टनल से मजदूरों को बाहर निकालने में लगे 17 दिनों में हर बार की तरह इस बार भी नेताओं से लेकर मीडिया का भारी जमावड़ा आखिरी दिन तक लगा रहा, जो हर संभव तरीके से वहां की पल पल की जानकारी साझा कर रहे था। इन 17 दिनों में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हो गए, क्रिकेट विश्वकप का आयोजन हो गया,

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गिद्धौर प्रखंड क्षेत्र के मजदूरों को प्रतिदिन काम मिलता हुआ दिखाई दे रहा है क्योंकि गिद्धौर प्रखंड के कई गांव में इस बार धान का रोपा हुआ था और धन जब पककर तैयार हो गया तो उसे काटने के लिए मजदूरों की आवश्यकता पड़ गया

पक्ष विपक्ष में आज मजदूर के कार्य को लेकर मेरी प्रतिक्रिया है कि मजदूरों से अधिक काम नहीं लेना चाहिए मजदूरों से सिर्फ 6 से 8 घंटे ही काम लेना चाहिए

गिद्धौर प्रखंड अंतर्गत रतनपुर पंचायत के बना दी गांव निवासी नरेंद्र पाठक जी बता रहे हैं कि यह दिल्ली में एक गुटखा कंपनी में काम करते हैं जहां इसे 12 घंटे काम लिए जाते हैं और मात्र 8 से ₹9000 प्रतिमा दिए जाते हैं उसके बाद भी अगर कंपनी में काम अधिक होता है तो मजदूर को रोक कर रखा जाता है अगर अधिक रात में कंपनी से जब निकलते हैं तो कभी-कभी ऐसा भी होता है कि डेरा जाने के लिए बस नहीं मिलता है तो वैसी स्थिति में भूखे पास से कंपनी में जाकर सोना पड़ता है

पांच विपक्ष के तहत चल रहे अभियान पर किस बिहारी तिवारी के द्वारा यह बताया जा रहा है की कंपनी में 12 से 16 घंटे काम लिया जाता है और हम लोग भी अधिक पैसे कमाने के लिए काम करते हैं लेकिन इसका परिणाम हमारे जीवन पर बड़ा पड़ रहा है लेकिन हमारे साथ भी मजबूरी है इसके कारण ओवर टाइम काम करना पड़ता है

अंतरराष्ट्रीय पटल पर काम के घंटे एवं कार्य दिवस काम होते जा रहे हैं लेकिन हमारे देश में सप्ताह के पूरे दिन एवं कार्य दिवस के साथ-साथ कार्य का समय 12 से 16 घंटे हो रहे हैं और श्रमिक एवं कर्मचारी उसे कार्य को मजबूरी बस कर रहे हैं जिसके कारण कर्मचारी का मानसिक एवं शारीरिक परेशानी बढ़ता जा रहा है एवं अपने परिवार एवं बच्चों से दूर होता जा रहा है अधिक काम करने के कारण लोग थकान अधिक महसूस कर रहे हैं और अपने परिवार एवं बच्चों पर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं और अपनी थकान को दूर करने के लिए कर्मचारी और श्रम एक नशा की ओर अग्रसर भी हो रहे हैं

एक मजदूर देश के निर्माण में बहुमूल्य भूमिका निभाता है और उसका देश के विकास में अहम योगदान होता है। किसी भी समाज, देश, संस्था और उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों की अहम भूमिका होती है। मजदूरों के बिना किसी भी औद्योगिक ढांचे के खड़े होने की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए श्रमिकों का समाज में अपना ही एक स्थान है, लेकिन आज भी देश में मजदूरों के साथ अन्याय और उनका शोषण होता है। आज भारत देश में बेशक मजदूरों के 8 घंटे काम करने का संबंधित कानून लागू हो लेकिन इसका पालन सिर्फ सरकारी कार्यालय ही करते हैं, बल्कि देश में अधिकतर प्राइवेट कंपनियां या फैक्टरियां अब भी अपने यहां काम करने वालों से 12 घंटे तक काम कराते हैं। जो कि एक प्रकार से मजदूरों का शोषण हैं। आज जरुरत है कि सरकार को इस दिशा में एक प्रभावी कानून बनाना चाहिए और उसका सख्ती से पालन कराना चाहिए।

मजदूर और उसके बच्चे भोजन की तलाश में इधर से उधर घूमता रहता है फिर भी उसे भोजन नसीब नहीं हो पाता है। विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।

जमुई के गढ़ी के तीन मजदूर की मौत बेंगलुरु में आग की चपेट में आने से हो गई अधिक जानकारी के लिए ऑडियो पर क्लिक करें और पूरी जानकारी सुने