लोकसभा चुनाव के पहले चरण में मतदान होने जा रहा है और इस पहले चरण में बिहार की चार लोकसभा सीटें शामिल हैं, जिनमें से एक जमुई भी है। विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।

एन. डी. ए. और महगठबंधन ने लोकसभा चुनाव के लिए जमुई में अपनी पूरी ताकत लगा दी है। विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव का हेलीकॉप्टर कार्यक्रम स्थल पर उतरा और गठबंधन ने जिंदाबाद के नारे लगाने शुरू कर दिए। विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।

राजद नेता तेजस्वी यादव ने जमुई लोकसभा सीट से पार्टी उम्मीदवार के रूप में अर्चना रविदास को मैदान में उतारा है। उन्होंने कहा कि भाजपा ने देश के विकास का वादा किया था लेकिन पिछले दस वर्षों में एक भी वादा पूरा नहीं किया।विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार दस साल तक केंद्र में रही, जबकि राज्य में एनडीए की सरकार थी। गठबंधन सरकार ने सत्रह साल तक शासन किया है लेकिन आज भी पूरे राज्य में एक भी कारखाना स्थापित नहीं किया गया है। जमुई में उद्योग की कमी है। यहाँ से मजदूर मजदूरों के रूप में काम करने के लिए दूसरे राज्यों में जाते हैं।विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।

मनरेगा में भ्रष्टाचार किसी से छुपा हुआ नहीं है, जिसका खामियाजा सबसे ज्यादा दलित आदिवासी समुदाय के सरपंचों और प्रधानों को उठाना पड़ता है, क्योंकि पहले तो उन्हें गांव के दबंगो और ऊंची जाती के लोगों से लड़ना पड़ता है, किसी तरह उनसे पार पा भी जाएं तो फिर उन्हें प्रशासनिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस मसले पर आप क्या सोचते हैं? क्या मनरेगा नागरिकों की इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम हो पाएगी?

रविवार को बिहार के नवादा में पीएम रैली का आयोजन किया गया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवदक रैली को संबोधित करते हुए विपक्षी दलों पर तीखा हमला किया, वहीं श्री नितीश कुमार ने भी इसमें कटौती की। वर्ष में जो हासिल किया गया वह स्वतंत्रता के बाद के साठ वर्षों में नहीं किया जा सका। जनता द्वारा चुनी गई एक मजबूत सरकार देश के लिए साहसिक कदम उठा रही है। मोदी के आश्वासनों से भारतीय गठबंधन नाराज है। विस्तार पूर्वक खबर सुनने के लिए ऑडियो क्लिक करें

हमारी सूखती नदियां, घटता जल स्तर, खत्म होते जंगल और इसी वजह से बदलता मौसम शायद ही कभी चुनाव का मुद्दा बनता है। शायद ही हमारे नागरिकों को इससे फर्क पड़ता है। सोच कर देखिए कि अगर आपके गांव, कस्बे या शहर के नक्शे में से वहां बहने वाली नदी, तालाब, पेड़ हटा दिये जाएं तो वहां क्या बचेगा। क्या वह मरुस्थल नहीं हो जाएगा... जहां जीवन नहीं होता। अगर ऐसा है तो क्यों नहीं नागरिक कभी नदियों-जंगलों को बचाने की कवायद को चुनावी मुद्दा नहीं बनाते। ऐसे मुद्दे राजनीति का मुद्दा नहीं बनते क्योंकि हम नागरिक इनके प्रति गंभीर नहीं हैं, जी हां, यह नागरिकों का ही धर्म है क्योंकि हमारे इसी समाज से निकले नेता हमारी बात करते हैं।

कोई भी राजनीतिक दल हो उसके प्रमुख लोगों को जेल में डाल देने से समान अवसर कैसे हो गये, या फिर चुनाव के समय किसी भी दल के बैंक खातों को फ्रीज कर देने के बाद कैसी समानता? आसान शब्दों में कहें तो यह अधिनायकवाद है, जहां शासन और सत्ता का हर अंग और कर्तव्य केवल एक व्यक्ति, एक दल, एक विचारधारा, तक सीमित हो जाता है। और उसका समर्थन करने वालों को केवल सत्ता ही सर्वोपरी लगती है। इसको लागू करने वाला दल देश, देशभक्ति के नाम पर सबको एक ही डंडे से हांकता है, और मानता है कि जो वह कर रहा है सही है।

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