अवनीश कुमार दुमका,काठीकुंड से झारखण्ड मोबाइल वाणी के माध्यम से जानकारी दे रहे है काठीकुंड में कई वर्षो से स्वास्थ आयुर्वेदिक औषधालय बंद पड़ा है,जिससे ग्रामीण परेशान है इलाज के लिए। भाड़े के घर पर औषधालय चल रहा है दवा भी उपलब्ध नहीं रहता है चिकित्सा प्रभारी दो वर्ष से अपने पद पर बने है उनका कहना है की दवा उपलब्ध नहीं करायी गयी है अत:सरकार धयान दे की जब स्वास्थ कर्मी को मानदेय मील सकता है तो मरीजो का इलाज क्यो नहीं।
अवनीश दुमका,काठीकुंड से झारखण्ड मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते है की प्रति वर्ष की तरह 8 मार्च आया और चला गया.365 दिन में एक दिन लोगो द्वारा इस दिन को सेमिनार,जुलुस,समारोह और चर्चा कर मनाते है और फिर अगले वर्ष के लिए इंतजार करते है.क्या हमारा जागरूक समाज आधी आबादी को सबल बनता रहेगा या कोई सार्थक पहल ईमानदारी पूर्वक करेगा।ऐसा भी नहीं है की महिलाओ को सबल बनाने के लिए कुछ नहीं किया गया पर हुआ है वह काफी कम है परिवार,देश और समाज के विकास में इन्हे बराबर की भागीदारी देना अभी बाकि है कही ऐसा तो नहीं की हम सभी पिछड़ी मानसिकता से ग्रसित है देश का विकास चाहने वाले महिलाओ को बराबर का हक़ दो केवल 8 मार्च को ही नहीं प्रति दिन महिला दिवस मनाओ,और जागरूक करो.
दुमका,काठीकुंड से अवनीश कुमार जी झारखण्ड मोबाइल वाणी के द्वारा बताते है कि आज के दिन गांधी जी और उनके स्वयं सेवको ने साबरमती आश्रम से डांडी के लिए पैदल यात्रा शुरुआत कि थी अंग्रेजो का नमक कानून तोड़ने के लिए यह यात्रा कि गयी थी जिसमे हज़ारो लोग सामिल हुए थे,358 किलोमीटर कि यात्रा 24 दिनो में पूरा करने के बाद 6 अप्रैल 1930 को गांधी जी ने डंडी में नमक बनाकर अंग्रेजो का कानून तोडा था और नमक सत्याग्रह के कारण गांधी सहित हज़ारो लोगो कि गिरफ़्तारी हुई थी। आज काफी ऐतहासिक दिन है।
अविनीश कुमार,काठीकुंड दुमका से बिहार मोबाइल वाणी के माध्यम से एक कविता कहना चाह रहे है जो कि एक महिला हिंसा पर आधारित है।
अविनेश कुमार,दुमका काठीकुंड से बिहार मोबाइल वाणी के माध्यम से कहना चाह रहे है कि लडकियो के लिए सप्लाई शब्द का ना करे प्रयोग।लड़का लड़की कि दोस्ती सम्भव है और सामाजिक मान्यता मिली है फिर लड़कियो के लिए ये शब्द क्यो प्रयोग क्यो किया जाता है और ये शब्द का प्रयोग को हटाना होगा नहीं तो एकदिन नारी मंजिल नहीं रहेगी।
दुमका,काठीकुंद से अवनीश कुमार मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे है कि महिला दिवस एक बार फिर आया और गया। ये दिवस बिलकुल वैसी ही मनाया गया जैसे अन्य त्वोहर मनाया जाता है। मगर ये पूछना चाहते है कि क्या एक दिन महिलाओ को सम्मान दे कर,दुकानों में छुट देकर,मिठाई खिला कर ही उन मानसिकता से निज़ात पाया जा सकता है जो जवानों से महिला पर शोषण करते आ रहे है ? अतः वो ये कहना चाहते है कि सिर्फ एक दिन महिला दिवस मानाने या उस दिन महिला को सम्मान करने से कुछ नही होगा। अगर महिला हिंसा को रोकना ही है तो महिला को हर दिन सम्मान दे और महिलाओ को भी जागरुक होना होगा,हिंसा का विरोध करना होगा वो भी बिना डरे हुए।
अवनीश कुमार दुमका काठीकुंड से झारखण्ड मोबाइल वाणी के माध्यम से महिला हिंसा पर कविता प्रस्तुत कर रहे है.
अवनीश दुमका,काठीकुंड से झारखण्ड मोबाइल वाणी के माध्यम से महिला हिंसा पर कहते है की महिला दिवस आया और गया हरेक वर्ष की तरह इसे मनाया गया पुरे गाजे-बाजे ,उमंग और जोश के साथ जैसे हर वर्ष हम गणतंत्र,स्वतंत्रता दिवस,होली,दीपावली दशहरा इत्यादि को मनाते है थोडा हसना,थोडा बिछुड़ना बधाइयो और शुभकामनाओ के तांते उपहारो,वस्त्र,आभूषणो पर छूट,अखबारो,टीवी चैनलो में महिला स्तुति,समस्त नारी जाति के प्रति सम्मान की होड़ ठीक हर बार की तरह घर में भी महिलाओ को भी
अवनीश दुमका,काठीकुंड से झारखण्ड मोबाइल वाणी के माध्यम से महिला हिंसा पर कहते है की खुसनसीब है देश की महिलाये जो की एक दिन उनके नाम होता है चाहे वह दिन महिला दिवस हो,मदर डे या चाइल्ड गर्ल्स डे जब महिलाओ की सुरक्षा और तरक्की की बात आयेगी तब-तब दामिनी का नाम जबान पर आयेगा।आजकल लड़की सप्लाई शब्द खबरो में प्रमुखता से उभरा है यह भव्य् रौशनी की काली परछाई है सभ्य समाज लड़कियो को सप्लाई शब्द के साथ जोड़कर क्या कहना चाहता है बलात्कार के लिए कड़े कानून बनवाने में हम सफल रहे पर इस सप्लाई शब्द का क्या करे लड़का-लड़की की दोस्ती जायज है लिविंग टुगेदर को भी मान्यता मिल गयी फिर सप्लाई शब्द कि गुंजाइस कहा रहती है अत:इस शब्द को सब्दावली से तुरंत हटा देना चाहिए।
अवनीश दुमका,काठीकुंड से झारखण्ड मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते है की प्रति वर्ष की तरह 8 मार्च आया और चला गया.365 दिन में एक दिन लोगो द्वारा इस दिन को सेमिनार,जुलुस,समारोह और चर्चा कर मनाते है और फिर अगले वर्ष के लिए इंतजार करते है.क्या हमारा जागरूक समाज आधी आबादी को सबल बनता रहेगा या कोई सार्थक पहल ईमानदारी पूर्वक करेगा।ऐसा भी नहीं है की महिलाओ को सबल बनाने के लिए कुछ नहीं किया गया पर हुआ है वह काफी कम है परिवार,देश और समाज के विकास में इन्हे बराबर की भागीदारी देना अभी बाकि है कही ऐसा तो नहीं की हम सभी पिछड़ी मानसिकता से ग्रसित है देश का विकास चाहने वाले महिलाओ को बराबर का हक़ दो केवल 8 मार्च को ही नहीं प्रति दिन महिला दिवस मनाओ,और जागरूक करो.