"लॉकडाउन का एक साल; हम श्रमिकों को रहेगा याद" कार्यक्रम की नयी कड़ी- "लॉकडाउन की तस्वीरें" में आप सभी का स्वागत है। साथियों, दरअसल इन तस्वीरों के जरिए हम आपको कोरोना-संक्रमण के कारण हुए लॉकडाउन में पैदा हुए भयावह हालातों से एक बार फिर रूबरू कराना चाहते हैं। उस लॉकडाउन के दौरान श्रमिकों की बदहाली और दुर्दशा का मंजर भला कौन भूल सकता है! अचानक दिए गए एक आदेश के बाद जब सबकुछ एक झटके में ठहर गया, तब विभिन्न राज्यों और शहरों में मेहनत-मजदूरी कर अपनी आजीविका चला रहे लाखों-करोड़ों प्रवासी श्रमिक ऑटो, मोटरसाइकिल, रिक्शा और जिनके पास कोई साधन नहीं था, वे पैदल ही हजारों मील की दूरी भूखे-प्यासे, नंगे पावों से नापने का जज़्बा लिए अपने-अपने घरों को निकल पड़े। उन कठिन परिस्थितियों में शुरू की गयी इन दुर्गम यात्राओं के दौरान भूख-प्यास और बीमारी के कारण कई लोग बीच रास्ते में ही असमय काल-कवलित भी हो गए। मज़दूरों को याद कर आज भी रात-रात भर नींद नहीं आती। इस वैश्विक आपदा के कारण उत्पन्न हुई परिस्थितियों में घटी इन भयावह घटनाओं को भला हम कैसे भुला सकते हैं? साथियों, क्या आपको ऐसा लगता है कि इस महामारी के बाद प्रवासी मजदूरों पर आए इस भीषण संकट के बाद भी क्या हमारा देश कोई सबक सीख पाया है? क्या आपको इस गुजरे वर्ष में मज़दूरों की स्थिति में कोई बदलाव दिखलायी दे रहा है? इस लॉकडाउन की सबसे अधिक मार उन प्रवासी मजदूरों पर पड़ी, जो अपना घर-परिवार छोड़कर बड़े शहरों में अपना और अपने परिवार के बेहतर भविष्य की उम्मीदों के साथ काम करने आए थे। लेकिन अचानक हुए लॉकडाउन के चलते बिना किसी सुविधा के, तमाम कठिनाइयों को झेलते हुए उन्हें अपने घर लौटने को मजबूर होना पड़ा। कोरोना-संक्रमण के चलते हुए सम्पूर्ण लॉकडाउन ने कारोबार चौपट करने के साथ ही मानव-सभ्यता के इतिहास में भी काले अध्याय के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इस वैश्विक महामारी से उपजे दुष्कर हालात में भारत ने आज़ादी के बाद का सबसे बड़ा पलायन देखा। इस आपदा के एक साल गुजरने और परिस्थितियों के थोड़ा सामान्य होने पर हमारे श्रमिक साथी काम की तलाश में एक बार फिर उन्हीं फैक्ट्रियों-कारखानों में लौट आए हैं या लौट रहे हैं, जिन्होंने उस आपदा के दौरान उनकी कोई भी मदद करने से इनकार करते हुए, उन्हें उनके हालात पर संघर्ष करने को छोड़ दिया। लेकिन अपने हालातों से किये गए इन तमाम समझौतों के बाद भी उनकी परेशानियां हैं कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही हैं और साथ ही हमारे श्रमिक साथी आज भी नहीं भूल पा रहे उन गुजरे दिनों के दौरान अपने ऊपर गुजरी उन मुसीबतों को। साथियों, आप भी हमें बताएं कि इस गुजरे साल के बाद भी क्या प्रवासी श्रमिकों की जिंदगी अब दुबारा पटरी पर लौट गयी है? लॉकडाउन के दौरान आपके साथ गुजरी अच्छी-बुरी घटनाओं और यादों को हमारे साथ जरूर साझा करें