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जिला धनबाद, प्रखंड तोपचांची से रविंद्र महतो जी मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते हैं कि ये एक किसान हैं और कृषि कार्य से जुड़े हुए हैं। वे कहते हैं कि खेतों में कम समय में अधिक उपज की चाह में किसान रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाओं का अधिक मात्रा में उपयोग करने लगे हैं। जिसका दुष्परिणाम आज सामने आने लगा है, लगातार रासायनिक उर्वरक के प्रयोग से भूमि बंजर और मनुष्य कई प्रकार के रोगों से ग्रसित होते जा रहे हैं। जानकारी के अभाव में किसान जैविक खाद के बदले रासायनिक खाद का उपयोग करते हैं।पारम्परिक खाद के लिए पशुपालन अति-आवश्यक है, किन्तु चरागाह का उपलब्ध ना होना एवं लोगों की उदासीनता के कारण पशु पालन को बढ़ावा नहीं मिल पा रहा है,जिसके कारण किसानों को मात्रा के अनुसार जैविक खाद की उपलब्धता नहीं हो पाती है।साथ ही पशु पालन के लिए प्रखंड स्तर पर किसानों को लाभ तो दिया जाता है, परन्तु कुछ लाभ वैसे किसान को दिया जाता है जिन्हे इसकी कोई आवश्यकता नहीं होती है। जिस कारण सरकारी सहायता राशि का दुरूपयोग होता है।
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आज के इस भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग इतने विलीन हो गएँ है कि वे घर , परिवार एवं समाज से कटते जा रहे हैं और अब पहले की तरह लोगों में सहनशीलता नहीं रह गई है। आज लोगों में तू -तू , मैं-मैं की होड़ लगी हुई है और कोई भी व्यक्ति या समाज दूसरे व्यक्ति या समाज के आगे झुकना नहीं चाहता । समाज में वर्तमान स्थिति ये है कि बात -बात पर लोग आक्रोशित हो जाते हैं ,जो कई बार एक बड़ी घटना का रूप ले लेता है। श्रोताओं , हम आप से जानना चाहते हैं कि आखिर क्या वजह कि आज हर दिन कहीं ना कहीं छोटी-छोटी बातों को तिल का ताड़ बना दिया जाता है या किसी व्यक्ति विशेष की बात पर लोगों का हुजूम जमा हो जाता है ,जो कई बार देखते ही देखते आक्रामक रुख अख्तियार कर लेता है ?और क्या वजह कि कुछ लोग एवं यहां तक कि प्रशासन भी कई बार मूक दर्शक बनी रहती है ..? क्या प्रशासन का यह कर्तव्य नहीं बनता है कि आक्रामक होती भीड़ को समझा बुझा कर शांत कराएं ...? साथी ही इन अपवाहों को फैलाने में आम जनता कहाँ तक जिम्मेदार होती है ? श्रोताओं , आपके अनुसार आक्रामक होती भीड़ को नियंत्रित करने के लिए एवं लोगों में व्याप्त इस भावना को दूर करने के लिए सरकार की ओर से किस तरह की पहल करनी चाहिए ...? साथ ही इसमें आम लोगो की क्या भूमिका होनी चाहिए ?
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