की कड़ी में हम सुनेंगे अपने श्रोताओं की राय

हाल ही में एक रिपोर्ट के अनुसार बीस तीन सालों में दुनिया के पांच बड़े व्यापारियों की संपत्ति में दोगुने से ज्यादा का इजाफा हुआ है, जिस समय इन अमीरों की दौलत में इजाफा हो रहा था, ठीक उसी समय पांच मिलियन लोग गरीब से और ज्यादा गरीब हो रहे थे। इससे ज्यादा मजे की बात यह है कि हाल ही में दावोस में हुई वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम की बैठक में शीर्ष पांच उद्योगपतियों ने एक नई रणनीति पर चर्चा और गठबंधन किया।

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मुख्यमंत्री ने मुखिया,उपमुखिया,सरपंच,समिति वार्ड सदस्य के मानदेय में सम्मानजनक वृद्धि करेगें अधिक जानकारी के लिए ऑडियो पर क्लिक करें और पुरी जानकारी सुनें

बीड़ी मजदूरी में बढ़ोतरी की मांग को लेकर बीड़ी मजदूरों ने किया बैठक

गिद्धौर प्रखंड अंतर्गत रतनपुर पंचायत के बना दी गांव निवासी नरेंद्र पाठक जी बता रहे हैं कि यह दिल्ली में एक गुटखा कंपनी में काम करते हैं जहां इसे 12 घंटे काम लिए जाते हैं और मात्र 8 से ₹9000 प्रतिमा दिए जाते हैं उसके बाद भी अगर कंपनी में काम अधिक होता है तो मजदूर को रोक कर रखा जाता है अगर अधिक रात में कंपनी से जब निकलते हैं तो कभी-कभी ऐसा भी होता है कि डेरा जाने के लिए बस नहीं मिलता है तो वैसी स्थिति में भूखे पास से कंपनी में जाकर सोना पड़ता है

अंतरराष्ट्रीय पटल पर काम के घंटे एवं कार्य दिवस काम होते जा रहे हैं लेकिन हमारे देश में सप्ताह के पूरे दिन एवं कार्य दिवस के साथ-साथ कार्य का समय 12 से 16 घंटे हो रहे हैं और श्रमिक एवं कर्मचारी उसे कार्य को मजबूरी बस कर रहे हैं जिसके कारण कर्मचारी का मानसिक एवं शारीरिक परेशानी बढ़ता जा रहा है एवं अपने परिवार एवं बच्चों से दूर होता जा रहा है अधिक काम करने के कारण लोग थकान अधिक महसूस कर रहे हैं और अपने परिवार एवं बच्चों पर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं और अपनी थकान को दूर करने के लिए कर्मचारी और श्रम एक नशा की ओर अग्रसर भी हो रहे हैं

एक मजदूर देश के निर्माण में बहुमूल्य भूमिका निभाता है और उसका देश के विकास में अहम योगदान होता है। किसी भी समाज, देश, संस्था और उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों की अहम भूमिका होती है। मजदूरों के बिना किसी भी औद्योगिक ढांचे के खड़े होने की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए श्रमिकों का समाज में अपना ही एक स्थान है, लेकिन आज भी देश में मजदूरों के साथ अन्याय और उनका शोषण होता है। आज भारत देश में बेशक मजदूरों के 8 घंटे काम करने का संबंधित कानून लागू हो लेकिन इसका पालन सिर्फ सरकारी कार्यालय ही करते हैं, बल्कि देश में अधिकतर प्राइवेट कंपनियां या फैक्टरियां अब भी अपने यहां काम करने वालों से 12 घंटे तक काम कराते हैं। जो कि एक प्रकार से मजदूरों का शोषण हैं। आज जरुरत है कि सरकार को इस दिशा में एक प्रभावी कानून बनाना चाहिए और उसका सख्ती से पालन कराना चाहिए।