जीवन चुनौतियों से भरा होता है। जीवन के अंतिम साँस तक कोई न कोई चुनौती किसी न किसी रूप में हमारे सामने आकर खड़ी रहती है। ऐसे में बात करें मजदूर भाइयों की तो,जीवन की आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा करने और परिवार का भरण-पोषण करने के चक्कर में ये कब मानव से मशीन बन गए खुद इन्हें भी पता नही है। ज़्यदातर मजदूरों की ज़िन्दगी घर से फैक्ट्री और फैक्ट्री से घर तक ही सिमट कर रह जाती है। इससे परे न वो सोच पाते हैं और न ही सोचने का समय मिलता है। खुद के लिए सोचना ,अपनी पसंद के लिए समय निकालना,समाज में लोगों के साथ मिलना जुलना,इत्यादि , ये वो पहलू है जो हमें इंसान बनाते हैं।इसलिए हमें काम और खुद के बीच तालमेल बैठाने की कोशिश करनी चाहिए।खुद के सुकून का ध्यान नही रखेंगे तो हम ज़िन्दगी को नही जी पाएंगे,बल्कि ज़िन्दगी हमें जीने लगेगी। इस बात का अंदाज़ा मानेसर फैक्ट्री के मजदूर भाइयों को भी हुआ था और बिना देर किये उन्होंने आपस में मिलना-जुलना, इत्मिनान से खूब बातें करना,गाना-बजाना,हंसना-हँसाना शुरू किया और काम के साथ-साथ अपने लिए खूबसूरत पलों को जीना शुरू किया। साथियों, अब आप हमें बताएं.... क्या आप और आप के साथी अपने शौक के लिए समय निकालते हैं ? आप के फैक्ट्री में काम का महौल कैसा है ? काम के तनाव के साथ हम कैसे खुद को खुश रख सकते हैं ?

नमस्कार दोस्तों, आप बताएं कि नेता कौन है? क्योंकि आमतौर पर नेता की परिभाषा तो यही है कि जो नेतृत्व करता हो.. जैसे राजनेता जनता के प्रतिनिधी बनकर संसद में उनका नेतृत्व करते हैं.. वैसे ही नेताओं का एक प्रकार श्रमिकों के बीच भी है..जिसे यूनियन नेता कहते हैं. ये नेता श्रमिकों का प्रतिनिधित्व प्रतिष्ठानों, कंपनी और कारखानों में करते हैं. पर जैसे राजनेता भ्रष्टचार के शिकार होते हैं वैसे ही यूनियन नेता भी कई बार अपने वायदों से मुकर कर श्रमिकों की बजाए प्रबंधन के पक्ष में खडे नजर आते हैं. इस बारे में एक किस्सा याद आ रहा है...

आजादी शब्द ख़ुशी और सुकून के एहसास से जुड़ा है, जिसे 7 से 14 अक्टूबर 2012 के दौरान मारुति सुजुकी मानेसर फैक्ट्री के कामगारों ने महसूस किया था। इस दौरान फैक्ट्री से कंपनी और सरकार का कब्जा ढीला हुआ था। तब सभी कामगार अपने काम को लेकर स्वतंत्र थे। हालांकि कुछ समय बाद माहौल बदल गया. जब फैक्ट्री में कंपनी का दखल शुरू हुआ। वहां फिर वही हुआ जो कंपनियों में होता है.राजनीति, दमन, श्रम नियमों का उल्लंघन और शोषण. कंपनी ने मजदूरों पर काम का बोझ बढ़ा दिया... अस्थाई मजदूरों को फैक्ट्री से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। साथियों, अब आप हमें बताएं कि आपकी कंपनी या फैक्ट्री या फिर आप जहां भी काम करते हैं वहां का माहौल कैसा है? माहौल को खुशनुमा बनाएं रखने के लिए क्या प्रबंधन की ओर से कोई पहल की जा रही है या फिर आप अपने काम के माहौल से खुश नहीं हैं? अपने मन की बातों को इस मंच पर रिकॉर्ड करें... फोन में नम्बर 3 दबाकर

जून 2011 से 18 जुलाई 2012 के दौरान मारुति सुजुकी मानेसर के मजदूरों ने भी कंपनी के भीतर कुछ ऐसा ही अव्यवहारिक किया था... जिसने वहां के दशा और दिशा को बदलकर रख दिया. 4 जून 2011 को ए और बी शिफ्ट के मजदूरों ने मिलकर फैक्ट्री पर से कम्पनी और सरकार का कब्जा हटा दिया. ऐसा करने से पहले मजदूरों ने 13 दिन तक अव्यवहारिक माहौल बनाएं रखा. कंपनी ने भी मजदूरों को सबक सिखाने में कोई कसर नहीं छोडी. कंपनी ने एक ओर जहां पुराने मजदूरों को बाहर कर दिया वहीं दूसरी ओर नई भर्ती कर नए कर्मचारियों को फैक्ट्री में जगह दी. इतना ही नहीं... उस समय कंपनी में पुलिस भी आई थी. बाद में एक समझौते के तहत 44 कर्मचारियों को फिर से नौकरी पर रखा गया पर ठेका कर्मचारी कंपनी से बाहर ही रहे. इसके बाद आंदोलन और तेज हो गया और कंपनी के कई और प्लांट में मजदूरों ने एक होकर अपने साथी मजदूरों को काम पर वापिस रखने की मांग की. नतीजतन कंपनी ने बाकी मजदूरों को भी वापिस काम पर रख लिया. आज हमारे चारों तरफ मारुति सुजुकी मानेसर जैसी घटनाएं हो रही हैं. आज हमारे चारों तरफ मारुति सुजुकी मानेसर जैसी घटनाएं हो रही हैं. अगर आपने भी अपनी कंपनी में ऐसा कुछ देखा है तो उसके बारे में हमें बताएं. साथ ही बताएं कि आपको एफएमएस कार्यक्रम कैसा लग रहा है?

नमस्कार आदाब दोस्तों, फरीदाबाद मजदूर समाचार में आपका स्वागत है... दोस्तों, कई बार देखने को मिला है कि मजदूर भाई मुद्दे पर एकजुट हो कर पूरे जोश के साथ आंदोलन शुरू करते हैं मगर समय के साथ-साथ उनका धैर्य ख़त्म होने लगता है. हाल ही में आई.एम.टी. मानेसर स्थित फैक्ट्री में ऐसी ही घटना घटी. जहां 300 मजदूरों ने जनवरी में विरोध प्रदर्शन शुरू किया पर प्रबंधन की चुप्पी ने आंदोलन के जोश को धीमा कर दिया. जुलाई आते-आते मात्र 30 मजदूर भाई आंदोलन का हिस्सा रह गये थे. ज्यादातर मजदूरों ने आंदोलन से खुद को अलग कर लिया। जिसका नतीजा यह हुआ कि कंपनी ने मजदूर यूनियन के साथ मिलकर समझौता किया और कंपनी का काम सुचारू रूप से चालू करवाया । साथियों, अपने हक़ की लड़ाई में किसी के दबाव में नहीं आना चाहिए और जब तक जीत न मिले समझौता नही करनी चाहिए।अब आप हमें बताइए...क्या आप के कंपनी में मजदूर भाइयों ने कभी कंपनी या यूनियन के दबाव में अपने मुद्दे से समझौता किया है ? क्या आप ने अपने हक़ के लिए आवाज बुलंद किया है? वो कौन -कौन सी वजहें हैं जो आंदोलन को कमजोर कर देती है?अपनी बात हम तक पहुँचाने के लिए फ़ोन में दबाए नंबर 3.

नमस्कार/आदाब दोस्तों, फरीदाबाद मजदूर समाचार की नई कड़ी में आपका स्वागत है. साथियों, देश का विकास श्रमिक के कंधों पर टिका है. नामी कंपनियां केवल तकनीक के बल पर नहीं बल्कि श्रमिकों के श्रम पर ऊंचाइयों को छू रही हैं. ऐसे में अगर उसी कंपनी में रहते हुए श्रमिकों के साथ छल हो... या फिर कंपनी की तरक्की तो हो पर श्रमिकों की नहीं.. तो दुखद है. दोस्तों, अक्सर देखा जाता है कि श्रमिकों के पास सालों का अनुभव होने के बाद भी उनका वेतन ज्यों का त्यों रहता है. कंपनी में स्थाई नियुक्ति नहीं मिलती. अस्थाई कर्मचारियों का तो कई तरह से शोषण भी होता है. अब हाल ही में सीनियर फ्लैक्सोनिक्स के श्रमिकों का मामला सामने आया है. जहां उनके साथ कार्यक्षेत्र में सालों से शोषण होता आ रहा था पर एक दिन उन्होंने अन्याय के खिलाफ श्रम विभाग में दस्तक दी. बावजूद इसके श्रम विभाग से उन्हें तारीख के अलावा कुछ नहीं मिला. दोस्तों, श्रमिक को श्रम विभाग से न्याय की उम्मीद होती है ना की तारीख की. क्या आप या आपके किसी साथी के साथ भी ऐसा ही हुआ है? क्या श्रम विभाग से श्रमिकों को समय पर न्याय नहीं मिल पाता? आखिर किस तरह की दिक्कतें उन्हें आ रही हैं? अपनी बात हम तक पहुंचाने के लिए फोन में अभी दबाएं नम्बर 3.

नमस्कार आदाब दोस्तों, फरीदाबाद मजदूर समाचार में आपका स्वागत है... दोस्तों, अगर गहराई से सोचे तो ये शेर हमारे मजदूर साथियों के तजुर्बों पर कितना जंचता है... है ना? असल में न जाने कितने ही अच्छे-बुरे तजुर्बों के साथ मेहनतकश मजदूर हर पल जीते हैं. उम्मीद और उत्साह का दामन थामे वो हर दिन सोते,उठते और काम करते हैं, लेकिन इनके बीच ही हिमायती बनकर बैठे कुछ मजदूर लीडर इनके हौसलों को पस्त कर देते हैं. हो सकता है हर मजदूर लीडर ऐसा ना हो... पर कुछ लीडर होते हैं.. जो अपने स्वार्थ और कंपनी के दबाव में मजदूरों के साथ उतना वफादार नहीं हो पाते... अभी अनायास ही एक वाकया याद आ रहा है...जब मजदूरों की बर्खास्तगी को लेकर मारुति सुजुकी मानेसर में मजदूरों ने आंदोलन किया था और इस मुद्दे पर सुजुकी पावरट्रेन मजदूरों ने इनका पूरा साथ दिया था ।आंदोलन अभी परवान चढ़ता उससे पहले ही मजदूर लीडर के धोखे ने पूरा मामला ही पलट कर रख दिया।मारुति सुजुकी कम्पनी के मजदूर लीडरों ने सरकार के दबाव में आकर कंपनी के साथ समझौते पर हस्ताक्षर कर दिया।इस पुरे प्रक्रिया में सुजुकी पावरट्रेन लीडर की अनदेखी की गई,क्योंकि ये लीडर किसी के दबाव में नही आए और अपने के मुद्दे पर अड़े रहे। बात यहीं ख़त्म नहीं हुई, बल्कि मारुति सुजुकी के लीडर को कंपनी का साथ देने के लिए इनाम मिला और सुजुकी पावरट्रेन के मजदूरों के हिमायती लीडर को निलंबित कर दिया गया। काश लीडर दबाव में नही आते तो मजदुर भाइयों की आवाज सुनी जाती और उनकी जीत होती। साथियों, जहां अच्छा तुजुर्बा हमें खुशी देता है वहीं बुरा तुजुर्बा बहुत कुछ सीखा देता है। अब आप हमें बताइए...क्या आप के कंपनी में मजदूर लीडर आप की परवाह करते हैं? क्या आपने अपने साथियों के साथ मिलकर अपने हक़ के लिए आवाज उठाया है ? आप के कंपनी में यूनियन लीडर और मजदुर भाइयों के बीच कैसा रिश्ता है ?अपनी बात हम तक पहुँचाने के लिए फ़ोन में दबाए नंबर 3.

Transcript Unavailable.

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नमस्कार/आदाब दोस्तों, फरीदाबाद मजदूर समाचार की इस नई कड़ी में आपका स्वागत है.  साथियों, मजदूर भाइयों ने एकता और सद्भावना का दामन थामे कई बार जहाँ अपनी बातों को मनवाया है वहीं कंपनी को एहसास करवाया है कि उनका होना कंपनी के लिए कितना जरूरी है। जब-जब समय की मांग हुई तब-तब मजदुर भाइयों ने साहस और हिम्मत के साथ अपनी आवाज़ बुलंद की है। चाहे बात हो बिना पैसों के ओवर टाइम करने की ,कर्मचारियों के साथ होने वाले भेद-भाव की या डराने-धमकाने की।इन सभी मसले का हमेशा मजदूरों ने डट कर सामना किया और गलत [ बुराई ] को झुकने पर मजबूर किया।  बीते दिनों मारुति सुजुकी मानेसर कंपनी में ऐसा ही कुछ देखने को मिला था जब मजदुर भाइयों ने मजबूत इरादे और लम्बी लड़ाई के बाद कंपनी को मजबूर किया था - ओवरटाइम सख्ती से बंद करने के लिए और काम का माहौल खुशनुमा बनाने के लिए। ये सब करना इतना आसान नही था।इसके लिए एकता को तोड़ने की कोशिश की गई,पुलिस और कानून का डर दिखाया गया और लालच दे कर बहकाने की कोशिश की गई। लेकिन अपने उसूलों पर हिम्मत से डटे मजदुर भाइयों ने आंख में आंख डाल कर अपनी बात रखी और जीत हासिल किया।कम्पनी को देर से ही सही मगर कर्मचारियों की अहमियत समझ आ ही गई।  यहां यह कहना गलत नही होगा कि "हम से है कंपनी कंपनी से हम नही "!!  साथियों, क्या आप की कंपनी में कभी मजदूरों ने मिल कर कोई आंदोलन किया है ? क्या आप को कंपनी में अपनी एहमियत का एहसास है?नाइंसाफी के खिलाफ आवाज उठाने पर किन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है ?अपनी बात हम तक पहुँचाने के लिए फ़ोन में दबाए नंबर 3.